“बिहार में बहार है, जो शासक के पैर उखाड़े वो पार्टी से बाहर है”.. आज भी बिहार देश के पिछड़े राज्यों में इन्हीं वजहों से शामिल है,जहाँ सत्ता का लोभ विकास को पीछे छोड़ देता है। बिहार में जेडीयू के प्रभुत्व का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार चौथी पर मुख्यमंत्री की गद्दी पर आसीन हैं। यह क्रम अब ज़्यादा दिन टिकने से रहा क्योंकि सत्ता की चाबी संगठन के सबल और कुशल संचालन से ही हाथ आती है, और अब वो चाबी स्वार्थ के चलते खोती दिख रही है। इसकी वजह भी एक ही है, शनिवार को संगठन को कुशल संचालन देने के बजाय वरिष्ठ अनुभव के नाम पर नीतीश ने अपने वजूद को कायम रखने के लिए ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।
शनिवार को दिल्ली स्थित जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यालय में राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक बुलाई गयी थी, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय इस्पात मंत्री व जेडीयू के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह समेत पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे। बैठक का मूल उद्देश्य पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन करना था, जिसमें आरसीपी सिंह ने सर्वप्रथम लोकसभा में जदयू संसदीय दल के नेता और मुंगेर के सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा और आम सहमति से तत्काल प्रभाव से ललन सिंह को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। नीतीश कुमार, बशिष्ठ नारायण सिंह, उपेन्द्र कुशवाहा, केसी त्यागी समेत सभी वरिष्ठ नेताओं ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।
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दरअसल, जुलाई माह के आरंभ में केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में जदयू के दो नेताओं के नाम प्रमुखता से उछल रहे थे उनमें आरसीपी सिंह और ललन सिंह के नाम ही प्रमुखता से लिए जा रहे थे। आरसीपी सिंह के मंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाए जाने से ललन सिंह के नए अध्यक्ष बनने की बात को और बल मिला था। शनिवार को इस बैठक में शामिल होने जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने दिल्ली स्थित 6 कामराज लेन से एक ही गाड़ी में ललन सिंह और आरसीपी सिंह के साथ निकले तो यह स्पष्ट हो गया कि नीतीश कुमार ललन सिंह को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का जिम्मा सौंप दिया है।
इसपर कांग्रेस नेता राजेश राठौड़ ने कहा कि ‘JDU में चल रही गुटबाजी और अंतर्कलह को लेकर ललन सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है परंतु उनके अध्यक्ष बनने पर JDU के दो धड़े नाखुश नजर आ रहे हैं’। हो सकता है भविष्य जेडीयू में ये कलह सामने भी आ जाये।
बहरहाल ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर जदयू ने एक सवर्ण चेहरे को आगे करके एक बड़ा संदेश भी देने की कोशिश की है। इसे जदयू की ओर से सामाजिक समीकरण को दुरुस्त करने की पहल के रूप में भी देखा जा रहा है। ज्ञात हो कि ललन सिंह जेडीयू स्थापना के बाद पहले सवर्ण समाज से आने वाले व्यक्ति हैं,पर आज के समय में नीतीश से ज़्यादा, जेडीयू में आरसीपी सिंह की तूती बोलती है, अर्थात वो अभी जेडीयू के सबसे प्रभावशाली नेताओं में आते हैं। ऐसे में उनको एक पार्टी एक पद का नारा देते हुए अध्यक्ष पद से हटाना नीतीश के गलत फैसले को दर्शाता है, क्योंकि यदि वो स्वयं इस एक पार्टी एक पद के नारे को इतनी वरीयता देते हैं तो खुद क्यों मुख्यमंत्री होते हुए 2016 से 2020 तक राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे। ऐसा नहीं है कि नीतीश को आरसीपी सिंह पर अब विश्वास नहीं रहा, शायद ही जेडीयू में नीतीश का आरसीपी सिंह से बड़ा कोई विश्वासपात्र हो, बात इतनी सी थी कि अध्यक्ष पद पर आते ही आरसीपी सिंह ने पार्टी में जान फूंकने का काम किया था। अपने पूर्व में प्राप्त प्रशासनिक और नेतृत्व कौशल से जेडीयू को नयी दशा और दिशा मिली थी।
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2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू को जितनी भी सीटें प्राप्त हुई थीं, वो नीतीश की नीतियों से नहीं, आरसीपी सिंह के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायकों से प्राप्त विश्वास से प्रभावित होकर मिली थीं। विधानसभा चुनाव में नितीश को आईना दिख गया था कि उनका नाम औअर काम जनता को पसंद नहीं आ रहा है, उसके बाद आरसीपी सिंह जब जेडीयू में नीतीश से ज़्यादा प्रभावशाली दिखने लगे, तो नितीश को भय सताने लगा और यही भय ललन सिंह को अध्यक्ष बनाने का सबसे बड़ा कारण था।
अब बिहार में जेडीयू में बड़ा आंतरिक संघर्ष शुरू होने जा रहा है, क्योंकि आरसीपी सिंह को हटाए जाने के बाद से अधिकांश नेता, विधायक और कार्यकर्ताओं में असहमति बढ़ने लगी है जो नीतीश के लालच की आंच में संगठन में दो-फाड़ मचा देगा। आने वाला समय जेडीयू के लिए घातक सिद्ध होगा यह भी तय माना जा रहा है।