सुप्रीम कोर्ट का पश्चिम बंगाल हिंसा पर उठाया गया एक कदम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और टीएमसी के लिए कैसे अब तक का सबसे बड़ा झटका साबित हो सकता है ये अब पता चलने लगा है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ ही राज्य में हिंसा का तांडव शुरु हो गया था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक में अनेकों याचिकाएं लगाई गईं, लेकिन प्रत्येक मुद्दे पर ममता ने कोर्ट को गुमराह किया। वहीं हिंसा के मुद्दे पर राष्ट्रपति शासन लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार को झटका देते हुए सुनवाई करने की सहमति दे दी है। अब यही एक याचिका ममता बनर्जी के लिए गले की हड्डी साबित होने वाली है, क्योंकि इसके जरिए ममता के सारे राजनीतिक षडयंत्रों का खात्मा हो सकता है।
दरअसल, पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के दिन से शुरु हुई हिंसा के तांडव को लेकर सुप्रीम कोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा है। ऐसे में वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करते हुए बंगाल में राष्ट्रपति शासन यानी अनुच्छेद 356 लगाने की मांग की थी। अब महत्वपूर्ण बात ये है कि सर्वोच्च अदालत ने इस याचिका को मंजूरी देते हुए सुनवाई करने की बात कह दी है। अदालत ने इस संबंध केन्द्र सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार, चुनाव आयोग सभी को पक्षकार बनाते हुए जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत सरन और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने इस याचिका की सुनवाई के लिए सहमति जाहिर करते हुए कहा, “हम प्रतिवादी नंबर एक (भारत सरकार), प्रतिवादी नंबर–दो (पश्चिम बंगाल सरकार) और प्रतिवादी नंबर तीन (निर्वाचन आयोग) को नोटिस जारी कर रहे हैं।” भले ही इस मामले में ये कहा जा रहा हो कि प्रतिवादी नंबर चार यानी टीएमसी प्रमुख के तौर पर ममता बनर्जी को नोटिस जारी नहीं किया गया है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि बंगाल सरकार को नोटिस मिलना ही ममता बनर्जी के लिए ही मुसीबतों का संकेत हैं।
गौरतलब है कि विष्णु जैन द्वारा दाखिल इस याचिका में 2 मई के बाद पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के लिए टीएमसी को जिम्मेदार बताया गया हैं, क्योंकि टीएमसी के आक्रामक कार्यकर्ताओं को ममता के सत्ता में होने के कारण राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। इस याचिका में ममता सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद उन लोगों को सीधे तौर पर निशाना बनाया गया, जिन्होंने बीजेपी का चुनावों के दौरान समर्थन किया था। इसलिए केन्द्र सरकार को बंगाल में अनुच्छेद 355 और 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
इस याचिका के इतर अलग-अलग संस्थाओं की रिपोर्ट देखें तो प्रत्येक में टीएमसी पर ही सवाल खड़े किए गए हैं। NHRC की फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट बता चुकी है कि कैसे 2 मई के बाद प्रतिदिन बंगाल के बीजेपी समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है, इसके चलते बड़ी संख्या में लोग अब बंगाल से पलायन कर असम या अन्य पड़ोसी राज्यों का ओर रुख कर रहे हैं। इतना ही नहीं TFI ने भी बताया है कि कैसे बंगाल चुनाव के दौरान ममता ने जो ‘खेला होबे’ नामक चुनावी अभियान शुरू किया था, वो 2 मई के बाद से बदले का रूप ले चुका है। इस बदले के तहत लोगों की हत्या के साथ ही राज्य में बीजेपी की समर्थक महिलाओं के साथ बलात्कार और उनके परिजनों को मानसिक प्रताड़ित किया जा रहा है।
इसके अलावा बंगाल सरकार को लेकर कोलकत्ता हाईकोर्ट भी अपने एक फैसले में कह चुका है कि बंगाल सरकार पूरे मामले को दबाने की कोशिश कर रही हैं जबकि जमीनी स्तर पर हिंसा का तांडव जारी है। यही कारण है कि कोलकत्ता हाईकोर्ट ने जांच का सारा काम NHRC को सौंप दिया है। इन सभी मामलों में बस एक ही चीज समान है… और वो ये कि सभी में ममता सरकार और टीएमसी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रपति शासन की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जाहिर कर सुप्रीम कोर्ट ममता बनर्जी को बैकफुट पर ले आया है।
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ममता बनर्जी तीसरी बार चुनाव जीतकर सत्ता में आई हैं, लेकिन उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं का दंगाई व्यक्तित्व अब उनके गले की हड्ड़ी बन सकता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ममता सरकार के लिए जितनी भी नकारात्मक बातें कहेगा, राष्ट्रीय राजनीति में जाने का सपना संजोए बैठीं ममता बनर्जी के लिए वो उतना ही मुश्किलों भरा होगा, क्योंकि इससे ममता पर हिंसक और दंगाई नेता का ठप्पा लग जाएगा। वहीं यदि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगता है तो टीएमसी के आरोपी कार्यकर्ताओं का खात्मा कर राजनीतिक रूप से टीएमसी का पतन भी हो सकता है।