हिंदुस्तान की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा है। हिंदुस्तान का राजनीतिक इतिहास अटल जी के महान योगदान को कभी भूल नहीं सकता। अटल जी ने कई बड़े काम किए, इन्हीं में से एक काम है तीन राज्यों का बंटवारा। सन 2000 में मध्य-प्रदेश से छत्तीसगढ़, बिहार से झारखंड और उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग हुए। इससे एक बात तो साफ है कि बीजेपी छोटे राज्यों की हितैषी रही है। अब चर्चाएं है कि बीजेपी बंगाल को भी दो हिस्सों में बांट सकती है। पश्चिम बंगाल से नॉर्थ बंगाल को अलग किया जा सकता है। अलीपुर द्वार से बीजेपी सांसद जॉन बारला नॉर्थ बंगाल को अलग करने के पक्षधर रहे हैं।
बीजेपी सांसद ने कहा था, “पश्चिम बंगाल की सरकार नॉर्थ बंगाल के जिलों से मोटी कमाई करती है, लेकिन उसके विकास पर ध्यान नहीं देती है। बंगाल सरकार की नीतियों की वजह से दार्जीलिंग, कलिम्पोंग समेत नॉर्थ बंगाल के तमाम जिले उपेक्षित हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि उत्तर बंगाल को पश्चिम बंगाल से अलग करके केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दे दिया जाए।”
बीजेपी सांसद के इस बयान से ममता बनर्जी बौखला गईं। उन्होंने तुरंत इस पर पलटवार किया। उन्होंने बयान देते हुए कहा, “चुनाव में हार के बाद भाजपा को शर्मिंदा होना चाहिए, लेकिन इसकी जगह वे बंगाल को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। वे किसके हित में बंगाल को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं? केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने से लोगों के अधिकार छिन जाते हैं क्योंकि इससे उन्हें वे लाभ नहीं मिल पाते, जो राज्य के लोगों को मिलते हैं।”
नॉर्थ बंगाल को अलग करने की चर्चाओं के दौरान ही पीएम मोदी ने मंत्रिमंडल विस्तार किया। अपने मंत्रिमंडल विस्तार में पीएम मोदी ने जॉन बारला को शामिल कर लिया। मोदी सरकार ने जॉन बारला को अल्पसंख्यक मामलों का राज्यमंत्री बनाया, इसके बाद से नॉर्थ बंगाल को अलग करने की अटकलों को और ज्यादा बल मिल गया। जॉन बारला को मंत्रिमंडल में शामिल करने को लेकर टीएमसी ने ऐतराज जताया। टीएमसी नेता सौगत राय ने कहा कि जॉन बारला को मंत्री बनाना, बंगाल विभाजन को भाजपा का समर्थन है।
दूसरी तरफ, बीजेपी नॉर्थ बंगाल को बीजेपी संगठन में भी वरीयता देती नजर आई। गत बुधवार को बीजेपी ने युवा मोर्चा की कार्यकारिणी का गठन किया तो दार्जिलिंग से सांसद राजू बिष्ट को भाजयुमो का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।
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बंगाल से नॉर्थ बंगाल को अलग करने की चर्चाओं को इसलिए भी बल मिला क्योंकि बीजेपी का ये आजमाया हुआ फॉर्मूला है। एक से दो राज्य बनाने पर भाजपा को हमेशा फायदा ही हुआ है, फिर चाहे उत्तराखंड हो, झारखंड हो या छत्तीसगढ़।
राज्य-विभाजन के बाद इन राज्यों में बीजेपी ने सरकारें बनाईं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2000 से 2018 के बीच 15 साल से ज्यादा बीजेपी की सरकार रही। झारखंड में 2000 से 2019 के बीच टुकड़ -टुकड़ों में करीब 12 साल और उत्तराखंड में 2000 से 2021 के बीच करीब 10 साल बीजेपी सरकार में रही। इससे ये साबित होता है कि नए राज्यों का गठन बीजेपी के लिए हमेशा फायदे का सौदा रहा है।
बहरहाल, भाजपा और केंद्र सरकार की ओर से अभी कोई आधिकारिक टिप्पणी न आने कि वजह से ये मामला भले ही अभी तूल नही पकड़ रहा है लेकिन सुगबुगाहटें लगातार हो रही हैं।
नॉर्थ बंगाल की चर्चा और केंद्र का इस पर सकारात्मक रुख कोई हवाई बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे आंकड़ों का खेल है। 2019 के चुनावों में इसी उत्तर बंगाल क्षेत्र से भाजपा 8 लोकसभा सीट जीतने में सफल हुई थी और 2021 विधानसभा चुनाव में बढ़त बढ़ाते हुए कुल 20 विधानसभा सीटें जीतीं।
इससे एक बात तो बिल्कुल साफ है कि अगर नॉर्थ बंगाल अलग राज्य बन जाए तो यहां बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में होगी। अब देखना यही होगा कि नॉर्थ बंगाल को अलग करने की जो चर्चाएं अंदरखाने चल रही हैं कब उन पर खुलकर बात होती है।