कभी जिस कश्मीर में सनातन धर्म की महिमा हर तरफ व्याप्त थ। हर तरफ कश्मीर में सनातन का जयघोष होता था। ऋषि-मुनि हर तरह ईश्वर का नाम लेते हुए दिख जाते थे। लोग कीर्तन और कथाएं करते थे, और ये सबकुछ ईश्वर की भाषा यानी कि संस्कृत में होता था। हिंदुओं की आस्था के महान केंद्र कश्मीर में धीरे-धीरे आक्रांताओं ने अपने इरादे दिखाए और वहां से सनातन की परंपराओं को मिटाने का काम शुरू कर दिया।
बाद के वर्षों में कश्मीर से संस्कृत भाषा करीब-करीब विलुप्त हो गी। अब उसी कश्मीर में फिर से सनातन संस्कृति का पुन: आगमन होगा। ऋषि कश्यप के कश्मीर में फिर से संस्कृत की गूंज होगी और इस देवभाषा का प्रचार किया जाएगा। असल में केंद्रीय प्रशासन ने नई शिक्षा नीति के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में संस्कृत को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना प्रारंभ कर दिया है।
इसी दिशा में एक अहम निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 19 अगस्त को कठुआ जिले के बसोहली में चूड़ामणि संस्कृत संस्थान के नए भवन का शिलान्यास किया।
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मनोज सिन्हा ने अपने अभिभाषण में कहा, “संस्कृत भाषा के गौरव को पुनर्जीवित करना प्रत्येक भारतीय की सामूहिक जिम्मेदारी है। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी सभ्यता, मूल्यों को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए अवसर पैदा करें।”
मनोज सिन्हा ने आगे बताया, “चूड़ामणि संस्कृत संस्थान के नए भवन का शिलान्यास एक ऐतिहासिक क्षण है। संस्थान की स्थापना दिवंगत पंडित उत्तम चंद पाठक शास्त्री ने की थी। उन्होंने इस विद्यालय के माध्यम से संस्कृत भाषा, सांस्कृतिक और विरासत मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए अद्भुत और महान कार्य किया था।
संस्कृत हमारे देश की एकमात्र ऐसी भाषा रही है, जिसने न केवल विभिन्न क्षेत्रों को एकजुट किया है, बल्कि शिक्षकों और उनके शिष्यों के बीच घनिष्ठ संबंध भी बनाए हैं। संस्कृत भाषा के मूल्यों को अल्बर्ट आइंस्टीन, ओपेनहाइमर और मैक्समूलर जैसी महान हस्तियों ने भी पहचाना था।”
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कश्मीर की घाटी आज आतंकवाद से काफी ग्रसित है, लेकिन एक समय ये धर्म, ज्ञान और शास्त्रों का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। महर्षि कश्यप के नाम पर इस पवित्र भूमि का नाम पड़ा, जहां पर आदि शंकराचार्य जी ने अपने चार केन्द्रीय मठों में से एक मठ स्थापित भी किया।
इसी कश्मीर में कभी बौद्ध धर्म की वैश्विक संसद का आयोजन भी हुआ करता था, लेकिन 13वीं सदी से इस्लामिक आक्रांताओं के निरंतर आक्रमणों ने कश्मीर की इस छवि को मलिन कर दिया और कभी अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और अपने विद्वानों के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा कश्मीर 21वीं सदी तक आते-आते अपने आतंकवाद के लिए चर्चा में रहने लगा।
अब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सिर्फ इस दिशा में काम आगे बढ़ाया है बल्कि उन्होंने यह भी सिद्ध किया है कि वर्तमान केंद्र सरकार अपनी नई शिक्षा नीति को लेकर कितनी गंभीर है। पिछले वर्ष ही केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति तैयार की है, जिसके अंतर्गत औपनिवेशिक मानसिकता को अब बिल्कुल भी बढ़ावा नहीं दिया जाएगा।
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TFI Post द्वारा इसी दिशा में किये गए विश्लेषण के अनुसार,
“नई शिक्षा नीति में ब्रिटिश साम्राज्यवाद कालीन मानसिकता को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति में पाँचवी क्लास तक पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से शुरू होगी। सरकार ने नई शिक्षा नीति में इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाये।
ऐसे में अब इतना तो स्पष्ट है कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा केंद्र सरकार की नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं और वे कश्मीर के खोए गौरव को पुनर्स्थापित करने के केंद्र सरकार के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में ही काम कर रहे हैं। ऋषि कश्यप के कश्मीर में अब फिर से संस्कृत का उच्चारण होगा और ऋषि कश्यप के कश्मीर में पुनः सनातन संस्कृति का खोया गौरव पुनर्स्थापित किया जाएगा।