ओवैसी यूपी में BJP की हार के साथ भारत का अगला राष्ट्रपति चुनने का सपना देख रहे हैं

'मुंगेरीलाल के हसीन' सपने देखने से कोई किसी को नहीं रोक सकता!

ओवैसी उत्तर प्रदेश

PC: The Financial Express

सपने देखने चाहिए, परंतु ऐसे सपनों से बचना चाहिए, जिससे आप हंसी के पात्र बन जाएं; पर AIMIM नेता असद्दुदीन ओवैसी को ये बात कौन समझाए, जो अब अगला राष्ट्रपति विपक्षी दलों की मर्जी से चुनने की बात कर रहे हैं। ओवैसी ने कल्पनाओं के आधार पर ये सोच लिया कि बीजेपी उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से हारेगी, और बीजेपी की ताकत राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हो जाएगी। उनका मानना है कि ऐसी स्थिति में विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर वो अपनी पसन्द का राष्ट्रपति चुन सकेंगे। अब ओवैसी के सपनों से अलग हटकर अगर उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति को देखें तो ये कहा जा सकता है, कि ओवैसी के इन सपनों के सच होने की संभावनाएं न के बराबर हैं, और वो अपनी कल्पनाओं के कारण केवल हंसी का पात्र ही बन रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले एक ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है मानों अबकी बार चुनाव हवा बनाकर जीता जाना है। महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि इस प्रकार की नौटकयों में केवल सपा, बसपा और कांग्रेस ही नहीं, बल्कि AIMIM के नेता असद्दुदीन ओवैसी भी शामिल हैं। उन्होंने तो यहां तक सोच लिया है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की हार के बाद बीजेपी राष्ट्रपति चुनाव भी हार जाएगी। ओवैसी ने अपने एक ट्वीट में लिखा कि उत्तर प्रदेश में हार के बाद बीजेपी की ताकत कम हो जाएगी, और फिर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना समेत यूपी चुनाव जीतने वाली क्षेत्रीय पार्टियां तय करेंगी कि अगला राष्ट्रपति कौन होगा।

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ओवैसी ने अपने ट्वीट में लिखा, उम्मीद है कि देश के अगले राष्ट्रपति चुनाव का फैसला 3 क्षेत्रीय दलों द्वारा किया जाये, इंशाअल्लाह। बीजेपी उत्तर प्रदेश हारेगी और इसकी संख्या विधानसभा में कम होगी। यह एक दिलचस्प और अप्रत्याशित राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहा है। राष्ट्रपति भवन का रास्ता आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से होकर जाता है। साफ है कि अपनी कल्पनाओं में पहले उन्होंने बीजेपी को विधानसभा चुनाव हराया और फिर राष्ट्रपति चुनाव। ओवैसी का तर्क है कि सबसे ज्यादा बीजेपी के विधायक उत्तर प्रदेश से ही हैं, इसलिए हार के बाद जब उनकी ताकत कम होगी तो वो अपना राष्ट्रपति नहीं चुन पाएगी।

ये सच है कि विधायकों की संख्या का असर राष्ट्रपति चुनावों पर पड़ता है, और  भले ही उनके वोट की कीमत सासंदों के वोट से कम हो, लेकिन संख्या के आधार पर उनका महत्व बढ़ भी जाता है, परंतु सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के उत्तर प्रदेश चुनाव हारने की कोई उम्मीद है? अब अगर वर्तमान राजनीतिक स्थिति की बात करें तो संभावनाएं बहुत ही कम हैं।  बीजेपी आज की स्थिति में यदि किसी राज्य में सबसे मजबूत है; तो वो निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश ही है। पहले बात विपक्ष की करें तो बसपा का राजनीतिक करियर 2014 के लोकसभा चुनावों में हार के बाद हाशिए पर जा चुका है, एवं मायावती अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं; इसलिए बीजेपी के लिए बसपा से कोई चुनौती मिलनी की उम्मीद कम ही है।

इसी प्रकार अगर सपा को देखें तो पार्टी पारिवारिक कलेशों के बाद जमीनी स्तर पर संघर्ष कर रही हैं। पार्टी का मुख्य वोट बैंक मुस्लिम-यादव समीकरण का है, और विपक्ष में बिखराव होने के कारण इस वोट बैंक में भी बिखराव की पूरी संभावना है। पूर्व सीएम अखिलेश यादव के कार्यकाल का गुंडाराज सभी ने देखा है। इतना ही नहीं पिछले पांच साल विपक्ष में होने के बावजूद उन्होंने जो ऊल-जलूल वक्तव्य दिए, वो ही उनके लिए मुसीबत बन गए हैं, जिसके चलते सपा के आने की संभावनाएं भी न के बराबर ही हैं।

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इसके बाद बात करें तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति इस लायक़ भी नहीं है, कि पार्टी के लिए कोई विश्लेषण भी किया जाए। 80 में से एक लोकसभा की सीट, और 403 में 7 विधानसभा सीटों वाली पार्टी के लिए अगर ये कहा जाए कि पार्टी अचानक बहुमत प्राप्त कर लेगी, या किंगमेकर की भूमिका में आ जाएगी, तो इस तरह के विश्लेषण कपोल कल्पना जैसे ही हैं,  क्योंकि इनका यथार्थ से कोई सरोकार नहीं होगा। प्रियंका गांधी संघर्ष ज़रूर कर रही है, उनके यूपी प्रभारी रहते ही पार्टी लोकसभा, निकाय और पंचायत स्तर के चुनाव हार चुकी है।

वहीं, अगर इन चुनावों की बात करें तो, अपनी पारंपरिक राजनीतिक नौटंकियों को खत्म करने के अलावा सपा, बसपा और कांग्रेस पुराने पैटर्न ही अपना रही है, जिसमें ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम एवं भिन्न-भिन्न जाति समीकरण बनाए जा रहे हैं। बसपा 2007 के ब्राह्मण दलित वोटबैंक के फार्मूले के आधार पर चुनाव जीतना चाहती है तो वहीं सपा छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रही है, जिनका राजनीतिक अस्तित्व ही शून्य है। अब इन सभी परिस्थितियों के बीच अगर जनता में किसी का विश्वास दिखता है, तो वो बीजेपी ही है।

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इस पूरे विपक्षी राजनीतिक पैटर्न को देखें तो ये कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में अगर कोई राजनीति दल सबसे मजबूत है तो फिलहाल वो बीजेपी ही है। पिछले पांच सालों के कार्यकाल के दौरान राज्य में गुंडाराज की समाप्ति के कारण आया निवेश योगी सरकार की छवि में बढ़ोतरी कर रहा है। इतना ही नहीं हिंदुत्व के मुद्दे पर चलने के कारण पार्टी का वोट बैंक पहले से कहीं अधिक मजबूत है। विपक्षी दल जिन वोट बैंक को साधने की कोशिश में हैं, वो एक मुश्त बीजेपी के पास ही है। चाहे दलित हो या सवर्ण समाज सभी ने पिछले दो तीन चुनावों में केवल बीजेपी पर ही अपना भरोसा दिखाया है। महीने भर पहले हुए पंचायत और ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में बीजेपी की जीत पार्टी के विस्तृत जनाधार का उल्लेख कर रही है।

इन परिस्थितियों को देखने के बाद भी यदि कोई ये सोचता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार होने वाली है, तो निश्चित ही उसकी राजनीतिक समझ पर संदेह होना चाहिए। AIMIM प्रमुख ओवैसी ने तो अपने बीजेपी विरोधी विश्लेषण के आधार पर कल्पना में ही चुनाव के जरिए ये कह दिया है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में हार जाएगी, और अगला राष्ट्रपति उनकी इच्छानुसार चुना जाएगा। ओवैसी की कल्पना और बीजेपी की वर्तमान स्थिति में धरती और आकाश का अंतर है, इसलिए इस मामले में केवल उनपर हंसा ही जा सकता है और कुछ नहीं ।

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