जगन मोहन रेड्डी जनता के पैसे वक्फ बोर्ड पर लुटा रहे हैं

तुष्टीकरण की राजनीति के लिए कुछ भी करेंगे!

पिछले 2 वर्षों के शासनकाल में जगनमोहन रेड्डी ने जनता के पैसों का इस्तेमाल मौलानाओं और पादरियों को सरकार की ओर से भत्ता देने और हिंदुओं का धर्मांतरण को तेज करने में ही किया है। इसी क्रम में जगन सरकार अब एक कदम आगे बढ़ते हुए चर्च की जमीन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए सरकारी पैसे पर चर्च के कंपाउंड के चारों ओर दीवार का निर्माण करेगी।

जगनमोहन सरकार ने चर्च के अतिरिक्त वक्फ बोर्ड की संपत्ति की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था करने का आदेश अल्पसंख्यक मंत्रालय को दिया है। वक्फ बोर्ड की जमीन की सुरक्षा के लिए चारों ओर तैयार किए जाने वाली दीवारों का खर्च तथा होमगार्ड का वेतन आंध्र प्रदेश की सरकार देने वाली है। प्रश्न यह उठता है कि जब वक्फ बोर्ड सरकारी संस्थान नहीं है तो सरकारी वेतन पाने वाले होमगार्ड उसकी संपत्ति की सुरक्षा में कैसे तैनात किए जा सकते हैं।

भाजपा ने जगन सरकार पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का आरोप लगाया है। राज्यसभा सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि “जगन सरकार ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि वक्फ बोर्ड की जमीन की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर दीवार बनाई जाए, किंतु मंदिरों के संदर्भ में ऐसा कोई आदेश क्यों नहीं है? उन्हें भेज दो, किसे परवाह है?”

चुनाव जीतने के बाद से ही जगनमोहन सरकार ने सरकारी संपत्ति को अल्पसंख्यकों की बपौती बना दिया है। अपने पहले बजट में राज्य सरकार के वित्त मंत्री बोगन राजेंद्र नाथ ने पादरियों और मौलानाओं के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा आवंटित कर दिया था। अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के नाम पर राज्य सरकार ने अपने पहले बजट में 2,106 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। पहले बजट में इमामों, मौलाना और पादरियों को 5000 से 10000 रुपये मानदेय के रूप में देने का वादा किया गया था।

एक और सरकार मुसलमानों और ईसाइयों को उनके मजहबी संगठनों एवं संस्थाओं को चलाने के लिए आर्थिक मदद दे रही है, वहीं दूसरी ओर सुधार के नाम पर मंदिरों की संपत्ति और प्रशासन को अपने कब्जे में ले रही है। देश के विभिन्न राज्यों की तरह ही आंध्र में भी हिंदू मंदिरों को सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट के अधीन काम करना पड़ रहा है। आंध्र सरकार ने OBC, ST और SC समुदाय के लोगों को मंदिरों के ट्रस्ट में स्थान दिलाने के लिए 50% आरक्षण का नियम लागू कर दिया है। समस्या यह नहीं है कि ट्रस्ट के अंदर ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य जाति के लोगों का प्रवेश करवाया जा रहा है, समस्या यह है कि यदि ऐसे सुधार लागू होने हैं तो क्यों ना मंदिरों को अपने स्तर पर ही ऐसे सुधार लागू करने दिया जाए। देश के विभिन्न मंदिरों में दलित पुजारियों को नियुक्त किया जा रहा है तथा पूजा करवाने के लिए उनका प्रशिक्षण भी किया जा रहा है।

एक ओर तो सेक्युलर सरकार मुसलमानों और ईसाइयों में व्याप्त सामाजिक बुराइयों को दरकिनार करते हुए उन्हें आर्थिक मदद दे रही है, कट्टरपंथ की शिक्षा देने वाले मदरसों और चर्चों को सरकारी फंडिंग हो रही है, वहीं दूसरी ओर हिंदू समाज, जो स्वयं सुधारों को लागू कर रहा है, उसके धार्मिक मामलों में सरकार सामाजिक उत्थान के नाम पर हस्तक्षेप कर रही है। हिंदू मंदिरों की अकूत संपत्ति को लूट कर उसे मस्जिदों, मदरसों और गिरजाघरों पर खर्च किया जा रहा है।

बता दें कि जगनमोहन मूलतः एक परिवर्तित ईसाई है। उनके पिता वाई०एस० राजशेखर रेड्डी भी उन्हीं की तरह अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति करते थे। उनके शासन में रामनवमी जैसे प्रमुख हिंदू त्यौहार पर सरकारी छुट्टी बंद कर दी गई थी जबकि ईसाई मातावलंबियों के त्योहारों पर सरकारी छुट्टी बढ़ा दी गई थी। उनके समय में हिंदू मंदिरों के सृष्टि के रूप में ईसाइयों को नियुक्त किया जाने लगा था।

अपने पिता से सीख लेते हुए जगनमोहन रेड्डी ने मक्का और यरूशलम जाने वाले लोगों को सरकारी सहायता देने की व्यवस्था को पूरी तन्मयता से आगे बढ़ाया। एक और तो ईसाइयों और मुसलमानों को आर्थिक सहायता दी जाती रही वहीं, दूसरी ओर हिंदुओं को अपने धर्मस्थलों की यात्रा के लिए टिकट के पैसे चुकाने पड़े। यहां तक कि तिरुपति की यात्रा करने जाने वाले श्रद्धालुओं को जो टिकट जारी किया गया उसके पीछे हज और यरुशलम जाने वाले लोगों का प्रचार किया जाता था। ऐसा लगता है कि आंध्र प्रदेश की सरकार ने दिल्ली सल्तनत और मुगल काल की शासन व्यवस्था को पूर्णता अपना लिया है। हिंदुओं को यदि राज्य से मदद चाहिए तो उन्हें वैसे ही परिवर्तित होना होगा जैसे मुस्लिम शासन में उन्हें परिवर्तित किया जाता था।

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