सांप कितनी बार भी केंचुली बदल लें, वह हमेशा सांप ही रहेगा। ये कहावत हमारे पूर्वज कह गए हैं। अंग्रेजी में इसी को कहा जाता है कि नेचर और सिग्नेचर, दोनों कभी नहीं बदलते है। तालिबान द्वारा काबुल कब्जे के बाद तालिबानियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस क्या कर दिया, बहुत से छद्म धर्मनिरपेक्षों को तालिबान में ‘नया तालिबान’ दिखने लगा। परंतु तालिबान के कब्जे के तुरंत बाद ही अपने स्वरूप में वापस दिखाई दे रहा है, चाहे वो महिलाओं के साथ बर्बरता हो या विरोधियों को गोली से छलनी करना हो।
दरअसल, जब तालिबान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया तब कुछ जज्बाती मेंढक इस आतंकी संगठन के बचाव में उतार गए और यह तर्क देने लगे कि तालिबान बादल गया है क्योंकि, ‘तालिबान तो पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करता था अबकी बार तो वह कर रहा है’, ‘तालिबान ने तो बोला है कि महिलाओं के अधिकार एकदम सुरक्षित होंगे’, ‘तालिबान 2.0 तो अल्पसंख्यकों के अधिकार की वकालत कर रहा है, मतलब अच्छे दिन आने वाले है।’ हालांकि इस्लामिस्टों और वामपंथियों द्वारा बनाए गए इस तालिबान 2.0 का हौवा एक गुबारे की तरह पल भर में ही क्षत-विक्षत हो गया। पूत के पांव पालने में ही दिख गए जब तालिबान ने जलालाबाद में विरोध कर रहे अफगानी युवकों को उसी तरह बर्बरतापूर्ण तरीके से हत्या कर दी जिसके लिए वे जाने जाते हैं।
अपने वास्तविक स्वरूप में तालिबान
तालिबान 2.0 के लड़ाकों ने अभी ही पहला कदम उठा दिया है जिससे आगे आने वाले बर्बरतापूर्ण दौर का सच सबको समझ आने लगा है। 20 साल तक अमेरिकी सैनिकों के मौजूदगी में अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने स्वतंत्रता, लोकतंत्र और समरसता का आनंद उठाया था। भले ही बहुत से लोग सैनिकों के डर से इन सिद्धांतों को अपना रहे थे लेकिन एक बड़ी आबादी इसके खिलाफ थी। इसी के चलते तालिबान भले ही अपने क्रूर रूप में शासन करने के लिए तैयार है पर लोगों के दिल में जगह बनाना उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती है। तालिबान के शासन में आने के साथ ही लोगों के तरफ से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। बुधवार को तालिबान ने पहली बार अपने खिलाफ ऐसे विरोध प्रदर्शन को देखा। जलालाबाद में अफगानी युवा आतंकी संगठन का विरोध कर रहे थे। उन्होंने चौराहे पर अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोशिश की।
विरोध करने वालों की हत्या
तालिबान 2.0 लोकतांत्रिक संगठन का क्या करता इसे जानने के लिए किसी रॉकेट साइन्स की आवश्यकता नहीं है। तालिबान ने विरोध के स्वर को किसी भी अन्य तानाशाही की तरह, बंदूक के नीचे दबा दिया। कुल मिलाकर 3 अफगानी लोगों की हत्या कर दी गयी। तालिबान ने पत्रकारों को भी नहीं छोड़ा। इस रवैये से तालिबान 2.0 के मानवतावादी दावों की धज्जियां उड़ गई है। भले ही तालिबान 2.0 अपने इस दौर में तमाम बदलाव की बात कर रहा है, असल में उसके यह दावे सिर्फ इसलिए है ताकि उसे वैधता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके।
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जलालाबाद के बाद अफ़ग़ान के अन्य प्रांतों में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। नंगरहार, खोस्त, बामयान प्रान्तों में भारी संख्या में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। कुनार असादाबाद में भी राष्ट्रीय ध्वज फहराकर विरोध किया गया है। अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिक तालिबान से खुश नहीं है और वो अपनी जान की परवाह किए बगैर विरोध कर रहे हैं। महिलाएं भी मुखर होकर तालिबानी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है। खबर के मुताबिक, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं हाथों में तख्तियां लेकर रोड पर विरोध कर रही है। वायरल वीडियो में सड़क पर नारे और तख्तियां लिए महिलाएं दिख रही है। जिस तरीके से तालिबान 2.0 अपने वास्तविक स्वरूप में दिखाई दे रहा है उससे यह स्पष्ट है कि इन विरोध करने वालों का भी क्या हश्र होने वाला है।
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तालिबान 2.0 के लिए सबसे बड़ी समस्या ये विरोध प्रदर्शन नहीं है। बड़े पैमाने पर प्रदर्शन या ये कहिए कि विद्रोह पंजशीर से शुरू होने की संभावना है। पंजशीर अफ़ग़ानिस्तान का वो प्रान्त है जो अभी भी तालिबान नियंत्रण से बाहर है। वहाँ पर अमरुल्लाह सालेह का गढ़ है। वही से नॉर्दर्न अलायन्स की शुरुआत हुई थी। वहीं से सालेह ने अपने आप को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है और एन्टी-तालिबानी ताकतों को एक करके तालिबान से लड़ने का ऐलान किया है। तालिबान से बचे हुए सभी लड़ाकों को पंजशीर बुलाया गया है जिससे उम्मीद है कि आने वाले वक्त में बड़ा धमाका हो सकता है।
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इन सभी परिस्थितियों में तालिबान 2.0 बुरे तरीक़े से फंस गया है। एक तरफ वो शरिया लागू करना चाहता है दूसरी ओर उसे लोकतांत्रिक देशों से मान्यता चाहिए। हाल ही में तालिबानी वहीदुल्ला हाशिमी ने कहा है कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र का कोई स्थान नहीं है। यहां शरीया के हिसाब से प्रशासन चलेगा। इस दोनों विपरीत परिस्थितियों में तालिबान के विरोध रोकना मुश्किल होगा या फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से स्वीकृति पाना कठिन होगा।