उत्तराखंड में चुनाव वही जीतेगा जो इस राज्य को अवैध मुस्लिम अप्रवासियों से मुक्त कराएगा

न ही फ्री की बिजली न ही फ्री की कोई योजना काम आयेगी!

उत्तराखंड भू कानून

अगले वर्ष उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुट चुके हैं। कोई फ्री की योजनाओं का वादा कर रहा तो कोई जाति कार्ड खेल रहा परन्तु वास्तविक मुद्दे से फ़िलहाल ये पार्टियाँ दूर दिखाई दे रही हैं। उत्तराखंड के लोगों के लिए वास्तविक मुद्दा राज्य में बाहरियों का बढ़ता दबदबा है खासकर आप्रवासी मुसलमान जनसंख्या उनकी चिंता को और बढ़ा रही जो उन्हीं की सांस्कृतिक धरोहर पर दावा ठोंकने लगे हैं। ऐसे में ये कहा जाए कि अगले साल के विधानसभा चुनाव में उसी पार्टी की जीत होगी जो उन्हें  अवैध मुस्लिम आप्रवासी से मुक्त कराने का दम रखता हो। इसके लिए लंबे समय से उत्तराखंड के लोग भू कानून की मांग भी कर रहे हैं।

गौर करें तो पिछले 1 महीने से उत्तराखंड में कड़े भू-कानूनों की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गया है। सोशल मीडिया पर #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून ट्रेंड कर रहा है। वहीं, देहरादून की सड़कों पर भी उत्तराखंड के युवाओं ने भू-कानूनों की मांग को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है। दिल्ली में भी उत्तराखंड भू कानून संघर्ष समिति दिल्ली एनसीआर नामक संगठन बनाकर आंदोलन शुरू कर दिया गया है जिससे केंद्रीय नेतृत्व को भी उत्तराखंड की समस्या को लेकर अवगत कराया जाए। वहीं, श्रीनगर में भी सनातन धर्म एवं मठ मंदिर रक्षा महासंघ ने कड़े भू-कानून की मांग की है जिससे देवभूमि की संस्कृति की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े 35 संगठनों ने भी सरकार से प्रदेश में बढ़ रही मुस्लिम आबादी को देखते हुए कड़े भू कानून लागू करने की बात कही है।

वास्तविकता ये है कि इस समय उत्तराखंड में अपने सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए लोगों में सजगता तेजी से बढ़ रही है। जिस तरह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से अप्रवासी मुसलमान उत्तराखंड का रुख कर रहे हैं उससे वहां के निवासियों की चिंता बढ़ने लगी है।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की आबादी पिछले दस साल में 11.9 प्रतिशत से बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई है। हालांकि इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं हुआ है पर जो तस्वीर उभर कर सामने आई है उसने वहां के लोगों की चिंता को बढ़ा दिया है।

अभी कुछ दिनों पूर्व ही एक पुराना वीडियो सामने आया था जिसमें बद्रीनाथ धाम पर कुछ मुसलमानों द्वारा दावा किया गया था। सनातन धर्म के महाकाव्यों जैसे महाभारत और दूसरे धर्म ग्रंथों में बद्रीनाथ धाम का उल्लेख मिलता है। बेर के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बदरी वन पड़ा। लेकिन मुस्लिम मौलानाओं का कहना था कि यह मुसलमानों का पवित्र स्थल बदरुद्दीन शाह है। मुसलमानों का दावा है कि बद्रीनाथ धाम के लिए लिखी गई आरती एक मुसलमान ने लिखी है और इसी आधार पर उन्होंने पूरे मंदिर पर अपना दावा कर दिया है।

कुछ समय पहले बद्रीनाथ धाम में वहां काम कर रहे कुछ मुस्लिम मजदूरों द्वारा बद्रीनाथ मंदिर के कैंपस के अंदर नमाज पढ़ने के कारण विवाद पैदा हो गया था। उत्तराखंड के लोगों और कई हिन्दू संगठनों  ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज की थी। हालांकि, पुलिस का कहना था कि बकरीद का अवसर होने के कारण जो मुस्लिम मजदूर कैंपस में निर्माण कार्य में लगे हुए थे केवल उन्होंने ही नमाज पढ़ी है, लेकिन हिंदू संगठनों ने इस पर जैसी प्रतिक्रिया दी थी वह स्वतः दिखाता है कि उत्तराखंड में अपनी सांस्कृतिक पहचान के खो जाने का डर बहुत अंदर तक भर चुका है। यह डर अकारण पैदा नहीं हुआ है।

उत्तराखंड राज्य अलग बना था तो वहां के लोगों ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए सरकार से कड़े भू-कानून की मांग की थी। पहले कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950′ में संशोधन लागू करके एक सीमा से अधिक भूमि की खरीद पर रोक लगा दी थी। इसके बाद किसी भी गैर-कृषक बाहरी व्यक्ति के लिए प्रदेश में जमीन खरीदने की सीमा 500 वर्ग मीटर हो गई।

इसके बाद साल 2007 में बीजेपी की सरकार आई और तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी (B. C. Khanduri) ने अपने कार्यकाल में पूर्व में घोषित सीमा को आधा कर 250 वर्ग मीटर कर दिया था। हालांकि, इन कानूनों में 2017 में आई भाजपा सरकार ने संशोधन लागू किए। सरकार का उद्देश्य पूंजी निवेश को आकर्षित करना था लेकिन इस परिवर्तन ने उत्तराखंड की लोक संस्कृति के लिए खतरा पैदा कर दिया है।

2015 में अमर उजाला ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में मुसलमानों का पलायन हो रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि हरिद्वार और उधम सिंह नगर में तो एक दशक में जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश की औसत दर से दो गुना अधिक है। इसके अलावा देहरादून में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है। उधम सिंह नगर में दशकीय वृद्धि दर 33.40 प्रतिशत है। देहरादून के लिए यह दर 32.48 और हरिद्वार में 33.16 प्रतिशत है। पूरे प्रदेश की बात करें तो मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर से दोगुनी से अधिक है।

अवैध मुस्लिम अप्रवासियों की उत्तराखंड में बढ़ती आबादी और बद्रीनाथ धाम में पैदा किए गए विवाद के कारण अब यह आवश्यक हो चुका है कि उत्तराखंड की संस्कृति की रक्षा के लिए एक मजबूत सूची कानून बनाया जाए। किसी भी राज्य के विकास के लिए आर्थिक निवेश पहली प्राथमिकता होती है किंतु यह राज्य की संस्कृति को दांव पर लगाकर नहीं प्राप्त की जा सकती। आर्थिक विकास जब तक सांस्कृतिक मूल्यों को सहेज कर चलने वाला नहीं होगा तब तक कुछ आर्थिक विकास का कोई अर्थ नहीं होगा। देवभूमि में संसाधनों के शोषण के लिए छूट नहीं दी जा सकती और ना ही इसकी धार्मिक पहचान को संकट में डाला जा सकता है। ऐसे में प्रदेश में वही पार्टी जनता का भरोसा जीतकर चुनावों में जीत दर्ज कर पायेगी जो उन्हें अवैध मुस्लिम अप्रवासियों से मुक्ति दिलाएगा!

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