पंजाब में फिलहाल के लिए नवजोत सिंह सिद्धू का पलड़ा भारी दिख रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या करते हैं, ये तो समय ही बताएगा, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस तरह से गांधी परिवार को पंजाब कॉंग्रेस का अध्यक्ष बनाने के लिए बाध्य किया है, उससे राजस्थान में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के सोये अरमान फिर से जग गए हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू को हाल ही में काफी गहमागहमी के बाद पंजाब काँग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर स्थापित कर दिया गया। इसके साथ ही साथ कैप्टन अमरिंदर को साइडलाइन करने के लिए पंजाब काँग्रेस की ओर से ‘विशाल शक्ति प्रदर्शन’ भी कराया गया। यदि राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट समय रहते नहीं चेते, तो उनका हाल ही भी कुछ ऐसा ही हो सकता है।
हाल ही में नवजोत सिंह सिद्धू के अध्यक्ष बनाए जाने पर राजस्थान में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अप्रत्यक्ष तौर पर आलाकमान को निशाने पर लेते हुए कहा, “राजस्थान में सरकार होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी पहले 50 और बाद में 20 सीटों पर आई। इस मुद्दे पर पार्टी से बात की है। मैं कांग्रेस का 6 साल से अधिक अध्यक्ष रहा तब कार्यकर्ताओं ने अपनी जेब से पैसे खर्च करे। बूथों पर लाठियां भी खाईं और उनके खिलाफ कार्रवाई हुई, पार्टी भले ही बड़े पद न दें कम से कम सम्मान तो दे।”
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यहाँ पर कहीं न कहीं सचिन पायलट का निजी दर्द भी छलका है। सचिन पायलट को जब राजस्थान काँग्रेस की कमान सौंपी गई , तो उन्होंने इसका परिणाम भी 2018 के राजस्थान चुनाव में दिखाया, जहां कॉंग्रेस ने एक बार फिर सत्ता प्राप्त की। लेकिन सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। सचिन को प्रसन्न रखने के लिए उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया था। परंतु अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तकरार दिन प्रतिदिन बढ़ती ही गई, और 2020 में सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद त्यागने पर विवश होना पड़ा।
लेकिन बात केवल वहीं तक सीमित नहीं है। अब तो यह भी सुनने में आ रहा है कि जल्द ही अशोक गहलोत अपना राजपाठ अपने पुत्र वैभव को सौंपने जा रहे हैं, और सचिन पायलट को उनके बगावती तेवर के कारण दरकिनार किया गया है। यदि राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट अब भी नहीं चेते, तो उनका भी वही हाल होगा, जो कैप्टन अमरिंदर का पंजाब में इस समय हुआ है।
ऐसे में अब सचिन पायलट को जल्द ही अपने स्थिति पर विचार करना होगा। या तो वे नवजोत सिद्धू की तरह आक्रामक होकर काँग्रेस से अपनी बात मनवा सकते है, या फिर वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह काँग्रेस छोड़कर भाजपा में एक बेहतर भविष्य की नींव रख सकते हैं। यदि वे इन दोनों में से कुछ भी नहीं करते हैं, तो राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट न घर के रहेंगे और न ही घाट के।