सनातन धर्म, हिंदू संस्कृति और भारत को कलंकित करने के लिए एक वैश्विक अभियान प्रारंभ हो चुका है

सनातन

ज़रा सोचिए, क्या जाति व्यवस्था हिंदू धर्म का सार है? क्या सामाजिक पदानुक्रम केवल हिंदू समाज मेंं मौजूद थे? क्या ब्राह्मणवाद हिंदू धर्म का पर्याय है? कम से कम, कैलिफ़ोर्निया के शिक्षा अधिकारी ऐसा मानते हैं। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका स्थित एक हिंदू समूह ने अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। मुकदमें के अनुसार, कैलिफोर्निया मेंं आधिकारिक इतिहास पाठ्यक्रम ने नकारात्मक उदाहरणों को हटाकर अन्य धर्मों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया है, सिवाय हिन्दू धर्म के। ऐसे ढेरों उदाहरण और घटनाए भरे पड़े हैं जिन्हें संकलित करने के लिए शायद शब्द कम पड़ें। लेकिन, सनातन के विरोधियों को इस बात का भान हो गया है कि सनातन को पराजित नहीं किया जा सकता सिर्फ बदनाम किया जा सकता है। यह कुकृत्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तर पर पुरजोर तरीके से जारी है। मीडिया, वामपंथी और उदारवादी बुद्धिजीवी सभी इसको अपमानित करने में जी जान से जुड़े हुए है। एक बार फिर ये लोग कुछ ऐसा ही करने के लिए एकजुट हो रहे हैं।

दरअसल, मुहम्मद जुनैद और मीना कंदासामी जैसे वक्ताओं के साथ हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड सहित 45+ केंद्रों या 40+ विश्वविद्यालयों के विभागों द्वारा ‘dismantling global hindutva’ नाम के कार्यक्रम को 10-12 सितंबर को गर्व से प्रायोजित करने की योजना बनाई है। इस सम्मेलन का कंटेंट इसके वास्तविक उद्देश्य को दर्शाता है। उदाहरण के लिए इन शब्दों को ही देख लीजिये जि,में कहा गया है, “भारत में उग्रवादी हिंदू समूहों का उदय और धार्मिक अल्पसंख्यकों और अन्य हाशिए के समुदायों के खिलाफ हिंसा की वृद्धि को वैश्विक मीडिया सहित अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है।”

इस सम्मेलन के लिये योगदान देने वाले और समर्थक प्रायोजकों में Northwestern, हार्वर्ड (Harvard), यूपीएन, प्रिंसटन, स्टैनफोर्ड, कॉर्नेल, यूसी बर्कले और एमोरी जैसे विश्वविद्यालय शामिल हैं। अब आप समझ ही सकते हैं कि इस सम्मेलन को लेकर ये वामपंथी कितने गंभीर है। इस सम्मेलन की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठने चाहिए। जब अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादी आतंक फैला रहे वहां हिंदुओं के कथित आतंक की बात करना किसी सुनियोजित योजना से कम नहीं है।

“वैश्विक हिंदुत्व को खत्म करना” पर ये लोग अपने विचार रखेंगे। कैसे बीजेपी और आरएसएस हिंदुत्व की आड़ में कथित तौर पर अन्य धर्म को पीड़ित कर  रही, कैसे सत्ता में रहकर भ्रम फैला रही, पर ये सम्मेल प्रकाश डालेगा। यदि कहीं कुछ तार्किक विरोध हुआ तो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर चुप करा दिया जाएगा। रोनाल्ड रीगन ने इसे अच्छी तरह से सारांशित किया: “ऐसा कहा गया है कि राजनीति दूसरा सबसे पुराना पेशा है। मैंने सीखा है कि यह पहले वाले(धर्म)से काफी मिलता-जुलता है।” अब इनकी ये योजना कितनी सफल होगी इसे समझना आसान है।

गौर करें तो भारत पर वामपंथ, साम्राज्यवाद, धर्मांधता और ब्रिटिश उपनिवेश सभी ने वार किया। भारतीय इतिहास ने मुग़ल, मंगोल, पारसी, पादरी, अंग्रेज़, डच और न जाने कितने शासकों और घटनाओं का दौर देखा। बहुत आए-गए, लेकिन भारत को कमजोर नहीं कर पाएँ। वो कहते है न- मिट गए मिश्र, रोम और ईरान जहां से, कुछ तो बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी। लेकिन, इतिहास के इन क्रूरतम झंझावातों को झलने के बाद भी आखिर क्या कारण है कि भारत आज भी इतने मजबूती और शान से खड़ा है।

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अगर तारीख को खंघाले तो हम पाएंगे की एक कवच है जिसने भारत का रक्षण किया और वो है- ‘’सनातन’’। इस्लाम ने जब कट्टरता से जीतने की कोशिश की, सनातन ने उसे अपने अथाह सिंधु में समाहित कर लिया। अंग्रेज़ो ने जब पाश्चात्य आधुनिकता से जीतने की कोशिश की, सनातन ने उसे और परिष्कृत किया। एक तरफ जहां इस्लामिक आक्रांताओं ने लोगों को धर्म का डर दिखाकर इस्लाम धर्म को मानने पर मजबूर किया तो वहीं दूसरी तरफ सनतान धर्म में भगवान ने कुरुक्षेत्र में धर्म का उत्कर्ष दिखाकर अर्जुन को भयमुक्त किया। कहावत है- योग्यतम की उत्तरजीविता।

हिन्दुत्व ने इसे चरितार्थ किया और अपने लचीलेपन, सहिष्णुता, परिवर्तन और वसुधेव कुटुंबकम के सार्वभौमिक सिद्धान्त से वो केवल मजहब तक ही सीमित नहीं रहा वरन जीवन, तर्क और विज्ञान का पर्याय बन गया। इतना वृहद, इतना सार्वभौमिक की पार्सिया ने हिन्दू नाम दिया। वरना इस धर्म ने खुद को कभी एक किताब, एक पैगंबर और एक ईश्वर की संकीर्णता में बांधा ही नहीं। इतने प्रहारो के बाद भी हिन्दुत्व और हिंदुस्तान नहीं गिरा, उल्टे सबको इसे विशाल सिंधु में समाहित कर लिया।

आधुनिक दौर में कुछ विचार, धर्म, राष्ट्र और लोगों को ये बात चुभ रही है। इसीलिए वो नाना प्रकार के उपायों से हिन्दुत्व को तोड़ने और बदनाम करने में लगे हुए हैं। कहीं शासन से, कहीं मीडिया से तो कहीं छद्म धर्मनिरपेक्षता और प्रोपेगेंडा से। इस कार्य मेंं कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, एनजीओ, सरकार, वामपंथी, छद्म उदरवादी और मीडिया समूह भी शामिल है। आप एक और उदाहरण से इसे समझ सकते है।

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नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी भारत की छवि को एक असहिष्णु राष्ट्र के तौर पर दिखाई गई। संविधान का अनुच्छेद 11 भारतीय संसद को नागरिकता के मुद्दे पर कानून बनाने का विशेषाधिकार देता है। भारत ने यह नागरिकता संशोधन कानून उसी संविधान प्रदत विशेषाधिकार के तहत बनाया। उन कट्टर इस्लामिक देशों में मौजूद अल्पसंखयकों के जान माल के सुरक्षा के लिए संशोधन किया। लेकिन इसको लेकर ऐसा भ्रम फैलाया गया कि अल्पसंख्यक ही अल्पसंख्यक हितों के खिलाफ खड़े हो गए। पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के दौरे के समय दिल्ली को दंगो के आग में झोका गया। शाहीन बाग को बंधक बनाया गया। पूरे देश में दंगे हुए। विदेशी और घरेलू मीडिया दोनों ने नकारात्मक और पक्षपातपूर्ण रेपोर्टिंग की। पीएफ़आई को भ्रम फैलाने के लिए विदेशों से पैसे मिलें।

इतना ही नहीं इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच देने के लिए फोर्ब्स ने शाहीन बाग की दादी को ‘’सबसे ताकतवार लोगों की सूची’’ मेंं भी शामिल किया! क्या उस समय भारत मेंं नारी शक्ति का सबसे उत्कृष्ट और उपयुक्त उदाहरण बिकलिस बानो ही थीं जिन्हें न पारित हुए कानून का कुछ पता था और न ही आंदोलन के उद्देश्य का? जी नहीं, उनके नाम को उछालने के पीछे सम्मान नहीं, बल्कि भारत की छवि धूमिल करना था। सनातन को कट्टर बता कर बदनाम करना था। वरना, उसी समय गणतन्त्र दिवस के अवसर पर प्रथम बार परेड टुकड़ी का नेतृत्व करती कैप्टन तान्या शेरगिल भी थी। वैसे भी इसके सभी कानूनी पहलुओं को उचित मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने इसके खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया।

कुछ ना समझ लोग सनातन को बदनाम करने के लिए तालिबान को आरएसएस और इस्लामिक अफगानिस्तान को भारत से जोड़ते हैं। यह हास्यास्पद है। तालिबान कट्टर है और आरएसएस समवेशी और सहिष्णु। तालिबान ने राष्ट्रवाद को खत्म कर देश पर कब्जा कर लिया जबकि आरएसएस ने राष्ट्रवाद की भावना को बलवती कर राष्ट्र सेवा को आधार मानता है। तालिबान दहशत के बल पर जीनेवाला हथियारबंद आतंकी संगठन है जबकि आरएसएस राष्ट्रसेवा को उद्दत स्वेक्छिक संघ। अब जिनके मन पटल पर अंधकार का पर्दा पड़ा हुआ है वो ये समझना ही नहीं चाहते। सनातन ने आरएसएस दिया और इस्लाम ने तालिबान।

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