कर्नाटक में बीजेपी की स्थिति को लेकर एक उक्ति थी, कि जब तक वहां बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री रहेंगे, बीजेपी का अस्तित्व तब तक ही रहेगा; और जिस दिन येदियुरप्पा पार्टी से किनारे किए गए, उसी दिन बीजेपी कर्नाटक समेत पूरे दक्षिण भारत से साफ हो जाएगी। विपक्षी बीजेपी की इस स्थिति का मखौल तक उड़ाते थे, लेकिन पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक ऐसा मार्ग निकाला कि येदियुरप्पा ने स्वयं ही सीएम पद से इस्तीफा देकर पार्टी की चुनौतियां खत्म कर दीं। लिंगायत समुदाय का डर दिखाकर बीजेपी को येदियुरप्पा से सीएम पद न लेने की बातें कहीं जाती थीं, परन्तु येदियुरप्पा के उत्तराधिकारी के रूप में जिन्हें चुना गया है, वो बसवराज बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं, जिससे कांग्रेस की लिंगायत समुदाय को साधने की प्लानिंग फेल हो गई है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कर्नाटक का आंतरिक मामला इतनी सहजता से हल करके पीएम मोदी और नड्डा के नेतृत्व में बीजेपी ने एक मास्टरस्ट्रोक खेला है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद को लेकर पिछले 6 महीने से बवाल जारी था, बीएस येदियुरप्पा के विरुद्ध अनेकों बार उनके ही विधायकों ने आवाज उठाई थी, और ये कहा गया था कि कर्नाटक का मुख्यमंत्री बदला जाए। इसके विपरीत येदियुरप्पा अपनी राजनीतिक ताकत के दम पर अनेकों बार पार्टी आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन कर चुके थे। येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं, जिसका कर्नाटक की राजनीति में विशेष प्रभाव है। ये माना जाता था कि लिंगायतों का येदियुरप्पा को समर्थन प्राप्त था, इसलिए बीजेपी कोई भी बड़ा निर्णय येदियुरप्पा को नाराज करके नहीं ले सकती है, लेकिन अब पार्टी ने कर्नाटक के लिए अहम निर्णय ले लिया है।
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मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद पार्टी ने उनका पद राज्य के गृहमंत्री बसवराज बोम्मई को दिया है, जो कि राज्य के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। पूर्व सीएम एस आर बोम्मई के बेटे बसवराज बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं। कांग्रेस की प्लानिंग ही थी कि येदियुरप्पा के हटते ही इसे उनका अपमान बताकर लिंगायत समुदाय से जोड़ राजनीतिक लाभ लिया जाएगा, और पार्टी ने बीजेपी के लिंगायत समुदाय के विधायकों को तोड़ने के प्रयास भी शुरू कर दिए थे, लेकिन बोम्मई को सीएम पद देकर बीजेपी ने कांग्रेस की प्लानिंग पर पानी फेर दिया है।
ऐसा नहीं है कि बोम्मई को केवल इसलिए सीएम पद दिया गया क्योंकि वो लिंगायत समुदाय से आते हैं, बल्कि उन्होंने गृहमंत्री रहते हुए प्रदेश के विकास के लिए अपनी कार्यक्षमता भी साबित की है। जब पार्टी से खिन्न होकर येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ी थी, उस समय बीजेपी की कर्नाटक ईकाई को एकजुट रखने में बोम्मई की विशेष भूमिका थी। जल संसाधन मंत्री रहते हुए हारेविया के शिगगांव में पाइपलाइन से 100 प्रतिशत सिंचाई परियोजना का काम संपन्न कराने का श्रेय बोम्मई के पास ही है। इतना ही नहीं, वो राज्य का कानून मंत्रालय भी संभाल चुके हैं, जो उनके राजनीतिक कौशल को प्रतिबिंबित करता है
बोम्मई को लेकर कहा जाता है कि उनके सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से अच्छे संबंध हैं, जिसके चलते विधानसभा में महत्वपूर्ण बिलों को पास कराने और विपक्षी दलों को अपनी बात मनवाने में बोम्मई हमेशा ही सफल होते हैं। इसके अलावा बैंगलोर में हुए केजी हल्ली दंगों को अतिशीघ्र शांत कराने में भी गृहमंत्री के नाते उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जो बताता है कि वो एक कुशल प्रशासक हैं। अपनी विधानसभा सीट के अलावा आस-पास की महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों पर भी बोम्मई की पकड़ मजबूत मानी जाती है, जिसके चलते इसे बीजेपी के एक दूरगामी राजनीतिक निर्णय के रुप में भी देखा जा रहा है।
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बीजेपी नेताओं के लिए एक नियम है कि 75 वर्ष से अधिक के लोगों को सभी पद त्यागने होंगे। येदियुरप्पा ऐसे अपवाद थे, जो कि 78 वर्षीय होने के बावजूद सीएम पद पर थे, लेकिन उनका एक विराट राजनीतिक प्रभाव है, ऐसे में पार्टी ने उन्हें नाराज किए बिना उनका इस्तीफा उम्र की अधिकता होने के चलते दिलवाया, और उनके ही पसंदीदा नेता को मुख्यमंत्री बनाकर उनका सम्मान भी रखा। कुल मिलाकर कहें तो पार्टी ने येदियुरप्पा को अपनी कुशल कूटनीति के अंतर्गत साइड लाइन करके कांग्रेस को झटका भी दे दिया और वोट बैंक को चोट भी नहीं पड़ने दी। इतना ही नहीं पार्टी ने राज्य में बड़े नेतृत्व परिवर्तन के द्वार भी खोल दिए हैं, और इसके पीछे की पूरी रणनीति निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की ही है, इसीलिए इसे मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है।