टोक्यो ओलंपिक पदक तालिका की दृष्टि से भारत के लिए सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा। 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य पदकों के साथ भारत वर्षों बाद पदक तालिका में टॉप 50 में जगह बनाने में सफल रहा। यह संख्या और भी बेहतर हो सकती थी, यदि कुछ एथलीट अपने देश से ऊपर अपने निजी हितों को न रखते। जहां कुछ खेल संघ ऐसे अनुशासनहीन एथलीट को उनके वीवीआईपी ट्रीटमेंट पर कार्रवाई करने से हिचकिचा रहा है, तो वहीं भारतीय ओलंपिक महासंघ के आदेश पर एक्शन लेते हुए भारतीय कुश्ती महासंघ ने विनेश फोगाट को अस्थाई रूप से निलंबित किया है। इसके साथ ही सोनम मलिक को उनके व्यवहार के लिए चेतावनी नोटिस भी भेजा है।
लेकिन इन दोनों पहलवानों ने ऐसा भी क्या किया, जिसके पीछे कुश्ती महासंघ को ऐसा एक्शन लेने के लिए बाध्य होना पड़ा? जहां पुरुष पहलवानों ने कुश्ती में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से देश का मान बढ़ाया, तो वहीं महिलाओं को खाली हाथ लौटना पड़ा। अंशु मलिक को छोड़ दें तो कोई भी कांस्य पदक स्पर्धा के आसपास भी नहीं पहुँच पाया।
इसी बीच विनेश फोगाट पर अनुशासनहीनता के आरोप लगे हैं। विनेश फोगाट ने 53 किलो फ्रीस्टाइल वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन वह क्वार्टरफाइनल में ही बाहर हो गई। लेकिन बात केवल इतने तक ही सीमित नहीं है। विनेश पर आरोप हैं कि वे न खेल गाँव में रही, और न ही वे भारतीय खिलाड़ियों के साथ प्रशिक्षण करना चाहती थी। यहाँ तक कि वे अपना निजी ‘नाईक जर्सी’ पहनना चाहती थी, न कि भारतीय टीम की आधिकारिक जर्सी। इसके पीछे भारतीय ओलंपिक महासंघ ने भारतीय कुश्ती महासंघ को भी आड़े हाथों लिया, और फलस्वरूप ये कार्रवाई हुई। सोनम मालिक को भी अनुशासनहीनता के लिए चेतावनी दी गई है। हालांकि उन पर लगे आरोप स्पष्ट नहीं हुए हैं।
यदि इन खिलाड़ियों पर लगे ये आरोप शत प्रतिशत सत्य है, तो ये न सिर्फ शर्मनाक हैं, बल्कि विनेश के घमंडी सोच का परिचायक है, जिसके लिए किसी भी प्रकार की निंदा कम ही पड़ेगी। लेकिन विनेश इस वीवीआईपी सोच में अकेली नहीं है। उनके जैसे कई एथलीट हैं, जिनका प्रदर्शन भले ही टोक्यो ओलंपिक में औसत श्रेणी का रहा हो, परंतु उनके नखरे तो बड़े बड़े राजनेताओं तक को शर्माने पर विवश कर दे।
उदाहरण के लिए मणिका बत्रा को ही देख लीजिए। टेबल टेनिस में महिला एकल प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली मणिका ने तीसरे राउन्ड तक पहुंचकर सबको चौंका दिया था। इससे पहले कोई भी महिला खिलाड़ी पहला राउन्ड भी पार नहीं कर पाती थी। लेकिन वे विवादों के घेरे में तब आ गई, जब ये सामने आया कि उन्होंने भारतीय टीम के आधिकारिक कोच, सौम्यजीत राय की बात मानने से ही मना कर दिया। कारण जो भी रहा हो, परंतु अब माणिक को अनुशासनहीनता के लिए कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
लेकिन मणिका और विनेश फोगाट तो वे उदाहरण जिनपे थोड़ी बहुत चर्चा हो भी रही है। भारतीय निशानेबाज़ों ने जो नाक कटवाई, और अपनी गलतियों में सुधार करने के बजाए अपने ही पूर्व कोच को बलि का बकरा बनाने का जो खेल मनु भाकर रच रही है, उस पर तो कोई बात भी नहीं कर रहा है। रियो ओलंपिक के बाद ये लगातार दूसरी बार हुआ है, जब भारतीय निशानेबाज खाली हाथ आए हो, जबकि उनकी तैयारी, उनके व्यवस्था और यहाँ तक कि उनके टीकाकरण में भी केंद्र सरकार से लेकर शूटिंग महासंघ ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
युवा पिस्टल शूटर सौरभ चौधरी को छोड़ दें, तो पदक तो छोड़िए, एक भी निशानेबाज फाइनल तक में नहीं पहुंचा। रही सही कसर मनु भाकर ने पूरी कर दी। एक भी इवेंट में उन्होंने अपेक्षा के अनुरूप परफ़ॉर्मेंस तो दिया नहीं, उलटे अपने पूर्व कोच और चैंपियन शूटर जसपाल राणा को ही बलि का बकरा बनाने लगीं, जबकि उन्हीं के कारण मनु भाकर और सौरभ चौधरी जैसे युवा खिलाड़ियों ने यूथ ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीते। बता दें कि जसपाल राणा को स्वयं मनु भाकर ने ही टोक्यो ओलंपिक से अपने निजी कोच के तौर पर हटाया था। इसके बावजूद टोक्यो ओलंपिक में अपने घटिया प्रदर्शन का ठीकरा मनु ने जसपाल राणा पर फोड़ा, जिसपर जसपाल राणा भी भड़क गए और NRAI पर उन्होंने अनुशासनहीनता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
टोक्यो ओलंपिक के बाद से यदि सबसे बड़ा बदलाव कहीं देखने को मिला है, तो वो यह है कि अब कहीं भी वीवीआईपी कल्चर स्वीकार्य नहीं, चाहे नौकरशाही में हो, राजनीति में हो, या फिर खेल में ही क्यों न हो। सेवा करोगे, तो ही मेवा मिलेगा, वरना कुछ नहीं मिलेगा। एक समय ऐसा भी था जब खेल महासंघों को उनके अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता था, लेकिन अब समय बदल रहा है।