देश की मुख्य राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की प्रवृत्ति ऐसी है कि अगर राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति आग भड़काने और छोटे से मुद्दे को बड़ा बनाने से होती दिखे, तो पार्टी अस्थिरता फैलाने और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में ज्यादा समय नहीं लेती है। असम मिजोरम सीमा विवाद के बीच दोनों राज्यों की सीमाओं पर हुई पुलिस की झड़प और इस झड़प में मारे गए असम के 6 पुलिस जवानों के शवों पर कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति शुरु कर दी थी। इसके विपरीत गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह से दोनों असम मिजोरम के अधिकारियों के साथ मिलकर इस मुद्दे पर बीच-बचाव किया और मामले को शांत करवाया, वो कांग्रेस के लिए एक झटका है। कांग्रेस की प्लानिंग इस घटना के बाद पूर्वोत्तर भारत की स्थिति भी जम्मू कश्मीर की तरह ही दिखाने की थी, लेकिन केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के सारे सपने ही तोड़ दिए हैं, क्योकि दोनों ही राज्य अब शांति से मामले को हल करने की ओर बढ़ चुके हैं।
टीएफआई आपको पहले ही बता चुका है कि असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद की आधारशिला अंग्रेजों द्वारा रखी गई, किन्तु इसे हल करने के कांग्रेस ने कभी कोई प्रयास नहीं किए। समय-समय पर इसको लेकर दोनों राज्यों के लोगों और पुलिस के बीच तनाव की स्थितियां बनी रहती हैं। ऐसे में अचानक असम और मिजोरम पुलिस के जवानों के बीच 26 जुलाई को हुई झड़प ने इस मुद्दे को पुनः ज्वलंत बना दिया था, किन्तु अब पूरी स्थिति शांत हो गई है; और दोनों राज्यों के नेताओं ने सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों को बैठकर हल करने और टकराव को खत्म करने की पहल शुरु कर दी है।
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खबरों के अनुसार दोनों राज्यों के नेताओं और अधिकारियों ने हाल में हुए विवाद के बाद बातचीत की है, और दोनों में शांति को लेकर सहमति बन गई है। वहीं, असम सरकार ने राज्य के मिजोरम की यात्रा के लिए असम के लोगों पर लगे बैन को भी हटा लिया है, जिसके बाद ये माना जा रहा है कि दोनों राज्यों के बीच मुद्दे हल होने की ओर हैं। इतना ही नहीं, दोनों राज्यों ने तय किया है कि अब सीमा पर न्यूट्रल सुरक्षा बलों की नए सिरे से तैनाती की जाएगी, साथ ही दोनों राज्य अपने पुलिस प्रशासन को सीमाओं से दूर रखेंगे। विशेष बात ये भी है कि पुलिस प्रशासन सीमाओं पर अपने वर्चस्व को लेकर तनातनी से भी दूर रहेगा, जो कि दोनों राज्यों के बीच विवाद को खत्म करने की नई पहल का संकेत हो सकता है। दोनों राज्यों के संयुक्त बयान पर सीमा सुरक्षा एवं विकास मंत्री अतुल बोरा और मिजोरम के गृह मंत्री लालचमलीयाना ने हस्ताक्षर किए हैं। असम और मिजोरम सरकारों के छह प्रतिनिधि सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे लोगों के बीच शांति और सौहार्द को विस्तार देने के लिए उपाय करने पर भी सहमत हो गए हैं।
ध्यान देने वाली बात ये भी है कि 26 जुलाई को हुई पुलिस के बीच हिंसक झड़प के बाद दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच टकराव की स्थिति आ गई थी। असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा हो या मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा, दोनों के ही के बयानों में एक दूसरे खिलाफ आक्रोश था। इस मौके का फायदा उठाकर पूरा विपक्ष मोदी सरकार पर हमला बोलने की तैयारी कर चुका था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर प्रियंका वाड्रा तक इसे मोदी सरकार की गलत नीतियों की वजह बताने लगे थे। विपक्ष का एक बड़ा बिन्दु ये भी था, कि दोनों ही राज्यों में एनडीए का शासन हैं। ऐसे में दोनों के बीच टकराव अप्रत्याशित था।
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कांग्रेस नेताओं की प्लानिंग पुलिस कर्मियों के शवों पर राजनीति करने की भी थी। असम कांग्रेस के कुछ नेता तो सीमा पर राजनीतिक गिद्ध बनकर जाने की कोशिश में थे, लेकिन असम पुलिस ने उन्हें मौका तक नहीं दिया। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष पूर्वोत्तर भारत को कुछ उसी तरह जलाने करने के प्रयास में था, जैसे कश्मीर के साथ किया गया थ। इसके विपरीत देश के गृहमंत्री अमित शाह ने पूरा मामला संभाल लिया और आज की स्थिति ये है कि और अब ये मामला हमेशा के लिए खत्म करने की कोशिश सफल होती दिखाई दे रही है। पहले उन्होंने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मुख्य सचिवों और जिम्मेजदार अधिकारियों के साथ वार्ता की, और बैठक कर इस मामले को सुलझाने की रणनीतियां बनाई।
अमित शाह के इन कदमों का असर है कि अब असम और मिजोरम के बीच न केवल हालात सामान्य हो रहे हैं, बल्कि बरसों से चले आ रहे टकराव को सदा के लिए खत्म करने की पहल भी शुरू हो चुकी है। गृहमंत्री अमित शाह के इन कदमों का नुकसान कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों को हुआ है, क्योंकि पूर्वात्तर भारत की अस्थिरता को मुद्दा बनाकर राजनीति करने का मौका गृहमंत्री अमित शाह ने इन सभी विपक्षी दलों से छीन लिया है।