उत्तर प्रदेश के मुसलमान किसे वोट देंगे?

उत्तर प्रदेश मुस्लिम

PC: The Indian Express

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनाव में भले ही अभी कुछ महीने बचे हैं पर राजनीतिक दलों ने अपने-अपने समीकरण साधने शुरू कर दिये हैं। जिस धर्म और जाति विशेष पर इन दलों की सबसे ज़्यादा नज़र रहती है उनमें मुस्लिम वोट बैंक प्रमुख है। आमतौर पर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति राज्य में तीन दल करते आए हैं- कांग्रेस-सपा-बसपा। 2022 में ये रास्ता और भी कांटों से भरा रहने वाला है क्योंकि राजनीति की लैला अर्थात “औवेसी” ने सभी राज्यों में एंट्री मारने के बाद यूपी में भी चुनावी डुबकी लगाने का ऐलान कर दिया है।

उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो इस राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है। प्रदेश में सवर्ण जातियां 18% हैं, जिसमें ब्राह्मण 10% हैं, पिछड़े वर्ग की संख्या 39% है, जिसमें यादव 12%, कुर्मी, सैंथवार 8%, जाट 5%, मल्लाह चार फीसदी, विश्वकर्मा 2% और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 7% है। इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 25% है और मुस्लिम आबादी 18% है। इसी मुस्लिम वोट बैंक पर राजनीतिक लुटेरों की बारात नाचने को तैयार है, जिनमें AIMIM भी जुड़ गयी है।

समाजवादी पार्टी ने जब भी सरकार बनाई है, तब उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों ने ही उसमें सबसे अहम भूमिका निभाई है। सपा का चिर-परिचित एम-वाय फॉर्मूला (मुस्लिम-यादव) हर बार उसके लिए मददगार साबित हुआ है पर पिछले कुछ चुनावों में उसकी स्थिति वोट कटने की वजह से खराब हुई है। वो बात अलग है कि पिछले विधानसभा और हाल के पंचायत चुनाव के अब तक के नतीजे देखे जाएं तो सपा की स्थिति बसपा से कहीं बेहतर रही है। अब विधानसभा चुनाव का रण जीतने के लिए सपा की कोशिश यही दिखाने की है कि भाजपा से बसपा नहीं, केवल सपा ही मुकाबला कर सकती है।

बसपा-सपा गठजोड़ “बुआ-बबुआ” के तौर पर 2019 में देखने को मिला था जिसमें राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल था। राज्य की 80 लोकसभा सीटों में इस गठबंधन के हाथ कुल 15 सीटें लगीं जिनमें 10 बसपा को तो 5 सपा को मिलीं। यहां बसपा ने सपा की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन करके दिखाया तो वहीं, चुनाव बाद बुआ-बबुआ की जोड़ी ने ऐलान कर दिया कि वो आगे साथ नहीं लड़ेंगे। इसके साथ ही 2022 में इन दोनों के साथ आने की अटकलों पर पूर्ण-विराम लग गया था।

यह भी पढ़ें- BSP Brahman Sammelan: 2007 की तर्ज पर चुनाव लड़ने की तैयारी, पूरे UP में ब्राह्मण सम्मेलन करेगी BSP, सतीश मिश्र को कमान

बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में शुरूआत से ही पिछड़े-दलित-शोषित और मुसलमान की राजनीति व उन पर केंद्रीत होकर चुनाव लड़ती आई है और यही वजह है कि पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में बुआ ने बबुआ को पछाड़ दिया था और सर्वाधिक मुस्लिम मत हासिल करने में सफल रही थीं। इसका एक बड़ा कारण था कि मायावती ने बसपा से कुल 97 मुस्लिम उम्मीदवार 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में उतारे थे और लोकसभा चुनाव में अखिलेश के मना करने के बाद भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। इसी वजह से मुस्लिम वर्ग ने बसपा को अपना हिमायती समझा और लोकसभा में भी इसी कारण अखिलेश को 05 और मायावती को 10 सीटें हासिल हुईं।

वैसे तो उत्तर प्रदेश में अधिकतर मुस्लिम मतदाता सपा और बसपा के पलड़े में ही झुकाव रखते आए हैं, पर इस बार खुद को “राजनीति की लैला” बताते हुए मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश में खड़ा करने की कोशिशों को बढ़ा दिया है।

जहां अभी वो एक ओर भागीदार संकल्प मोर्चा के तहत सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर संग हाथ मिलाकर अन्य राज्यों की भांति “वोट कटुआ” बनने की जुगत में लगे हैं, तो वहीं सपा-बसपा को भाजपा का साथीदार बोलने से भी नहीं चूक रहे। अपने बयानों में तल्खी लिए ओवैसी ने कहा कि- “जो पार्टी हमें साथ नहीं लेगी, वो बीजेपी को नहीं हरा सकती, सपा-बसपा का गठबंधन बीजेपी को नहीं हरा पाएगा, यह हमने 2019 के चुनाव में देख लिया। कांग्रेस और सपा का गठबंधन भी बीजेपी को नहीं हरा पाएगा, ये हमने 2017 में देखा था।”

हास्यास्पद बात यह है कि अभी खुद की सियासी पिच गीली है फिर भी ओवैसी बड़ी बातें कर रहे हैं, जहां राजभर से सीटों के बंटवारे को लेकर इन दोनों की कलह गठबंधन होने से पहले ही सामने आ चुकी है; तो वहीं अब सामाजिक कार्यक्रमों में भी पहले की तरह राजभर और ओवैसी ने एक साथ जाना और मिलना कम कर दिया है।

जहां बहुजन समाज पार्टी अब धीरे-धीरे सपा की ओर आक्रामक तेवर दिखा रही है तो बीजेपी के प्रति अलग ही व्यवहार दिख रहा है। यही नरमी मायावती के मन में क्या चल रहा है उसपर प्रश्न खड़े करती है। विपक्ष भी अब इसे भाजपा की तरफ मायावती का झुकाव और आने वाले समय में एक साथ आने के संकेत के रूप में प्रचारित करने में लगे हुए हैं।

इसकी पुष्टि करने के लिए हाल फिलहाल के किस्सों को उठाकर देखा जा सकता है, क्योंकि जो मायावती तीखे तेवर दिखाते हुए भाजपा को घेरा करती थीं वो प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध कोई टिप्पणी  नहीं करतीं, न ही अल कायदा वाले मामले में कोई बयान, धर्मांतरण को लेकर कोई टिप्पणी न करनी हो या फिर जनसंख्या नियंत्रण कानून की उत्तर प्रदेश में तैयारी।

इन सभी मामलों पर मायावती की ओर से भाजपा को घेरते हुए न ही कोई बयान दिया गया और न ही कोई तीखे हमले किए गए। बातें तो यह भी चल रही हैं कि ‘बहन जी’ मुस्लिम मतदाता साधेंगी और बाद में भाजपा को हाथी की सवारी से जीत दिलाने में मदद करेंगी। फिलहाल सियासी बयार कहाँ मुड़ती है वो जानने में समय शेष है पर यह तो प्रमाणित है कि ये सब अकारण तो नहीं है।

अंत में ये तो तय है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वर्ग उसी दल को वोट करेगा जो बीजेपी को हरा सके, फिलहाल के लिए ऐसा कोई दल नहीं नजर आ रहा जो भाजपा को टक्कर दे सके। फिर यही वोट विभिन्न दलों में बंदरबांट का शिकार हो जाएगा, और सपा-कांग्रेस-बसपा व सुहेलदेव-एआईएमआईएम जैसे दलों के बीच बंटने के बाद इससे लाभ भाजपा को ही मिलेगा, और फिर सरकार भी बन जाएगी।

Exit mobile version