शिक्षण संस्थान किसी राष्ट्र के शक्ति स्तम्भ होते है। राष्ट्र विकास के मानक और मानव संसाधन के गुणवत्ता के प्रतीक होते है। लेकिन, ज़रा सोचिए अगर यही संस्थान राष्ट्र निर्माण की जगह विध्वंस के प्रतीक बन जाएँ तो? फिर ऐसी वीभत्स स्थिति समाज और सरकार दोनों के नियंत्रण से बाहर होगी। CAA और NRC कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान AMU,JNU और JAMIA के रूप में हमने इसका लघु स्वरूप देखा। पर शायद सीख नहीं ली। मुंबई की एक विशेष अदालत के न्यायाधीश एस कोथलीकर के समक्ष दायर आरोप-पत्र में खुलासा करते हुए , NIA ने कहा है कि एल्गार परिषद-सह-भीमा-कोरेगांव दंगों के मामले में आरोपी ने आतंकी गतिविधियों के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (T।SS) सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों की भर्ती की थी।
पश्चिमी महाराष्ट्र के पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना के ऊपर दलितो और अंग्रेज़ो की सन्युक्त सेना ने विजय पायी थी। जिसे दलित समाज विजय दिवस के रूप मे मानता है। 1 जनवरी, 2018 को जीत का जश्न मनाते दलितों पर कुछ बदमाशों द्वारा हमला किए जाने के दौरान एक दलित राहुल फटंगले (28) की मौत हो गयी। इसी क्रम में 40 वाहन और कुछ अन्य संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा था। इस घटना के बाद, महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर दलित विरोध हुआ था, जो कुछ स्थानों पर हिंसक हो गया था।
“एल्गार” क्या है? एल्गार का अर्थ है जोर से निमंत्रण या जोर से घोषणा। एल्गार परिषद 31 दिसंबर 2017 को कोरेगांव भीमा की लड़ाई की दो सौवीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम था। यह पुणे के शनिवार वाड़ा किले में 260 गैर-लाभकारी संगठनों के गठबंधन द्वारा आयोजित किया गया था, और इसमें लगभग 35,000 लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम में कई सांस्कृतिक प्रदर्शन, भाषण और नारे शामिल थे।
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इस मामले की जांच NIA को सौपी गयी। इसी प्रकरण की जांच करते हुए NIA ने आरोप पत्र दाखिल कर कुछ चौकाने वाले खुलासे किए हैं। JNU, TISS और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों की एल्गार परिषद में कथित भर्ती NIA द्वारा अपने आरोप-पत्र में किए गए इन्ही तीन नए खुलासों में से एक है।
इस आरोप पत्र में दो नए खुलासे भी हैं। NIA ने कहा कि एल्गार परिषद आरोपियों ने सिर्फ भारत सरकार के खिलाफ ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ भी युद्ध छेड़ने की साजिश रची थी। आरोप-पत्र में नेपाल और मणिपुर के संबंध को भी इस षडयंत्र के संदर्भ में दिखाया गया है।
एल्गार परिषद ने भारत सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए नेपाल के एक आपूर्तिकर्ता के माध्यम से 4,00,000 राउंड गोलियां और अन्य हथियारों और गोला-बारूद के साथ-साथ एम -4 (परिष्कृत हथियार) की वार्षिक आपूर्ति के लिए 8 करोड़ रुपये की मांग भी की गयी थी।
चीनी QLZ87 स्वचालित ग्रेनेड लॉन्चर, रूसी GM-94 ग्रेनेड लॉन्चर, नाइट्रेट पाउडर, तार, कीलें और रसदकी भी मांग की गयी थी। नेपाल और मणिपुर से नामित आपूर्तिकर्ता और हथियारों के सहारे भारत और राज्य सरकार को डराने की साजिश रची गयी और आपराधिक बल का प्रदर्शन भी किया गया जो भारतीय दंड संहिता की धारा 121 ए के तहत दंडनीय अपराध है।
पुणे पुलिस ने मामले की जांच के शुरुआती हफ्तों में इससे भी सनसनीखेज आरोप लगाया था। जांच के क्रम में पता चला था की अभियुक्तों द्वारा खरीदे जाने वाले हथियार और गोला-बारूद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की “हत्या” और पूरे देश मे जात और धर्म-विरोधी दंगे कराने के उद्देश्य से मांगे गए थे।
इसके लिए एल्गार परिषद ने गुप्त रूप से देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों से छात्रों की भर्ती प्रक्रिया भी चल रही थी जिनमे JNU और TISS प्रमुख है।
इन मामलों में गिरफ्तार आरोपी हैं: सुधीर पी. धवले, वर्नोन एस. गोंजाल्विस (दोनों मुंबई के), ठाणे के अरुण टी. फरेरा, अहमदनगर के सागर गोरखे, पुणे के रमेश गायचोर, सुरेंद्र पी. गाडलिंग, शोमा के. सेन, महेश एस. राउत (नागपुर के सभी), यवतमाल के आनंद बी. तेलतुम्बडे। इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सो और शिक्षण संस्थानो से भी इन्होने नौजवान छात्रों को जोड़ा था।
लाल झण्डा बहुत तेज़ी से देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों और वहाँ के छात्रों को अपने चरमपंथी माओवाद के गिरफ्त में ले रहा है। NIA द्वारा दाखिल आरोप-पत्र उनके खतरनाक मंसूबे और उनके विस्तार को दर्शाता है। प्राथमिकता के सबसे उच्चतम स्तर पर रखते हुए तत्काल इनका सफाया करना चाहिए और छात्रों को राष्ट्र हित के मार्ग पर मोड़ना चाहिए। अन्यथा, बहुत देर हो जाएगी और फिर इसे रोकना मुश्किल होगा।