द हिन्दू ने छापा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 100 वीं वर्षगांठ का विज्ञापन
आज चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को अस्तित्व में आए 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं। तो इसमें खास बात क्या है? इसमें खास बात है भारत के एक अखबार का चीनी प्रेम, जो न सिर्फ खुलकर जगजाहिर हुआ, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि एक व्यक्ति का विरोध करने के लिए कुछ लोग देश के शत्रुओं की किसी भी प्रकार से सेवा करने के लिए तैयार हो जाएंगे। हाल ही में द हिन्दू में कम्युनिस्ट पार्टी के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य होने में एक पूरे पेज का विज्ञापन सामने आया है।
कमाल की बात तो यह है कि द हिन्दू के इसी विज्ञापन में भारत में स्थित चीनी राजदूत का संदेश भी लिखा हुआ है, जहां वे कहते हैं कि कैसे चीन के कारण आज विश्व प्रगति के पथ पर अग्रसर है, और क्यों विश्व को चीन का आभारी होना चाहिए।
एक भारतीय समाचार पत्र में चीनी प्रशासन का महिमामंडन कोई कैसे सहन कर सकता है? हालांकि, द हिन्दू यूं ही इतना मशहूर नहीं है। ये भारत के सबसे कट्टर वामपंथी समाचार पत्रों में से एक है। पिछले ही वर्ष इसी समाचार पत्र द हिन्दू ने चीन के नेशनल डे यानि एक अक्टूबर के अवसर पर एक लंबा चौड़ा विज्ञापन निकाला था, जहां पर चीन की भूरी भूरी प्रशंसा की गई थी।
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The Hindu कई बार अपना चीन प्रेम जाहिर कर चूका है
इसके अलावा चाहे CAA विरोधी प्रोपेगेंडा हो, कोरोना वायरस पर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को घेरना हो, भारतीय संस्कृति का उपहास उड़ाना हो या फिर शत्रु देश के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देना हो, ऐसे शानदार अवसरों पर द हिन्दू के संपादकों की चमक तो देखते ही बनती है। अभी कुछ ही महीनों पहले अक्टूबर 2020 में द हिन्दू भारत चीन बॉर्डर विवाद पर धड़ल्ले से फेक न्यूज फैलाता हुआ पकड़ा गया था।
ये स्पष्ट तौर पर चीनी सरकार की जी हुज़ूरी करना नहीं तो और क्या है? लेकिन द हिन्दू इसीलिए तो इतनी चर्चा में रहता है। इसका प्रमुख संपादक एन राम धुर मोदी विरोधी है। मोदी विरोध के नाम पर इसने राफेल विमानों के खरीद के मुद्दे पर न सिर्फ अफवाहें फैलाई, बल्कि काँग्रेस के झूठे प्रोपगैंडा को बढ़ावा दिया। यही लोग बड़े चाव से डेल्टा वेरियंट को भारतीय वेरियंट बोलने में एक बार भी नहीं हिचकिचाएंगे, परंतु वुहान वायरस की उत्पत्ति जिस चीन से हुई, उसपर उंगली उठाने में इन्हे पसीने छूटते हैं।
सच्चाई तो यही है कि द हिन्दू और एन राम जैसे वामपंथी भारत से अधिक चीन के प्रति कर्तव्यनिष्ठ हैं। 1962 में जब भारत चीन युद्ध हुआ था, तब इन्ही के जैसे कुछ भारतीयों ने भारत के निवासी होकर, भारत में रहकर चीन का समर्थन किया था, और भारतीय सैनिकों की मृत्यु का जश्न भी मनाया था। जिस प्रकार से द हिन्दू ने बेशर्मी से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 100 वीं वर्षगांठ का विज्ञापन प्रमुखता से छापा है, उसे तो देखकर यही लगता है कि ऐसे प्रवृत्ति के लोग अभी भी नहीं हटे हैं, बल्कि वे भारत में रहकर ही भारत को अंदर से खोखला करना चाहते हैं।