60 के दशक में चर्चित फिल्म ‘आरज़ू’ में एक प्रचलित गाना है ‘अजी, रूठ कर अब कहाँ जाइएगा? जहाँ जाइएगा, हमें पाइएगा।’ यह गाना आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर एक दम सटीक बैठता है। इसका सबसे बड़ा कारण है ममता के राज में बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा और उपद्रव की जांच अब सीबीआई के हाथों में जाना। यह ऐसी वैसी जांच नहीं, इसमें कुल 25 वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी काम करेंगे। बता दें कि 17 अगस्त को जस्टिस कौशिक चंदा को कलकत्ता उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश बनाने के पश्चात ममता की मुश्किलें बढ़ी थी। यानि जिस CBI को अपने राज्य से दूर रखने के लिए ममता बनर्जी ने आसमान सर पर उठा लिया था अब वही CBI उनकी पार्टी द्वारा की गयी हिंसा की जांच करेगा। कलकत्ता न्यायालय ने हिंसा मामले में CBI द्वारा जांच की स्वीकृति देते हुए ममता समेत टीएमसी के गुंडों का ‘खेला’ कर दिया।
दरअसल, कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेशानुसार सीबीआई ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों की जांच के लिए गुरुवार को 4 विशेष जांच इकाइयों का गठन किया है। मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और जस्टिस आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार की 5 जजों की बेंच ने निर्देश दिया कि चुनाव के बाद की हिंसा से संबंधित हत्या और बलात्कार सहित महिलाओं के खिलाफ अपराध के सभी मामले सीबीआई को हस्तांतरित किए जाएंगे। प्रत्येक टीम का नेतृत्व एक संयुक्त निदेशक स्तर का अधिकारी करेगा। इसमें एक उपमहानिरीक्षक, एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और तीन पुलिस अधीक्षक शामिल होंगे।
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यानि अब CBI करेगी ममता के साथ खेला। इस बड़े फैसले के बाद और कोई खुश होता या न होता, ममता और उनकी टीएमसी का अहम टूट गया और राज्य की न्यायिक व्यवस्था को अपने अनुरूप चलाने का दंभ रखने वाली ममता के मुंह पर ताले पड़ गए। अप्रैल-मई के अंतराल में चुनावी रण में ममता की टीएमसी ने खूनी संघर्ष और उपद्रव का खेल खेला कि राज्यभर में सन्नाटा और भय पसर गया था। राज्य के लोग असम सहित अगल-बगल के राज्यों में पलायन करने लगे थे।
अब कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियां इन सभी घटनाओं की जांच करने की तैयारियों में जुट गई हैं। वे जल्द ही पश्चिम बंगाल में हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे।
भाजपा नेताओं ने उच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत किया, वहीं टीएमसी ने यह कहते हुए निराशा व्यक्त की कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
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बीजेपी, कांग्रेस, सीपीआई (एम), टीएमसी और आईएसएफ हिंसा की जांच को लेकर तैयार थे, जिसमें चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद कम से कम 16 लोगों की मृत्यु हो गई थी। भाजपा नेता और अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख किया और आरोप लगाया कि 200 से अधिक लोग अपने जीवन के को बचाने के संगर्ष में वापस नहीं लौट पा रहे हैं। इसके बाद, अदालत ने एनएचआरसी अध्यक्ष को हिंसा से संबंधित सभी शिकायतों की जांच के लिए एक समिति बनाने का निर्देश दिया था।
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12 जुलाई को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में एनएचआरसी कमेटी ने कहा था कि राज्य की कानूनी स्थिति ‘Law of Ruler’ के बजाय ‘Rule of Law’ की अभिव्यक्ति है। पश्चिम बंगाल में “हानिकारक राजनीतिक-नौकरशाही-आपराधिक गठजोड़” पर प्रकाश डालते हुए, सिफारिश की गई कि बलात्कार, हत्या आदि जैसे अपराधों से जुड़े मामलों की सीबीआई द्वारा जांच की जानी चाहिए और राज्य के बाहर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। जबकि अन्य मामलों की जांच एसआईटी की निगरानी में एक अदालत द्वारा की जानी चाहिए।
अब इन सभी बातों और फैसलों से पश्चिम बंगाल सरकार, टीएमसी और इसकी मुखिया ममता बनर्जी समेत उनके नेताओं और तथाकथित गुंडों के पेट में मरोड़े उठने लगे हैं, और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि अपना राज समझने वाले अब असल कानून का राज देखने जा रहे हैं…अब होबे असल खेला!