राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह: अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति और तालिबान के खिलाफ अंतिम उम्मीद

पंजशीर का शेर अभी जिंदा है!

राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह

भागना आसान है, निभाना कठिन है। अफ़ग़ानिस्तान को पूरी दुनिया द्वारा अकेले छोड़ देने बीच अच्छी खबर यह है कि वहां अभी भी एक इंसान है, जो अभी भी इस क्रूर तानाशाह तालिबान से लड़ने की हिम्मत रखता है। उस व्यक्ति का नाम है अमरुल्लाह सालेह, वह अफ़ग़ानिस्तान के उपराष्ट्रपति है और कार्यवाहक राष्ट्रपति है।

हाल ही में राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने ट्वीट किया है, ‘स्पष्टीकरण, अफ़ग़ानिस्तान के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति के मृत्यु, उनके गैरमौजूदगी, उनके इस्तीफे और उनके भाग जाने के बाद, पहला उपराष्ट्रपति ही कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है। मैं इस वक्त देश में ही मौजूद हूँ और सही मायनों में कार्यवाहक राष्ट्रपति हूँ। मैं सारे नेताओं द्वारा उनके मत को पाने की कोशिश करूंगा।’

 

यह ट्वीट तब आया है जब संयुक्त अरब अमीरात ने अपने देश में अशरफ गनी के मौजूदगी को स्वीकार किया है। ज्ञात हो कि तालिबान द्वारा काबुल कब्जे से पहले ही अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए थे। काबुल में तालिबान के कब्जे के बाद भी अपने ट्वीट में राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा था, “मैं कभी भी, किसी भी परिस्थिति में तालिबानी आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने कमांडर और नायक अहमद शाह मसूद की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी है। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा।”

कौन है अमरुल्लाह सालेह?

अमरुल्लाह सालेह अफ़ग़ानिस्तान के नेता है, वो वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान के उप राष्ट्रपति है। उनका जन्म 1972 में, अफ़ग़ानिस्तान के पंजशीर प्रान्त में हुआ था। 1990 के समय मे जब सोवियत संघ के समर्थन से अफगानी फौज राज कर रही थी तब अमरुल्लाह ने पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग ली और बाद में मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के मार्गदर्शन में युद्ध भी किये। 1990 में ही सालेह, नॉर्दन अलायंस के सदस्य बने। नॉर्दर्न अलायंस या फिर यूनाइटेड फ्रंट कई सारे क्षेत्रीय लड़ाकों का समूह था जो तालिबान के नियंत्रण के खिलाफ लड़ते थे। इन समूहों को अमरीका, भारत समेत तमाम देशों से मदद प्राप्त थी।

2004 में इस्लामिक राज्य अफ़ग़ानिस्तान बनने के बाद राष्ट्रपति हामिद करजई ने सालेह को सुरक्षा के राष्ट्रीय निदेशक बनाया। उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के एजेंट दुनिया भर में काम करने लगे। इन्हीं एजेंटों ने सबसे पहले बताया कि ओसामा बिन लादेन, पाकिस्तान के एबटाबाद से 20 किलोमीटर के परिधि में है। परवेज मुशर्रफ ने बातों को सिरे से नकार दिया। 2010 में एनडीएस से त्यागपत्र देने के बाद सालेह, करजई के खिलाफ हुए और अंततः आगे चलकर उपराष्ट्रपति बने।

अमरुल्लाह सालेह पर इस लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान कई बार हमले हुए। 2019 में सालेह के कार्यालय में 3 आतंकी चले गए और एक ने खुद को बम से उड़ा लिया। उस हादसे में 20 लोग मारे गए लेकिन सालेह सुरक्षित रहे। 2020 में फिर सालेह पर काबुल में हमला हुआ जिसमें 10 लोग मारे गए।

क्यों डर रहा है इनसे तालिबान और पाकिस्तान!

दोनों के डरने की वजह सालेह की इच्छाशक्ति और तेज दिमाग है। तालिबान जानता है कि बिना यूनाइटेड फ्रंट के, उसको हराना नामुमकिन था। उसे इस बात का डर रहा है कि भविष्य में ऐसी फिर कोई घटना घटित हो सकती है। अभी काबुल में तालिबान के कब्जे के बाद सालेह को लेकर काफी खबरे उड़ी। किसी ने यह बताया कि वह ताजिकिस्तान में है। कई लोगों ने यह माना कि वह अशरफ गनी के साथ प्लेन से भाग गए। उसी के बाद सालेह ने अपनी स्थिति पर एक ट्वीट किया। एक तस्वीर भी बाहर आई जिसमे अमरुल्लाह सालेह, अहमद मसूद के साथ देखे गए। उन दोनों के साथ पूर्व रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह खान मोहमद्दी भी थे। अहमद मसूद, मशहूर नायक अहमद शाह मसूद का बेटा है। ये मीटिंग पंजशीर में हुई जो नॉर्थरन अलायन्स का गढ़ माना जाता है।

सम्भावना है कि राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह छोटे-छोटे कबीलों को लेकर तालिबान के खिलाफ लड़ाई की तैयारी कर रहे हो। अगर ऐसा सच है तो भारत समेत विश्व के नेताओं को उनको पीछे से ही सही, समर्थन देना चाहिए क्योंकि अमरुल्लाह अगर तालिबान के खिलाफ है तो वह सही साइड खड़े है। अन्य देशों को भी सीखना चाहिए कि कैसे मुश्किल के वक़्त में तटस्थता सही नही होती है। हाल ही में ट्रिब्यून के मुताबिक ऐसी संभावना जताई जा रही है की सालेह के लोगों ने तालिबान से चारिकर क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले किया है।

सालेह ने हमेशा ही अमेरिका को सहयोगी माना है लेकिन उनका यह भी मानना है कि तालिबान और आतंकवाद के खिलाफ होने वाली लड़ाई को अफगानिस्तान के लोगों द्वारा लड़ना चाहिए। एक वायरल वीडियो में राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह यह कहते हुए दिख रहे,

“अमेरिका अगर कल अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर जाने का फैसला कर ले तो हम कुछ नही कर सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते है कि हम उन्हें यह बताए की हमारा लक्ष्य क्या था। फिर भी अगर वो जाना चाहते है तो यह उनका निर्णय होगा। हम गरीब थर्ड वर्ल्ड देश है, हमको अपनी क्षमताएं मालूम है। महाशक्ति होने के मौलिक कर्तव्यों के बाद भी वो जाने का फैसला करते है तो यह उनका निर्णय है लेकिन हमारी लड़ाई हमेशा जारी रहेगी। ये पहाड़ हमेशा यहां रहेंगे, यह नदियां हमेशा यहाँ बहेंगी। तालिबान के मौजूदगी से हमारा अस्तित्व खत्म नही होगा।”

17 अगस्त को अपने ट्वीट में सालेह ने कहा है कि, “अफ़ग़ानिस्तान के संदर्भ में अमेरिकी राष्ट्रपति से बात करने का कोई तुक नही है। हम अफगानियों को यह बताना होगा कि अफगानिस्तान वियतनाम नही है और तालिबान, वियतनाम कांग्रेस नही है। अमेरिका और नाटो की तरह हमनें इच्छाशक्ति को नही खोया है। विरोध के स्वर को मजबूत करने के लिए जुड़े!”

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अफगानिस्तान का वर्तमान सच, हमेशा के लिए मान लेना थोड़ी जल्दीबाजी होगी क्योंकि पंजशीर का शेर अभी जिंदा है।

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