‘वेट्रिवेल, वीरवेल’ ही नहीं, भारतीय सेना के युद्ध घोष में ‘जय मां काली’ भी शामिल है और वामपंथी इसमें कुछ नहीं कर सकते

तमिलनाडु की एक NGO ने भारतीय सेना के युद्ध घोष पर उठाए सवाल!

भारतीय सेना जवान युद्धघोष

तमिलनाडु में कोयंबटूर जिले के मदुक्कराई में सेना रेजिमेंट के प्रवेश द्वार पर ‘वेट्रिवेल, वीरवेल’ के नारे वाली तस्वीर सामने आने के बाद गुरुवार को विवाद खड़ा हो गया। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार एक विवादास्पद वामपंथी NGO ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में अपने एक रेजिमेंटल मुख्यालय में भारतीय सेना के युद्धघोष पर आपत्ति जताई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन नाम के एक स्व-घोषित ‘एक्टिविस्ट’ समूह ने भारतीय सेना द्वारा तमिल में कोयंबटूर के पास मदुक्करई में तीसरे मद्रास रेजिमेंट मुख्यालय के बाहर अपने युद्धघोष – ‘वीरावेल वेट्रिवेल’ प्रदर्शित करने पर आपत्ति जताई।

 

“वेट्रिवेल, वीरवेल”, जिसका अनुवाद “विजयी भाला, साहसी भाला” है, यह भारतीय सेना के सबसे पुरानी War Cry यानी युद्धघोष में से एक है। यही नहीं इस स्लोगन का प्राचीन काल  में तमिल योद्धाओं द्वारा प्रोयोग भी किया जाता था। बता दें कि, ‘वेल’ हिंदू युद्ध देवता मुरुगन के पवित्र भाले को कहा जाता है।

इस NGO का कहना है, ‘वीरवेल वेट्रिवेल’ का युद्धघोष एक धार्मिक नारा है, और सशस्त्र बलों में इसकी अनुमति नहीं होनी चाहिए। यही नहीं इसे राजनीतिक नारा भी बताने का प्रयास किया गया है। 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी वेल यात्रा के दौरान तमिलनाडु की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इकाई द्वारा “वेट्रिवेल, वीरवेल” नारे का इस्तेमाल किया गया था। इस नारे का इस्तेमाल PM मोदी ने राज्य में अपने प्रचार के दौरान भी किया था। अब इसे ही मुद्दा बनाया जा रहा है।

हालांकि, रक्षा विभाग के जनसंपर्क अधिकारी ने कहा कि यह नारा मदुकरई में आर्मी रेजिमेंट द्वारा सदियों से इस्तेमाल होता है और भारतीय सेना में प्रत्येक रेजिमेंट के पास इस तरह के अलग-अलग युद्धघोष हैं। अधिकारी ने कहा, “वेट्रिवेल, वीरवेल का इस्तेमाल मदुक्कराय रेजिमेंट द्वारा किया गया है और इसका किसी अन्य से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है।”

बता दें कि, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन को भारत विरोधी तत्वों के समर्थन के लिए जाना जाता है। इस NGO ने वामपंथी ​​​​स्टेन स्वामी जैसे नक्सल समर्थकों का भी महिमामंडन किया है जो भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी था। अब यह NGO भारतीय सेना को अपनी ओछी राजनीति में खींचने का प्रयास कर रहा है।

इस NGO ने नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले स्टैनिस्लॉस  लौर्डुस्वामी की मौत को ‘संस्थागत हत्या’ बताया और भारतीय सरकार को कड़ी चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि उनकी मौत को भुलाया नहीं जाएगा।

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हालाँकि, हास्यास्पद है कि एक वामपंथी गुट को भारतीय सेना के एक रेजिमेंट के युद्धघोष से इतना डर लग रहा है। ऐसा लगता है कि इस NGO को भारत के अन्य रेजीमेंटो द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले युद्धघोष की जानकारी नहीं है। जब यह वामपंथी संगठन भारतीय सेना के गोरखा राइफल्‍स की ‘जय मां काली, आयो गोरखाली’, राजपुताना राइफल्स की ‘राजा राम चंद्र की जय’, राजपुताना रेजिमेंट की ‘बोल बजरंगबली की जय’, गढ़वाल राइफल्‍स की ‘बदरी विशाल लाल की जय’, और मराठा लाइट इंफ्रेट्री की ‘बोल श्री छत्र‍पति शिवाजी महाराज की जय’ जैसे युद्धघोष को सुनेंगे तो उनके पैरो तले जमीन खिसकनी तय है।

Vetrivel, Veervel भारतीय सेना के कई युद्धघोष में से एक है, जिसे मद्रास रेजिमेंट ने भी अपनाया है।

भारतीय सेना ऐसे युद्धघोष का प्रयोग सैनिकों में जोश भरने के लिए व  दुश्मन के ह्रदय में डर का संचार करने के लिए करती है और उन्हें गर्व से प्रदर्शित भी करती है। अब लगता है कि इन युद्ध घोषों के सिर्फ नाम सुन कर ही वामपंथियों का ह्रदय कांप रहा है। शायद यही कारण है कि अब ये Vetrivel Veervel जैसे युद्धघोष का भी विरोध करने उतर चुके हैं। हालाँकि, इनके विरोध से कुछ नहीं होने वाला है और सेना अपने इन युद्ध घोषों से अपने दुश्मनों के दिल को दहलाते रहेगी।

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