बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक की सत्ता छोड़ते-छोड़ते भी बड़े फैसले किए हैं। ऐसे फैसले जो आने वाले दौर में बीजेपी के इस दिग्गज नेता का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवाएंगे. सनातनियों की लंबे वक्त से एक मांग रही है। मांग कि मंदिरों से, हिंदू संस्थाओं से, हिंदू गतिविधियों से जो पैसा आता है उसे दूसरे धर्म पर खर्च ना किया जाए। सनातनी लंबे वक्त से इसको लेकर आंदोलनरत हैं. देश के कई राज्यों में अभी यही होता है कि मंदिरों से सरकार की जो कमाई होती है उसे इस्लाम या ईसाई धर्म के कार्यों में खर्च किया जाता है।
जाते-जाते बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक में इस परंपरा को बदल गए. उनके मुख्यमंत्री रहते कर्नाटक की सरकार ने फैसला किया है कि हिन्दू मंदिरों से सरकार की जो कमाई होती है उसे गैर-हिंदू गतिविधियों जैसे कि हज, मदरसा और चर्चों पर खर्च नहीं किया जाएगा. कर्नाटक सरकार ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अब हिंदू मंदिरों से आए पैसे का उपयोग हिंदू संस्कृति के अलावा कहीं नहीं किया जाएगा।
आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा, परंतु यही सच है। हाल ही में कर्नाटक सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय में Hindu Religious and Charitable Endowments Act [मुजराई] विभाग के अंतर्गत मंदिरों के धनकोष को मंदिर के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग में लाने से प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया है। राज्य सरकार द्वारा यह आदेश 23 जुलाई 2021 को जारी किया गया।
स्वराज्य की रिपोर्ट के अंश अनुसार, “कर्नाटक के हिन्दू रिलीजियस एण्ड चैरिटेबल एंडोवमेंट्स (HRCE) विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि हिन्दू मंदिरों से प्राप्त किए गए धन और संपत्तियों का उपयोग किसी भी तरह के गैर-हिन्दू कार्य अथवा गैर-हिन्दू संस्था के लिए नहीं किया जाएगा। पिछले कई वर्षों से हिन्दू मंदिरों से प्राप्त फंड को वार्षिक आधार पर अन्य धार्मिक संस्थाओं को दिए जाने का विरोध हो रहा था। इस विरोध में प्रमुख रूप से राज्य एवं जिला धार्मिक परिषद के सदस्य शामिल थे। इन धार्मिक सदस्यों की मांगों को ध्यान में रखते हुए HRCE विभाग द्वारा ‘तास्तिक’ अथवा वार्षिक ग्रांट के तौर पर मंदिरों के फंड के स्थानांतरण पर रोक लगा दी गई”।
अगर ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो कर्नाटक छोड़िए, किसी भी राज्य में सबसे अधिक दुरुपयोग मंदिरों के ही संसाधनों, विशेषकर धनकोष का होता है। विश्वास नहीं होता तो केरल के मंदिरों का ही विश्लेषण कर लीजिए। कर्नाटक में भी स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं थी। यहाँ भी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मंदिरों का ही शोषण होता था।
पिछले महीने में कर्नाटक सरकार ने HRCE विभाग के तहत ‘सी’ श्रेणी के मंदिरों में सेवा करने वाले पुजारियों के इमाम एवं muezzin को प्रति सदस्य 3000 रुपये के राहत पैकेज देने की घोषणा की। इस पर सोशल मीडिया से लेकर राज्य भर में बहुत बवाल मचा, और मंदिर के फंड का किसी दूसरी जगह इस्तेमाल किए जाने पर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने कड़ी आपत्ति जताई थी। विहिप ने इस संबंध में प्रदेश के मुजराई मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी को एक ज्ञापन सौंपा था।
इसमें कहा गया था, “हिंदू मंदिरों से प्राप्त धन का उपयोग केवल मंदिरों और हिंदू समुदाय के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए।” इस मामले में विवाद बढ़ने के बाद मुजराई मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी ने इस फैसले को वापस लेने का आश्वासन दिया था। एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए पुजारी ने कहा था कि विभिन्न हिंदू संगठनों से प्राप्त अनुरोधों के बाद अधिकारियों को धार्मिक बंदोबस्ती विभाग से दूसरे धार्मिक संस्थानों को दिए जाने वाले सभी पैकेज को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया है।
अब इन्ही कोटा श्रीनिवास पुजारी ने एक बार फिर से एक साहसिक निर्णय में हिन्दू मंदिरों के धनकोष के दुरुपयोग पर रोक लगवाकर न केवल कर्नाटक सरकार की विश्वसनीयता को बढ़ाया है, बल्कि देश के लिए एक अहम मिसाल भी पेश की है। हमारे देश के मंदिरों के संसाधनों का सर्वाधिक दुरुपयोग होता है, लेकिन कर्नाटक सरकार ने इस दिशा में क्रांतिकारी निर्णय किया है। अब देश के दूसरे राज्यों को कर्नाटक की राह पर चलकर हिंदू मंदिरों से होने वाली कमाई को दूसरे धर्मों पर खर्च करना बंद कर देना चाहिए।