कैबिनेट विस्तार के समय प्रधानमंत्री मोदी ने कई चौंकाने वाले फैसले लिए। हालाँकि, सभी नामों का चुनाव किसी न किसी विशेष फैक्टर के कारण किया गया था। इसी लिस्ट में मनसुख मंडाविया को भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी देना भी एक सोची समझी रणनीति थी जिसके तहत भारत को फार्मा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की योजना है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम से अब चीन और अमेरिका की बड़ी कंपनियों को मनसुख मंडाविया से खौफ महसूस अवश्य हो रहा है।
दरअसल, स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त होने से पहले मनसुख उर्वरक और रसायन मंत्रालय के राज्य मंत्री थे और उन्होंने अपने कार्यकाल में API के लिए चीन और अमेरिका पर निर्भरता को कम करने हेतु कई बड़े कदम उठाये थे। यही नहीं वह अब स्वास्थ्य मंत्री के साथ-साथ उर्वरक और रसायन मंत्री भी हैं।
इसका अर्थ यह है कि अब वे और अधिक स्वतंत्रता से फैसले लेंगे। आज भारत में जिस तरह की स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में है, उसका मूल्यांकन करते हुए, मनसुख मंडाविया अपने अनुभव का इतेमाल कर चीन और वेस्टर्न बिग फार्मा पर पलटवार अवश्य करेंगे।
साथ ही भारत को API, वैक्सीन के लिए कच्चे माल, डिजिटल उपकरण आदि में आत्मनिर्भर बनाने की ओर ध्यान देंगे। पिछले वर्ष जून में मनसुख मंडाविया ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि आठ वैश्विक दवा फर्मों ने भारत में API उत्पादन को बढ़ाने की योजना में रुचि दिखाई है।
बता दें कि, भारत सालाना करीब 3.5 अरब डॉलर का API आयात करता है, जिसमें से 70 फीसदी चीन से आता है। वहीँ भारत ने वित्त वर्ष 2018-19 में लगभग 10 मिलियन डॉलर मूल्य के क्लिनिकल और डिजिटल थर्मामीटर का आयात किया, जिसमें से लगभग 75% चीन से आयात किया गया था।
यह स्पष्ट है कि API के आयात पर इतनी अधिक निर्भरता के रणनीतिक दुष्परिणाम हो सकते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेक्टर को कमजोर कर सकते हैं। उदहारण के लिए कुछ महीने पहले वैक्सीन के लिए आवश्यक कच्चे माल के निर्यात पर अमेरिका ने प्रतिबन्ध लगा दिया था जिसके कारण वैक्सीन के उत्पादन में कमी आई थी।
उस दौरान अपने इंटरव्यू में मनसुख मंडाविया ने कहा था कि, “हम चिकित्सा उपकरणों को देखें, तो थर्मामीटर तक आयात किए जाते हैं। क्या हम इन्हें भारत में नहीं बना सकते?” वह वैक्सीन के लिए आवश्यक कच्चे माल के लिए भी भारत को आत्मानिर्भर बनाने की बात कर रहे थे।
देश के स्वास्थ्य मंत्री रहते वह इन आवश्यक सेक्टर में अत्यधिक तेजी से निर्णय ले सकते हैं और इससे सबसे अधिक नुकसान अमेरिका और चीन की बड़ी फार्मा कंपनियों को ही होगा। इसलिए अमेरिका और चीन को भारत के नए स्वास्थ्य मंत्री से डरना चाहिए।
केमिकल और फर्टिलाइजर राज्य मंत्री रहते हुए, मनसुख मांडविया ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया था कि सरकार ने इंपोर्ट पर नजर रखने के लिए हर केमिकल को खास टैरिफ कोड देने की कवायद भी शुरू कर दी है।
इस योजना का प्रमुख मकसद ही चीन से निर्भरता कम करना था और इसने किया भी।
हालांकि, भारत के पास विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त फार्मास्युटिकल उद्योग है, लेकिन हम इनपुट के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। भारत सालाना करीब 3.5 अरब डॉलर का API आयात करता है, जिसमें से 70 फीसदी चीन से आता है।
उनके नेतृत्व में 20 मार्च 2020 को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महत्वपूर्ण critical drug intermediates और API के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए 6,940 करोड़ रुपये की production-linked scheme के साथ-साथ drug parks को बढ़ावा देने के लिए 3,000 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी थी। इससे भारत ने API के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया था।
अब स्वास्थ्य मंत्री के साथ-साथ केमिकल और फर्टिलाइजर मंत्री रहते हुए, वह चीन और अमेरिकी कंपनियों के वर्चस्व को अवश्य ही कम करने के लिए फैसले लेंगे। प्रधानमंत्री मोदी का मनसुख मंडाविया को स्वास्थ्य मंत्रालय देना एक मास्टरस्ट्रोक साबित होगा और आने वाले वर्षों में देश के अन्दर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी विकास के साथ-साथ फार्मा सेक्टर का भी और विकास होगा।
इससे सबसे अधिक नुकसान चीन और अमेरिकी कंपनियों को उठाना पड़ेगा और उनका वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।