जब से भारत ने बतौर सुरक्षा परिषद अध्यक्ष संयुक्त राष्ट्र की कमान संभाली है, तब से संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं है। भारत ने एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिए हैं, जिससे पाकिस्तान के लिए UN सुरक्षा परिषद अब एक ‘अखाड़ा’ अधिक प्रतीत होने लगा है, जहां भारत प्रतिदिन उसे धोबी पछाड़ देता है और उसकी सार्वजनिक बेइज्जती करता है।
अफगानिस्तान के मामले को लेकर भी भारत ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि पाकिस्तान तो उसकी चपेट में आया ही उसके साथ-साथ उसका सबसे बड़ा हितैषी यानी चीन भी चपेट में आ गया। चीन को भी संयुक्त राष्ट्र में भारत की हां में हां मिलानी पड़ी।
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अध्यक्ष के तौर पर भारत ने पद संभालते ही सर्वप्रथम अफ़गानिस्तान में बिगड़ते हालात पर बैठक बुलाई। इसमें एक साथ भारत ने दो निशाने साधे। सर्वप्रथम तो अफगानिस्तान में तालिबानियों द्वारा हो रहे अत्याचारों की ओर वैश्विक ध्यान केंद्रित करते हुए उन्होंने इसे एक अहम विषय में परिवर्तित कर दिया, जिससे न केवल पाकिस्तान, अपितु चीन भी काफी जल-भुन रहा होगा, क्योंकि दोनों ही देशों को अफ़गानिस्तान की वर्तमान परिस्थिति से सर्वाधिक लाभ होगा।
पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका तो तब लगा, जब इसी बैठक में बतौर अध्यक्ष भारत ने जानबूझकर पाकिस्तान के अनुरोध के बावजूद पाकिस्तान को ही बैठक में आमंत्रित नहीं किया। पाकिस्तान चाहता था कि वह भी इस बैठक में शामिल हो, ताकि लगे हाथों वह शायद कश्मीर वाले मुद्दे को भी उठा सके। लेकिन भारत दो कदम आगे निकलते हुए पाकिस्तान को ही चकमा दे गया और अब पाकिस्तान जल बिन मछली की भांति तड़प रहा है। पाकिस्तान को इस बात पर बुरा लग रहा है कि ‘सबसे नजदीकी पड़ोसी’ होने के बावजूद भारत ने अफ़गानिस्तान विषय पर उसे नहीं बुलाया।
पाकिस्तान सिर्फ इसलिए नहीं बिलबिला रहा है कि उसे बुलाया नहीं बल्कि वो इसलिए भी बिलबिलाया है क्योंकि जिस विषय को वह अंतर्राष्ट्रीय लाइमलाइट में नहीं आने देना चाहता था, जिस आतंकी तालिबान को वह परदे के पीछे से समर्थन दे रहा था, अब उसी को भारत ने सबके समक्ष एक्सपोज़ कर दिया है। अप्रत्यक्ष रूप से यह चीन के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि वह भी अफ़गानिस्तान में तनातनी को बने रहने देना चाहता है।
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वहीं, भारत ने भी पाकिस्तान की खिंचाई करने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं दिया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति के अनुसार, “अगर अफ़गानिस्तान में शांति स्थापित करनी है तो क्षेत्र में व्याप्त आतंकी गढ़ों को जड़ से उखाड़ फेंकना अवश्यंभावी है और हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि इनकी आपूर्ति चेन भी बाधित रहे।
हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि अफ़गानिस्तान के पड़ोसियों और अफ़गानिस्तान को आतंकवाद, उग्रवाद जैसी समस्याओं से फिर न जूझना पड़े”।
भारत ने कूटनीति का ऐसा मायाजाल रचा कि स्वयं चीन को भी अफगानिस्तान में तालिबानियों द्वारा व्याप्त हिंसा की निंदा करनी पड़ी, लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती।
अगले हफ्ते भारत समुद्री सुरक्षा पर एक वर्चुअल मीटिंग भी करेगा, जिसकी अध्यक्षता स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी करेंगे। भारतीय राजदूत तिरुमूर्ति के अनुसार, “ये अपने आप में अनोखी बैठक होगी। ऐसा पहले सुरक्षा परिषद में कभी नहीं हुआ और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के दृष्टि से ये पीएम के लिए बेहद आवश्यक कदम माना जा रहा है”।
यहाँ पर स्थिति स्पष्ट है– एक ही निशाने से पाकिस्तान और चीन दोनों की हवाटाइट करने का प्रबंध भारत ने कर दिया है। जिस प्रकार से भारत ने पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद में ठेंगा दिखाया है, और जिस प्रकार से आगामी वर्चुअल मीटिंग से ही चीन के पसीने छुड़ा रही है, उससे मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है– कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे।