रामधारी सिंह दिनकर की एक पंक्ति है, ‘जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है’… इसका अर्थ है कि जब इंसान अहंकारी हो जाता है तब वो कोई भी निर्णय लेते हुए अपने विवेक यानी बुद्धि का प्रयोग नहीं करता है जिससे उसका नाश अवश्यंभावी हो जाता है। ऐसा ही हाल महाराष्ट्र प्रशासन का इन दिनों चल रहा है। अनिल देशमुख से जुड़े मामले में अब महा विकास अघाड़ी की सरकार CBI से ही पंगे ले रही है। इसी मामले में अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख से जुड़े एक मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
दरअसल, सीबीआई ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख करते हुए दावा किया कि मामले की जांच कर रहे उसके अधिकारियों को एक पुलिस अधिकारी ने “धमकी” दी थी। साथ ही सीबीआई ने अपनी याचिका में कोर्ट से महाराष्ट्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की थी कि सरकार आगे की जांच के लिए आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराये। सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस एसएस शिंदे और एनजे जमादार की खंडपीठ को बताया कि मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने मामले में दस्तावेज मांगने पर सीबीआई अधिकारियों को धमकी दी थी।
यानि अब महाराष्ट्र की MVA सरकार भी पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी का अनुशरण कर रही है, ठीक उसी तरह से जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने करीबी पुलिस अधिकारीयों को CBI से बचाने के लिए सारी राजनीतिक ताकत लगा देती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार अदालत की पीठ ने कहा कि, “हम सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं, कुछ एसीपी सीबीआई अधिकारियों को धमका रहे हैं। सरकार इस मामले पर 11 अगस्त को सुनवाई के दौरान कोर्ट में अपनी स्थिति स्पष्ट करे और इसके साथ ही, कृपया ऐसी अनुचित स्थिति न बनाएं कि हमें उन पर (पुलिस को) कार्रवाई करनी पड़े।” अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से कहा, “कृपया सुनिश्चित करें कि इस अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों और पहले पारित आदेश का अक्षरश: पालन किया जाए।”
बता दें कि कुछ महीनों पहले पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के लिए ममता बनर्जी ने जमीन आसमान एक कर दिया था। ममता शासन में आने के बाद से ही इन सभी अधिकारीयों पर अपना नियंत्रण रखना चाहती हैं, जिसमें वो काफी हद तक सफल भी हुई थी। परंतु जैसे ही केंद्रीय एजेंसियों ने पश्चिम बंगाल में जाकर भिन्न-भिन्न केसों की जांच करनी चाही, उन्हें वहां न तो शासन का सहयोग मिला न ही प्रशासन का। हद तो तब हो गयी जब पश्चिम बंगाल में सीबीआई और ईडी के अंतर्गत काम कर रहे अधिकारियों के साथ बदसलूकी की गयी और उन्हें बंधक तक बना लिया गया। इस तरह के हथकंडे पश्चिम बंगाल में हो रहे अपराधों पर पर्दा डालने के लिए ही अपनाए गए थे। अब MVA की सरकार में भी CBI के अधिकारियों को धमकाया जा रहा है।
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यही हाल पिछले कुछ वर्षों से महाराष्ट्र में भी देखने मिल रहा है, जहाँ 2020 में चर्चित अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के कथित आत्महत्या के मामले में, राज्य सरकार ने जांच में अनगिनत अवरोध खड़े किया। जांच करने पहुंची बिहार के पुलिस अफसरों को कोविड के नाम पर नज़रबंद तक कर दिया। इस जांच में केंद्रीय एजेंसियों के काम में सबसे बड़े अवरोधक तत्कालीन महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ही थे। चाहे वो NARCOTICS DEPARTMENT हो या सीबीआई इन सभी के साथ महाराष्ट्र पुलिस ने ऐसा व्यवहार किया था।
हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद सीबीआई जांच दिया गया था जिसके बाद अनिल देशमुख ने इसी वर्ष अप्रैल माह में अपने गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं इस इस्तीफे को षड्यंत्र के तौर पर भी देखा जा रहा है, जिसमें देशमुख को आगे कर कई नामी-गिरामी नेता अपने बचाव की कोशिशों में जुटे हुए हैं। अब जब देशमुख के मामले में पुलिस, केंद्रीय जांच एजेंसियों के साथ उचित व्यवहार न करते हुए सबूत देने में आना-कानी कर रही है, इससे यह भी स्पष्ट होता दिख रहा है कि यदि वो सबूत सीबीआई के हाथ आ जाते हैं तो जिन बड़े-बड़े नामों पर उद्धव सरकार और महाराष्ट्र पुलिस पर्दा डालने में, उन सबका कच्चा-चिट्ठा सामने आ जायेगा।
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अब यह कोर्ट के निर्देशों का कितना पालन होता है वो शीघ्र ही अगली सुनवाई में पता चल ही जायेगा, पर अब तक के हुए घटनाक्रम में यह तो सिद्ध हो गया है कि, महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार कानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ाने में पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार के पदचिन्हों पर ही चल रही है।