पश्चिम के अनुसार, प्राणायाम Cardiac coherence breathing है

पाश्चात्य संस्कृति एक और भारतीय पद्वति को ‘पाश्चात्य चोला’ ओढ़ाकर अपना सिद्ध करना चाह रही है!

पाश्चात्य संस्कृति

आपको याद होगा कि जब हम एक बच्चे थे, हमें सांस लेने के लिए एक अभ्यास सिखाया जाता था। पांच सेकंड के लिए श्वास अंदर लें, फिर अपनी सांस रोकें और फिर धीरे-धीरे इसे बाहर निकालें। हम सभी इसे ‘प्राणायाम’ के नाम से जानते हैं। यह हमारी संस्कृति, हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। पाश्चात्य संस्कृति एक कला में बहुत निपुण है। मेहनत कोई भी करे, कार्य कोई भी करे, पर श्रेय चुराने में इनका कोई सानी नहीं है। यूरोप हो या अमेरिका, कहानी वही की वही है। यही बात हाल ही में फिर सिद्ध हुई, जब योग पद्वति के ‘प्राणायाम’ को अब अमेरिका Cardiac Coherence Breathing के नाम से अपना बनाने का प्रयास कर रहा है।

Scientific American मैगजीन नामक इस पत्रिका के ट्वीट के अनुसार, Cardiac Coherence Breathing Exercises से हृदयगति स्थिर रहती है और Anxiety का खतरा भी कम रहता है। हालांकि, जो फोटो इस मैगजीन ने उपयोग किया, उससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि कैसे पाश्चात्य संस्कृति एक और भारतीय पद्वति को ‘पाश्चात्य चोला’ ओढ़ाकर अपना सिद्ध करना चाह रही है, क्योंकि जो मज़ा Cardiac Coherence Breathing Exercises बोलने में है, वो प्राणायाम बोलने में कहाँ?

वास्तव में प्राणायाम प्राचीन योग शास्त्र का एक अभिन्न अंग है, जिसके अनेकों लाभ है। इससे स्वास्थ्य भी नियंत्रण में रहता है तथा इससे श्वसन तंत्र [Respiratory System] सशक्त रहता है, जिससे हृदयाघात का खतरा भी कम रहता है। प्राणायाम का उल्लेख योग शास्त्र के साथ आपको वेद, उपनिषद एवं स्वास्थ्य से संबंधित भारत के प्राचीन इतिहास के अनेक पुस्तकों में मिल जाएगा।

ऐसे में अमेरिका का यह घटिया प्रयास भारतीयों को रास नहीं आया, और उन्होंने इसकी आलोचना भी की, TFI ने भी मोर्चा संभालते हुए अमेरिका और पाश्चात्य संस्कृति को ‘क्रेडिट चोरी’ के लिए निशाने पर लिया। स्वयं TFI मीडिया के संस्थापक अतुल मिश्रा के अनुसार, “उन्होंने पहले हमारी सांख्यिकी प्रणाली यानि Number System चुराई, उन्होंने हमारा Calculus चुराया, उन्होंने ग्रहों के motion पर आधारित सिद्धांत चुराए, योग को उन्होंने PT ड्रिल में परिवर्तित कर दिया। घी और पत्तल पर भी अधिकार जमाने का उन्होंने प्रयास किया, और अब वे प्राणायाम को Cardiac Coherence Breathing बता रहे हैं। एक हम हैं कि अपने ही कल को कोस रहे हैं।”

इस पर TFI ने एक व्यंग्यात्मक ट्वीट डालते हुए पोस्ट किया,

“पाश्चात्य संस्कृति की क्रेडिट चोरी ऐसे ही चलती रही, तो स्थिति कुछ यूं होगी –

खीर बन जाएगा Milky Rice Amuse Bouche

दम आलू को Fried Potato Mirepoix कहा जाएगा

डोसा को Rice Dough Chiffonade का नाम दे दिया जाएगा

तथा तड़के वाली दाल को Gremolata Lentils कहा जाएगा

यही नहीं पालक पनीर को Spinach Cottage Cheese Macerate” बना दिया जाएगा।

लेकिन ये लड़ाई कोई नई बात नहीं है। क्रेडिट चोरी की यह लड़ाई सदियों पुरानी है। अभी कुछ ही दिनों पहले TFI ने एक लेख के जरिए बताया कि कैसे जब हज़ारों वर्ष पहले पाश्चात्य संस्कृति अधपके मांस का भक्षण करती थी, तब भारतीय संस्कृति प्लांट आधारित डायट को बढ़ावा देती थी, और अनेकों अन्न से परिपूर्ण लड्डुओं के सेवन को भी बढ़ावा देती थी, जो सेहत के लिए बेहद गुणकारी थी। जो आज विश्व के लिए Health Conscious है, उसे सदियों पहले भारत ने चिन्हित किया था।

परंतु पश्चिमी देशों की यह क्रेडिट चोरी यहीं तक सीमित नहीं रही। हमें आज तक समझाया गया है कि ग्रहों के सिद्धांत के बारे में गैलीलियो और कोपरनिकस जैसे वैज्ञानिकों ने खोज की। लेकिन ऐसा तो संभव है नहीं कि उन्होंने यूं ही खोज निकाला हो। यदि उनसे पहले ग्रहों के मोशन, सूर्यग्रहण इत्यादि के बारे में कोई ज्ञान ना होता तो भारत में नवग्रह का सिद्धांत जैसे आया? हमारे यहां सूर्यदेव की पूजा क्यों होती है? जिन सिद्धांतों के पीछे गैलिलियो और कोपरनिकस आज लाइमलाइट चुरा रहे हैं, उन्हें तो जाने कितने वर्षों पहले वराहमिहिर ने अपने ‘बृहद संहिता ‘ में संकलित कर लिया था।

आज जिसको न्यूटन और लीबनिज के कारण आधुनिक Calculus के नाम से जानते हैं, उसका मूल स्त्रोत तो आचार्य आर्यभट्ट ने वर्षों पहले खोज निकाला था। 15वीं और 16वीं शताब्दी में विकसित केरल के गणित शास्त्र ने ऐसी पद्वति तैयार की, जिसने आधुनिक Calculus की नींव रखी। भोज पत्रों में तैयार इन सिद्धांतों ने पाश्चात्य सिद्धांतों से सदियों पहले कई गणित सिद्धांतों को न केवल खोज निकाला, अपितु उनकी आधारशिला भी स्थापित की। आज जिसे पाश्चात्य संस्कृति ट्रिगोनोमेट्री के नाम से जानती है, उसे वर्षों पहले तंत्रसंग्रह में नीलकांत नामक विद्वान ने संकलित किया था। गुरुत्वाकर्षण के जिस सिद्धांत के लिए न्यूटन को प्रशंसा की जाती है, उसे कई वर्षों पहले भास्कराचार्य ने अपने सिद्धांतों में बताया दिया था। बौधायन ने जो गणित में सिद्धांत दिए, उसी के आधार पर आज गणित में चर्चित Pythagoras Theorem पढ़ाया जाता है।

हालांकि, यह मामला यहीं पर नहीं खत्म होता। आजकल आप कोलगेट के चारकोल आधारित टूथब्रश / टूथपेस्ट के विज्ञापन अवश्य देखे होंगे। कई बार तो चारकोल नीम आधारित टूथपेस्ट के विज्ञापन भी प्रचलित होने लगे हैं।

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जब इन्ही संसाधनों का उपयोग भारतीय करते थे, तो पाश्चात्य संस्कृति हमारा उपहास उड़ाती थी। कोलगेट के कुछ एड स्पष्ट तौर पर हमारी मूल संस्कृति को निशाना बनाते थे, लेकिन आज हमारी ही संस्कृति को चुराकर अपने आप को ये कूल सिद्ध कर रहे हैं। हमारी हीन भावना भी ऐसी थी कि जो भी विदेशी कहता, हम बिना सोचे समझे सर झुकाकर मान लेते थे।

कभी जो विदेशी हमें पत्तलों पर खाने के लिए चिढ़ाते थे, आज वही पत्तलों पर खाने को बढ़ावा दे रहे हैं, और उसपर अपना अधिकार भी जमाना चाहते हैं। यह तो कुछ भी नहीं है। पाश्चात्य संस्कृति तो नीम, हल्दी और बासमती जैसे खाद्य पदार्थों तक को अपना सिद्ध करने पर तुली हुई थी, जिसके लिए भारत को लंबी, वैधानिक लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी थी। हालांकि जो संस्कृति भारतीय संस्कृति द्वारा पेड़ के पत्तों से बने प्लेटों तक को अपना बनाने से बाज़ नहीं आए, उससे और क्या आशा की जा सकती है? लेकिन हम हैं कि अभी भी विदेशियों से वैलिडेशन के लिए लालायित रहते हैं।

ठीक इसी प्रकार से योग शास्त्र की पद्वति भी युगों-युगों से चली आ रही परंपरा है जिसे पश्चिम ने हॉट योगा और PT ड्रिल बना दिया है। हालांकि अब इसके लिए हमें पाश्चात्य संस्कृति के अनावश्यक क्रेडिट और वेलीडेशन से बचना होगा। हमें अपने आत्मसम्मान को सर्वोपरि रखते हुए पश्चिमी देशों को यह सिद्ध करना होगा कि हमारे शास्त्र को वे यूं ही अपनी सुविधा अनुसार नहीं चुरा सकते।

असल में जो Scientific American ने किया है, वो एक बार पुनः सिद्ध करता है कि क्रेडिट चोरी के मामले में पश्चिमी देशों का कोई सानी नहीं है। युगों युगों से जिस प्राणायाम के बल पर करोड़ों भारतीय एक स्वस्थ जीवन जीते आए हैं, अब उसे एक नया नाम देकर अमेरिका अपना बनाना चाहता है, जो उसकी छोटी सोच को उजागर करता है।

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