कोरोना की दूसरी लहर में पूरे देश की बुनियादी सुविधाओं के विकास की हकीकत सामने आ गई। देश में मौत का भयावह दौर चल रहा था। देश के तमाम राज्यों में ये एक विपदा की तरह आया। जब वह चरम पर था तब लोगों को ऑक्सिजन सिलेंडर, आईसीयू बेड और डॉक्टरों की जरूरत समझ आई। यह वह वक़्त बना जब देश के नेता, अभिनेता, से अधिक आवश्यक देश के डॉक्टर हुए। सरकार ने भी इन्हें फ्रंट लाइन वारियर्स कहा क्योंकि वही लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों का इलाज कर रहे थे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के हवाले से खबर भी आई कि देश मे कुल 776 डॉक्टर सेवा देने के दौरान जान गवां बैठे।
आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार में सबसे अधिक 115 डॉक्टरों की मृत्यु हुईं, इसके बाद दिल्ली में 109, उत्तर प्रदेश में 79, पश्चिम बंगाल में 62, राजस्थान में 43, झारखंड में 39 और आंध्र प्रदेश में 38 मौतें हुईं। आईएमए के अनुसार, कोरोना महामारी की पहली लहर में 748 डॉक्टरों की मौत हुई थी। आईएमए ने यह भी कहा था कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान आठ गर्भवती डॉक्टरों की जान चली गई थी।
अब जब विपदा के बादल छंट गए है तो डॉक्टर कहाँ है? डॉक्टर भीख मांग रहे है! हम मजाक नही कर रहे है। झारखंड में कोरोना की लहर ने व्यवस्था की औकात बता दी। जब लोग मर रहे थे तो बचने की आस में सब लोग बड़े अस्पताल की ओर जा रहे थे। इन्हीं बड़े अस्पतालों में एक अस्पताल रांची का राजेन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस है। अगर ये अस्पताल सुना-सुना लग रहा है तो हैं, ये वही अस्पताल है जहां कर्मचारियों के खाने में मरी हुई छिपकली पाई गई थी। जब मरीजों की संख्या बढ़ने लगी तो यहां संविदा यानी कॉन्ट्रैक्ट पर बहुत से स्टॉफ और नर्स रखे गए।
सीधी सी बात है कि अगर नौकरी है तो सैलरी भी होगी लेकिन हेमंत सोरेन के राज्य में ऐसा नही होता है। खबर के अनुसार, सरकार द्वारा कोरोना संकट से निपटने के लिए 750 नर्स और लैब टेक्नीशियन की नियुक्ति की गई थी। इनसे काम भी करवाया गया और अब तीन महीने बाद भी इनको पैसा नही दिया गया है। कई बार पत्राचार के बाद सुनवाई नहीं हुई तो विरोध करना शुरू किया गया। नर्स और बाकी स्टॉफ अस्पताल के बाहर ही कटोरा लेकर अपना अधिकार मांगने लगे। इस अस्पताल में बहुत कुछ गड़बड़ हो रहा है या हो चुका है।
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अभी हाल ही में इसी अस्पताल के एक डॉक्टर पर नर्स के साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगा था। हेमंत सोरेन के पास ट्वीटर पर प्रतिक्रिया देने का वक़्त होता है लेकिन उनके नाक के नीचे स्वस्थ कर्मचारियों को भीख मांगना पड़ रहा है और वो कुछ नहीं कर रहे है। ऐसे व्यवहार के बाद भी अगर निस्वार्थ भाव से सेवा की अपेक्षा या राष्ट्र विकास के सपने देखे जाते है तो यह बस एक कोरी कल्पना मानी जाएगी।