तीन कृषि कानूनों पर विभिन्न किसान संघों की आलोचना का सामना कर रही भाजपा उत्तर प्रदेश में अपने किसान संपर्क कार्यक्रम को गति देने में लगी हुई है। राज्य में लगभग छह महीने के अंतराल में विधानसभा चुनाव होने वाला है। भाजपा इस महीने उत्तर प्रदेश में मेगा किसान खाट पंचायत का आयोजन करने और किसान पहुंच अभियान शुरू करने के लिए तैयार है।
यहाँ मेगा का अर्थ आयोजन के स्तर से नहीं, बल्कि सभाओं की संख्या को दर्शाता है। इस कार्यक्रम में बड़ी सभा न करते हुए उसकी जगह खाट और चबूतरों पर छोटी चौपाल को तरजीह दी जाएगी। भाजपा अपने समर्थन में किसानों को लामबंद करने की उम्मीद के साथ इन सभाओं का आयोजन करने जा रही है। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में कृषि कानूनों का विरोध आठ महीने से अधिक समय से जारी है।
खाट पंचायत सभाएं राकेश टिकैत के किए कराए पर पानी फेरने का काम अवश्य करेंगी, क्योंकि मूलतः टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान पंचायतों का आयोजन कर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का समर्थन जुटाते रहे हैं। ज्ञात हो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश टिकैत के प्रभाव में रहने वाले उन क्षेत्रों में है जहां महेंद्र सिंह टिकैत ने जो मान और किसान हितों की लड़ाई लड़ने वाली छवि की फसल बोई थी, उसे उनके बेटे नरेश और राकेश टिकैत काटने की योजना में लगे हुए हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि पश्चिमी यूपी और विशेषकर मुजफ्फरनगर से सटे क्षेत्रों में राकेश टिकैत ने किसान यूनियन के नाम पर खूब राजनीतिक रोटियाँ सेंकी हैं।
जाट वोटों के प्रभाव की बात करें तो उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में 8.9% जाट मतदाता हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुल 17 प्रतिशत जाट वोट है। जिसमें मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, सहारनपुर, कैरान, बागपत, मुरादाबाद, मथुरा और आगरा प्रमुख हैं।
यह सर्वविदित सत्य है कि इन इलाकों में मुस्लिम मतदाताओं का वोट भाजपा के अलावा सभी क्षेत्रीय दलों को मिल जाता है। ऐसे में भाजपा पश्चिमी यूपी में जाट वोट पर आश्रित रहती है, जिस पर राकेश टिकैत रंग में भंग डालने जैसा काम करने की योजना किसान आंदोलन के माध्यम से कर रहे हैं।
अब यही किसान-किसान का राग अलापने वाले टिकैत अपने राजनीतिक उल्लू को सीधा करने के मकसद से यूपी विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका बनाने की जुगत में लग चुके हैं, ताकि भाजपा को शिकस्त देने में उनका नाम इंगित हो जाए।
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वो बात अलग है कि स्वयं दो बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़े टिकैत हार का मुंह देख चुके हैं। टिकैत ने 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में खतौली सीट से बहुजन किसान दल (बीकेडी) पार्टी (कांग्रेस के समर्थन से) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, जहां वो छठवें स्थान पर सिमट गए थे। 2014 के आम चुनाव में उन्होंने अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और वहाँ भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। उन्होंने स्वीकार किया कि उनका चुनावों में जनता साथ नहीं दे रही है और इस कारणवश उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था।
वहीं, विधानसभा चुनावों से पूर्व सेमीफाइनल कहे जा रहे त्रि-स्तरीय पंचायती चुनाव में भी आरएलडी को समर्थन देते हुए किसान यूनियन ने चुनाव लड़वाया और हास्यास्पद बात यह रही कि इसमें भी टिकैत को जनता ने आईना दिखा दिया और उन्हीं के गृह क्षेत्र से भाजपा समर्थित प्रत्याशी को जीत हासिल हुई।
विधानसभा चुनावों में विपक्ष की ओर से बनाये गए ऐसे किसी भी तरह के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए, भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 16 से 23 अगस्त तक ‘किसान संवाद’ आयोजित करने की योजनागत रणनीति बनाई है। इस अभियान का नेतृत्व भाजपा किसान मोर्चा करेगा। बीजेपी की ओर से कहा गया है कि किसान संपर्क कार्यक्रम के तहत भाजपा नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना क्षेत्र के 140 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे और किसानों की समस्याएं सुनेंगे।
अगले चरण में भाजपा 22 से 25 अगस्त तक ‘किसान संसद’ भी आयोजित करेगी। इन सभाओं को केंद्रीय मंत्री और पश्चिमी यूपी के दिग्गज नेता संजीव बालियान, भाजपा नेता सुरेश राणा, राज्य कृषि मंत्री सूर्य सिंह शाही, राज्य सभा सदस्य विजय पाल सिंह तोमर समेत अन्य कई दिग्गज नेताओं के साथ मिलकर किसानों को साधने का काम किया जाएगा।
इससे पहले 26 जुलाई को लखनऊ के दौरे के दौरान भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा था, ”सरकार किसानों की सुनने को तैयार नहीं है, वे तीन कानून वापस लेने को तैयार नहीं हैं और वे एमएसपी पर कानून नहीं बनाना चाहते। यूपी में पिछले चार साल से गन्ने के रेट नहीं बढ़े हैं, किसानों की हालत ठीक नहीं है हम लखनऊ को दिल्ली में बदल देंगे, दिल्ली की तरह अन्य राज्यों की राजधानियों में भी विरोध प्रदर्शन होंगे।
किसानों के मुद्दों पर चर्चा के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में बैठकें होंगी। सरकार पर निशाना साधते हुए, टिकैत ने धमकी भरे अंदाज़ में कहा कि यह लोग जिस भाषा को समझेंगे, उसी भाषा में समझायेंगे, राजनीतिक भाषा में बोलेंगे तो उसी भाषा में समझायेंगे।
इस बयान के कुछ दिनों बाद भाजपा अपने चुनावी एक्शन मोड़ में आते हुए किसानों में अनायास पैदा किए गए असंतोष को भुनाने में जुट चुकी है। इसका स्पष्ट उदाहरण किसान तक पहुँचने वाली यह सभी खाट पंचायत और बैठकें हैं जो राज्यभर में शुरू होने जा रही हैं। इन सभी छोटी चौपालों और खाट पंचायत का मूल उद्देश्य किसानों की वास्तविक समस्या को सरकार के संज्ञान में लाना है और उसी क्रम में 25 से 30 सितंबर तक किसानों की सभी मांगों और समस्याओं को इकट्ठा कर एक दस्तावेज तैयार किया जाएगा।
इस दस्तावेज को ग्रामीण किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपेगा। यह प्रतिनिधि मंडल 150 से 200 किसानों का होगा। किसान मोर्चा को योगी सरकार ने पहले यह आश्वासन दे दिया है कि वह इन सभी समस्याओं का समाधान सितंबर के भीतर ही कर देगी।
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जैसे-जैसे चुनावी पारा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे टिकैत विधानसभ चुनावों में परिवर्तन लाने का दंभ भर रहे हैं। टिकैत कृषि कानूनों का विरोध करते हुए संकेत देते दिख रहे हैं कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रचार करने के लिए अपने समर्थकों को लामबंद कर सकते हैं। ऐसे में बीजेपी अपनी ‘खाट पंचायत रणनीति’ से टिकैत की खाट खड़ी करने की योजना बना रही है।