गुलशन कुमार – बॉलीवुड का वो व्यक्ति जो सनातन धर्म की महिमा को बेझिझक दिखाता था
‘शिवशंकर को जिसने पूजा, उसका ही उद्धार हुआ,
अंत काल को भवसागर में, उसका बेड़ा पार हुआ,
भोले शंकर की पूजा करो, ध्यान चरणों में उसके धरो!’
यही सोचकर 12 अगस्त 1997 को अंधेरी के जीतेश्वर महादेव मंदिर में एक सज्जन पुरुष दर्शन के लिए पधारे थे। मुख पर महादेव का नाम लिए उन्होंने अपने इष्टदेव की याचना की और उनकी पूजा अर्चना करते हुए अपनी गाड़ी की ओर पधारे, कि तभी उन्हें अपने बगल में कुछ महसूस हुआ। पीछे मुड़कर देखा तो एक व्यक्ति उन पर रिवॉल्वर ताने था। जब उस सज्जन ने पूछा, तो उस हत्यारे ने कहा, ‘बहुत कर ली पूजा, अब ऊपर जा के करना!’ ये कहते हुए उस हत्यारे ने पहली गोली चलाई, परंतु वह चली ही नहीं। वह सज्जन पुरुष भागे, और उनके अंगरक्षक उनकी रक्षा करने के लिए आगे बढ़े। परंतु उनके दोनों पैरों में गोली मारकर दोनों हमलावरों ने उन्हे गंभीर रूप से घायल कर दिया।
हाथ में भगवान का प्रसाद लिए वह सज्जन भागा भागा फिर रहा था। उन्होंने आसपास के झुग्गियों में सहायता की याचना भी की। परंतु किसी ने उनकी सहायता नहीं की। उनके शरीर को 16 बार गोलियों से छलनी किया गया, और दिन रात भगवान शिव और माता दुर्गा का नाम जपने वाले, बॉलीवुड में सनातन धर्म के प्रहरी गुलशन कुमार दुआ इस संसार से सदा के लिए विदा हो गए। आज उनकी मृत्यु को 24 वर्ष पूरे हुए हैं, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद से बॉलीवुड में सनातन धर्म की जो रक्षा दुष्टों से जिस तरह वह करते थे, आज कोई भी वैसे नहीं कर पाता है।
नई दिल्ली में शनिवार, 5 मई 1956 के दिन गुलशन कुमार का जन्म दरियागंज में फल जूस के विक्रेता चंद्रभान कुमार दुआ के घर हुआ था। उनके पिता के फलों की जूस की दुकान थी, जिससे वे जीवनयापन के लिए उचित संसाधन जुटा लेते थे। प्रारंभ से ही गुलशन माता दुर्गा और भगवान शिव के अनन्य भक्त थे, जो उनके कार्यों में भी स्पष्ट झलकता था। कई मायनों में कहा जा सकता है कि वैष्णो देवी के पवित्र धाम की प्रसिद्धि को जन जन तक पहुंचाने में गुलशन कुमार और उनकी कंपनी टी सीरीज़ का बहुत अहम योगदान रहा है।
लेकिन जो परिवार फलों का जूस बेचकर जीवनयापन करता था, वो अचानक से करोड़ों का मालिक कैसे बन गया? इसके पीछे एक अहम निर्णय था – जब उनके परिवार ने एक रिकॉर्ड और ऑडियो कैसेट बेचने वाली दुकान खरीद ली। देशबंधु कॉलेज से स्नातक कर चुके गुलशन कुमार के मस्तिष्क में विचार आया कि क्यों न एक ऐसी कंपनी तैयार की जाए, जिससे जन जन के हाथ में रिकॉर्ड और ऑडियो कैसेट की सुविधा पहुँच सके। यहीं से उनकी कंपनी ‘Super Cassettes Industries Limited’ की नींव पड़ी, जो बाद में चलकर टी सीरीज़ के रूप आज एक विश्व प्रसिद्ध म्यूज़िक कंपनी में परिवर्तित हुई है।
लेकिन गुलशन केवल इतने में संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने संख्या के साथ साथ गुणवत्ता, यानि ‘Quantity के साथ Quality’ पर भी ध्यान केंद्रित करना प्रारंभ किया। ये वो समय था, जब देश में फिल्मों के साथ साथ उनके संगीत की क्वालिटी भी रसातल में जा रही थी। कोई पाकिस्तान से तो कोई अफ़गानिस्तान तक से संगीत चुरा रहा था। लेकिन इसी बीच आई 1990 में ‘आशिकी’। यूं तो ये फिल्म महेश भट्ट द्वारा निर्देशित थी, परंतु ये प्रसिद्ध हुई अपने संगीत और अपने कलाकारों के कारण, जिनपर गुलशन कुमार ने पूरा विश्वास जताया। यहीं से उनके उत्थान का प्रारंभ हुआ, और अनजाने में ही उनके विनाश की नींव भी यहीं से पड़ी, क्योंकि इसी फिल्म से उनका नाता नदीम सैफी नामक व्यक्ति से भी जुड़ा।
गुलशन कुमार की हत्या के मामले में नदीम सैफी के खिलाफ दोबारा जांच बैठाई जानी चाहिए
तो फिर ऐसा क्या हुआ, कि जो व्यक्ति प्रतिभा को इतना बढ़ावा देता था, जो व्यक्ति जन जन तक संगीत को पहुंचाना था, उसे इतनी भयानक मौत दी गई? इसका कारण केवल एक था – सनातन धर्म के प्रति गुलशन की अटूट आस्था। बॉलीवुड में सनातन धर्म के प्रति घृणा किसी से नहीं छुपी है। परंतु गुलशन कुमार ने अपनी फिल्मों में सनातन धर्म को न केवल बढ़ावा दिया, बल्कि स्वयं सनातन धर्म का जमकर प्रचार भी किया। 1992 में जो अभियान ‘शिव महिमा’ नामक फिल्म से शुरू हुआ, वो फिर उनकी मृत्यु तक कभी नहीं रुका। ‘जय माँ वैष्णो देवी’, ‘सत्यनारायण की व्रत कथा’, ‘चार धाम’ इत्यादि से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जब तक वे हैं – सनातन धर्म को कोई भी खुलेआम बॉलीवुड में अपमानित करने का साहस नहीं कर पाएगा!
इसके अलावा गुलशन कुमार ने भजनों की ऐसे शृंखला लगाई कि आज भी लोग उनके कर्णप्रिय भजनों को जपते रहते हैं। ‘शिव शंकर को जिसने पूजा’, ‘मन लेके आया माता रानी के भवन में’, ‘श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में’, ‘आज मंगलवार है’, जैसे भजन आज भी कई भक्तों के कंठ से अपने आप ही निकल पड़ता है। एक तरह से सोनू निगम और हरिहरन जैसे गायकों ने अपनी प्रसिद्धि इन्हीं भजनों से सर्वप्रथम पाई थी।
इसीलिए गुलशन कुमार अंडरवर्ल्ड के निशाने पर भी आए। मृत्यु से पहले उनको उगाही के अनेक कॉल्स आए थे। लेकिन गुलशन कभी भी अंडरवर्ल्ड के दबाव में नहीं झुके। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उनकी मृत्यु रोकी जा सकती थी। मुंबई पुलिस के प्रमुख अफसरों में से एक राकेश मारिया का अपनी आत्मकथा में कहना है कि उन्होंने गुलशन कुमार के साथ काम कर चुके महेश भट्ट को चेतावनी दी थी कि गुलशन कुमार की हत्या हो सकती है और उन्हें तुरंत सूचित करें, परंतु महेश ने ऐसा क्यों नहीं, ये आज भी चर्चा का विषय है।
आज जब गुलशन कुमार के निधन को गए 24 वर्ष हो चुके हैं, तो हमें न केवल उनकी कमी खलती है, अपितु यह भी दुख होता है कि बॉलीवुड में ऐसा कोई नहीं है जो उनके विरासत को आगे बढ़ा सके। सवाल तो ये भी है कि क्या बॉलीवुड इतना अयोग्य है कि गुलशन कुमार के व्यक्तित्व को चित्रित करने के लिए एक आमिर खान का सहारा लेना पड़े?