विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से बंगाल में हिंदुओं के ऊपर हमले हो रहे हैं। चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद से टीएमसी के गुंडों की गुंडागर्दी और हिंसा जारी है। भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों में तोड़फोड़ की गई। बीजेपी कार्यालयों को तोड़ा गया। उनमें आग लगा दी गई। अभी भी राज्य में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं, अगर अब भी केंद्र सरकार ने एक्शन लेते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया तो हिंदुओं की हालात बद से बदतर हो जाएगी।
हालांकि हिंदुओं के ख़िलाफ़ ऐसा व्यवहार राज्य में पहले भी होता था, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद से तो ऐसा लगा मानो ममता बनर्जी के गुंडों को हिंसा का लाइसेंस मिल गया हो। 2 मई को ही अभिजीत सरकार और एक बंगाल बीजेपी बूथ कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई।
इसके अतिरिक्त कई ऐसे वीडियो भी सामने आए जिसमें TMC के कार्यकर्ताओं को महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा जा सकता है। यहां तक कि टीएमसी कार्यकर्ताओं पर दो महिला पोलिंग एजेंट्स के साथ सामूहिक बलात्कार की ख़बर भी सामने आई। हालात इतने बुरे हो गए कि बीजेपी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को पड़ोसी राज्य असम में भागकर जाना पड़ा।
इससे पहले भी ममता बनर्जी के शासन में हिंदुओं को लगातार प्रताड़ना सहनी पड़ी है। कभी दंगों में तो कभी विशेष वर्ग के लिए किए गए तुष्टीकरण में।
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यह ममता बनर्जी ही थी जिन्होंने 2017 में तारकेश्वर विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में फिरहाद हाकिम की नियुक्ति की थी। ममता बनर्जी के इस फैसले पर तब ख़ूब विवाद हुआ था। साल 2016 में भी ममता ने इसी तरह का आदेश दिया था और दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी, जबकि विजयदशमी 11 अक्टूबर और मुहर्रम 12 तारीख को पड़ा था।
तारीखें अलग थीं फिर भी ममता बनर्जी ने तुगलकी फरमान सुनाया था। हालांकि, तब कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने राज्य सरकार के आदेश को ख़ारिज कर दिया था और इसे तुष्टिकरण करार दिया था।
ममता सरकार ने हिंदू जागरण मंच के हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने पर भी रोक लगा दी थी। जब 11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हनुमान जयंती के लिए जुलूस निकाला गया तो पुलिस द्वारा उन पर लाठीचार्ज करवाया गया था।
2016 के धूलागढ़ और 2017 के बशीरहाट दंगों को कौन भूल सकता है, जिसमें हिंदुओं पर अत्याचार किया गया। उन्हें मारा-पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। तब भी ममता बनर्जी ने हिंदुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया था, बल्कि बयान देते हुए कहा था कि ये कोई घटना नहीं थी।
ईद-ए-मिलाद-उल-नबी पर्व मनाने के बाद कट्टरता के नशे में मद अराजकतावादियों और आतंकवादियों की भीड़ ने कोलकाता के हावड़ा क्षेत्र से बमुश्किल 18 किमी दूर एक शहर, धूलागढ़ में ऐसा तांडव मचाया था कि आज भी वहां की दीवारों से धुएं के दाग नहीं मिटे हैं।
यह दंगा ठीक उसी तरह था जैसा कि 1990 के दशक में कश्मीर में देखा गया था, जब कई कश्मीरी अल्पसंख्यक, विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों के घरों को जलाकर, महिलाओं के साथ बलात्कार कर उन्हें मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था।
वहीँ, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम-बहुल बशीरहाट में वर्ष 2017 में एक फेसबुक पोस्ट पर इलाके में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी। इलाके में विशेष समुदाय द्वारा दर्जनों दुकानें जला दी गई थीं और बादुड़िया थाने में भी तोड़-फोड़ की गई थी। इलाके में उस हिंसा के निशान अब भी देखे जा सकते हैं।
वर्ष 2018 में रामनवमी के दौरान पुरुलिया और रानीगंज में भी दंगे हुए थे। पुलिस की कड़ी निगरानी में पुरुलिया के भेल्दी गांव में यह जुलूस निकाला गया था। जुलूस खत्म होने के बाद जब राम भक्त भुरसा नामक अल्पसंख्यक वर्चस्व वाले गांव के मार्ग से लौट रहे थे तब उन पर अज्ञात बदमाशों ने पत्थर, पेट्रोल और बम फेंकने शुरू कर दिए। दोनों समूहों के बीच हिंसा बढ़ गई। पश्चिम बंगाल में रानीगंज हिंसा पुरुलिया हिंसा से कहीं ज्यादा भयावह और हिंसात्मक थी।
ये जुलूस जैसे ही बर्धमान जिले के समुदाय विशेष के इलाके में पहुंचा वहां जुलूस पर पत्थर, पेट्रोल बम और तलवारों से हमला कर दिया गया। इस दौरान कई दुकानों और घरों में आगजनी की घटना को भी अंजाम दिया गया।
पश्चिम बंगाल में रानीगंज हिंसा के सवेंदनशील मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा था, ‘क्या कभी भगवान राम को तुमने तलवार के साथ देखा है? क्या भगवान राम ने कभी अपने भक्तों को अपने साथ हथियार रखने के निर्देश दिए हैं ?’
ये बयान तो बस बंगाल में हिंदुओं के प्रति रवैये का एक छोटा सा नमूना था। पश्चिम बंगाल की पुलिस भी कथित तौर पर राज्य सरकार के साथ मिली हुई है और पीड़ितों के साथ अन्याय कर रही है। बंगाल में जब भी हिंसा होती है पुलिस उल्टा जुलूस में शामिल लोगों पर आरोप मढ़ती है कि वो जानबूझकर अल्पसंख्यकों के इलाके से गुजरते हैं और शांति भंग करते हैं। पुलिस दबंगों के खिलाफ कार्रवाई न करते हुए निर्दोषों पर लाठीचार्ज करती है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार की कार्यशैली ने पहले ही वहां के हिंदुओं के लिए जीवित नरक बना रखा है, अगर राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया तो इस प्रदेश में हिंदुओं के लिए पाकिस्तान जैसे हालात भी हो सकते हैं। कहा जाता है कि “बंगाल जो आज सोच रहा है, वो हिंदुस्तान कल सोचेगा” अब यहां कोई शंका बाकी नहीं रह जाती कि बंगाल इस वक्त क्या सोच रहा है ?