अमेरिका की दुश्मनी से नहीं रूस और अमेरिका की दोस्ती से घबराता है चीन

अमेरिका और रूस के बीच चल रही वार्ता से चीन भयभीत हो चुका है।

अमेरिका और रूस

अफगानिस्तान से अपनी सेना निकालने के बाद अमेरिका का पूरा ध्यान अब दक्षिण चीन सागर की ओर होने वाला है। बाइडन प्रशासन चीन के मुद्दे पर ट्रंप की विदेश नीति को आगे बढ़ा रहा है। इसी क्रम में रूस के धुर विरोधी बाइडन प्रशासन ने रूस के साथ अमेरिका के मतभेद को कम करने के लिए स्ट्रैटेजिक स्टेबिलिटी के मुद्दे पर हाल ही में चर्चा की है। ऐसा लगता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार को यह समझ आ गया है कि रूस को वैश्विक रूप से अलग-थलग करने पर वह चीन के पाले में जाकर बैठ जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका और रूस के बीच चल रही वार्ता से चीन भयभीत हो चुका है।

क्या लिखा है ग्लोबल टाइम्स ने?

दरअसल, जिस समय स्वीटजरलैंड में अमेरिका और रूस की वार्ता प्रस्तावित हुई है उसी समय चीनी सरकार के मुख्य पत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि दोनों देशों में बातचीत के बाद भी अत्याधिक मतभेद है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि दोनों पक्षों का आपसी सहयोग मुश्किल है। यानि चीन अब भी इन दोनों देशों के बीच मतभेदों को उजागर करना चाहता है।

लेकिन इसके बावजूद स्विट्जरलैंड में दोनों पक्षों ने भावी नीतियों की प्राथमिकताओं तथा एक सुरक्षित माहौल बनाने को लेकर सफल चर्चा की है। दोनों देशों ने अपने देशों के राष्ट्रीय हित और सामरिक संतुलन पर चर्चा की। इससे यह कहा जा सकता है कि विभिन्न मतभेदों के बावजूद रूस और अमेरिका एक साझा भावी कार्यक्रम पर काम कर रहे हैं जिसके जरिए पहले तो दोनों पक्षों के मतभेद कम किए जा सके, उसके बाद शस्त्रों की होड़ पर रोक लगे तथा तनाव व टकराव की स्थिति से बचा जा सके।

रूस और अमेरिका के राष्ट्रपतियों की मुलाकात तथा सामरिक संतुलन पर दिए गए साझा बयान ने चीन के लिए चिंता खड़ी कर दी है। हाल ही में भारत के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जल परिवहन सुरक्षा के मुद्दे पर हुई चर्चा में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन स्वयं सम्मिलित हुए थे। यह भारत की कूटनीतिक शक्ति का प्रभाव था लेकिन रूसी राष्ट्रपति की भागीदारी चीन को एक संदेश भी है। मैरीटाइम सिक्योरिटी या समुद्री जल परिवहन सुरक्षा के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में चर्चा के प्रयास पहले भी हुए थे जिसे चीन ने बार-बार वीटो किया था।

इस बार भारत के प्रयास से इस मामले पर चर्चा हुई तथा इसमें रूस के राष्ट्रपति ने सम्मिलित होकर यह संदेश दिया की चीन के साथ रूस के रिश्ते कितने ही अच्छे हो, लेकिन दक्षिणी चीन सागर पर चीनी दादागिरी रूस को भी अस्वीकार है। अब जबकि अमेरिका अपना सारा ध्यान दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र पर लगाने वाला है, उससे ठीक पहले रूस और अमेरिका की सामरिक संतुलन को लेकर हुई बातचीत यह साफ दिखाती है कि अमेरिका एवं क्वाड देशों की ओर से रूस को यह संदेश दिया जा चुका है, कि दक्षिणी चीन सागर की घेराबंदी रूस के सामरिक और आर्थिक हितों को किसी प्रकार नुकसान नहीं पहुंचाएगी।

चीन में ग्लोबल टाइम्स में छपे लिख में भी यह मुद्दा उठाया है कि रूस के साथ बातचीत के समय अमेरिकी राष्ट्रपति बार-बार चीन के परमाणु शास्त्रों के विस्तार को मुद्दा बना रहे थे। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अमेरिका का प्रयास है कि मास्को और बीजिंग के बीच संबंधों में कड़वाहट आए। ग्लोबल टाइम्स का लेख यह बताता है की अमेरिका की नीति बिल्कुल सही दिशा में आगे बढ़ रही है।

रूस और चीन के बीच भी वैसे ही सीमा विवाद मौजूद है जैसा भारत और चीन के बीच है। इस समय जबकि अमेरिका और चीन के बीच द्वितीय शीत युद्ध जैसे माहौल हैं, यदि रूस और अमेरिका आपसी सहयोग आगे बढ़ाएंगे तो यह सहयोग CCP को पसंद नहीं आएगा। यदि अमेरिका इसी नीति का अनुसरण करता रहा तो इसके कारण हान (चीनी) राष्ट्रवाद में आया उबाल, रूस और चीन के बीच मौजूद पुराने सीमा विवादों को भी उठाएगा जिससे भविष्य में रूस और चीन में आपसी कड़वाहट बढ़ने की संभावना है।

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