भाजपा के लिए गड्ढा खोदने की नीयत थी, लेकिन कांग्रेस स्वयं ही उसमें गिर गई है, असम के राजनीतिक परिदृश्य को देखकर अगर ये कहा जाए तो संभवतः गलत नहीं होगा। असम में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को हराने के लिए योजना के तहत असम की इस्लामिक कट्टरपंथ की प्रणेता मानी जाने वाली पार्टी ऑल इंडिया युनाइटेड डोमोक्रेटिक फ्रंट यानी एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन किया था, किन्तु पार्टी को नुकसान ही हो गया। ऐसे में अब कांग्रेस को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा है, जिसके चलते कांग्रेस अब राज्य में एआईयूडीएफ से अपना गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर चुकी है, जिससे कि पार्टी हिन्दू वोटरों के लिए अपनी रणनीति नए तरीके से बना सके।
असम की राजनीति में बीजेपी की स्थिति एक वक्त तक डांवाडोल थी, किन्तु कांग्रेस की गलतियों के कारण कांग्रेस से बीजेपी में आए हिमंता बिस्वा सरमा के कारण पार्टी का राज्य में कद एक नए आयाम तक पहुंच गया है। ऐसे में 2021 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन कर मुस्लिम वोट बैंक के दम पर बीजेपी को हराने की प्लानिंग की थी, किन्तु हिमंता की हिन्दूवादी छवि के कारण राज्य में बीजेपी की प्रचंड बहुमत के साथ जीत हुई। ऐसे में अब कांग्रेस एआईयूडीएफ के साथ अपने गठबंधन तोड़ने की बात कर चुकी है।
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कांग्रेस के एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन टूटने की चर्चाएं उस दिन से ही थीं, जिस दिन असम विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आए थे, क्योंकि पार्टी में आंतरिक तौर पर ये कहा गया था कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन न होता तो पार्टी की हालत इतनी बुरी न होती। इसी बीच असम कांग्रेस कमेटी की बैठक के बाद कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठबंधन के टूटने का ऐलान कर दिया गया है। कांग्रेस ने गठबंधन तोड़ने के बाद बयान जारी करते हुए कहा है, “AIUDF नेतृत्व द्वारा रहस्यमयी रूप से बीजेपी और मुख्यमंत्री की तारीफ किए जाने के कारण यह फैसला लिया गया है।”
कांग्रेस ने इसके पीछे वजह दी है कि एआईयूडीएफ के नेता लगातार बीजेपी की तारीफ कर रहे हैं और उनसे करीबियां बढ़ा रहे हैं। अजीबो-गरीब बात ये है कि कुछ दिनों पहले ही जब राज्य में 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकता से संबंधित एक बैठक हुई थी तो उसमें एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल भी शामिल थे, किन्तु अचानक कांग्रेस ने ये फैसला कर सभी को चौंका दिया है। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि ये फैसला राज्य में विधानसभा चुनावों में हुई हार की समीक्षा के संबंध में बुलाई गई कोर कमेटी की बैठक के बाद लिया गया है।
इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने सारा दोष एआईयूडीएफ पर ही मढ़ने की प्लानिंग कर ली है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता बबीता शर्मा ने कहा, “एआईयूडीएफ नेतृत्व और वरिष्ठ सदस्यों द्वारा बीजेपी और मुख्यमंत्री की निरंतर और रहस्यमय प्रशंसा ने कांग्रेस पार्टी के प्रति जनता की धारणा को प्रभावित किया है।” उन्होंने कहा, “एक लंबी चर्चा के बाद प्रदेश कांग्रेस की कोर कमेटी के सदस्यों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि एआईयूडीएफ अब ‘महाजोत’ में भागीदार नहीं रह सकती और इस बारे में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) को सूचित किया जाएगा।”
अब सवाल ये उठता है कि अचानक ऐसा क्या हो गया? दरअसल, एआईयूडीएफ भले ही एक इस्लामिक कट्टरपंथ से संबंधित पार्टी हो, किन्तु उसे पता है कि यदि अब असम में अपना अस्तित्व बचाना है तो पार्टी को फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा, लेकिन कांग्रेस एआईयूडीएफ का प्रयोग मुख्य तौर पर हिमंता के खिलाफ करना चाह रही थी। इसके विपरीत कांग्रेस आलाकमान के कुछ नेता ये भी मानते थे कि कांग्रेस को एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन का नुकसान हो सकता है, और चुनाव परिणाम में वो दिखा भी। दूसरी ओर कांग्रेस विधानसभा चुनाव में हार के बाद ये समझ चुकी है कि हिमंता के हिन्दूवादी एजेंडे की काट करने के लिए उसे हिन्दुत्ववादी छवि बनानी होगी।
यही कारण है कि कांग्रेस अपनी पुरानी गलतियों को सुधारते हुए अपनी छवि राज्य में हिन्दूवादी बनाना चाहती है, जिसके चलते राज्य में अब एआईयूडीएफ जैसी कंपनियों से अपना गठबंधन तोड़ चुकी है। एआईयूडीएफ जैसी पार्टी यथार्थ में देश के सामाजिक ताने बाने के लिए खतरा है। ऐसे में कांग्रेस द्वारा उठाया गया कदम सकारात्मक है, किन्तु महत्वपूर्ण बात ये भी है कि कांग्रेस का ये फैसला उसकी अपनी राजनीतिक स्थिति के कारण लिया गया है, क्योंकि राजनीतिक फायदे के लिए ही कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन किया था।