हिंसा को शस्त्र बना खूनी संघर्ष को बढ़ावा देना आज भारतीय राजनीति में आम हो चुका है। सर्वप्रथम पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव और चुनावों से पूर्व हुई विभत्स घटनाओं ने मानवता को शर्मसार किया था। टीएमसी गुंडों द्वारा की गयी हिंसा से भाजपा कार्यकर्ता से लेकर आम आदमी त्रस्त थे। अब ऐसा ही हाल महाराष्ट्र में भी देखने को मिल रहा है। यहां महाविकास आघाडी की तीन पहियों वाली सरकार की नीति अपने विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बदले की राजनीति के लिए निपटाना है। पहले बंगाल अब महाराष्ट्र, दोनों गैर भाजपा शासित राज्यों में आज भाजपा के कार्यकर्ताओं को गहरी क्षति और प्राणहानि तक हो रही है। इस पूरे प्रकरण में पीएम मोदी और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व की मंशा और लेश मात्र भी जवाबी कार्यवाही न किए जाने पर अब प्रश्नों का अंबार छा गया है। यह न सिर्फ कैडर के लिए घातक सिद्ध हो रहा है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की मजबूत छवि को भी गहरा धक्का लगा है।
बंगाल में तांडव
दरअसल, इसी वर्ष पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए थे और 2 मई को उसके परिणाम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पक्ष में आए और टीएमसी ने पुनः सत्ता भी प्राप्त कर ली थी। इस चुनाव में बीजेपी ने टीएमसी और ममता के विरुद्ध बंगाल में हुई हिंसा और विशेषकर अपने कार्यकर्ताओं की जघन्य हत्याओं को लेकर सबसे बड़ा हथियार बनाया था। शायद इसी का परिणाम भी था कि बीजेपी ने 3 सीटों से अपनी संख्या 77 तक पहुंचा दी थी। अब जब बीजेपी को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ तो टीएमसी के पर और खुल गए। इस पार्टी ने अपने खूनी खेल का परिचय देते हुए राज्यभर में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमलावर होते हुए उनकी नृशंस हत्याएँ की तथा उनके परिवार में भी किसी को नहीं छोड़ा। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने जहां भाजपा का झण्डा दिखा उस घर को भी जलाना शुरू कर दिया था, मानों बंगाल में ममता राज में इमरजेंसी का द्वितीय काल चल रहा हो। हालांकि TMC पहले से ही संघ और BJP के कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले करती रही थी लेकिन 2 मई के बाद यह दोगुने स्तर पर किया जाने लगा था। बावजूद इसके केंद्र सरकार की तरफ से किसी प्रकार की कार्रवाई तो छोड़िए, बयान तक नहीं दिये गए।
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हालांकि इन सभी हत्याओं पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने निंदा अवश्य की, तथा पीड़ित परिवारजनों के पास जाकर उन्हें ढांढस भी बँधाया, परंतु इससे क्या हमले रुक गए? नहीं रुके!
महाराष्ट्र में गुंडा गर्दी
ऐसा ही रंग अब महाराष्ट्र में भी आए दिन देखने को मिल रहा है, जहां शिवसेना की युवा इकाई युवा सेना भाजपा कार्यालयों को निशाना बना रही है, तथा तोड़फोड़ कर रही है। बीच सड़क पर शिवसेना कार्यकर्ता अब भाजपा कार्यकर्ताओं से भिड़ते और गुंडई करते हुए मारपीट करने के आदी हो चुके हैं। हाल ही में शिवसेना और विशेषकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शह पर केंद्रीय मंत्री और महाराष्ट्र के कद्दावर नेता नारायण राणे पर गिरफ्तारी कर शिवसेना ने सारी सीमाओं को ही लांघ दिया। उनके घर पर ईंट-पत्थर से हमले किए गए तथा इसी क्रम कई भाजपा नेताओं को पीटा गया। एक विवादास्पद टिप्पणी को लेकर मंगलवार को राणे को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसमें उन्होंने उद्धव को थप्पड़ मारने की बात कही थी। राजनीति में ऐसे ही बयानों के लिए विख्यात शिवसेना आज राणे को दोषी ठहराते नहीं थक रही है।
इन सभी घटनाक्रमों पर केंद्र सरकार और बीजेपी नेतृत्व की चुप्पी कार्यकर्ताओं को हताश कर रही है, क्योंकि चाहे बंगाल हो या महाराष्ट्र टीएमसी और शिवसेना का सामना जमीनी स्तर पर इन्हीं कार्यकर्ताओं ने किया था।
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मौन घातक साबित होगा
इस बार इन सभी बातों पर पीएम मोदी का मौन रवैया बेहद आश्चर्यजनक है। महाराष्ट्र में केंद्रीय मंत्री पर हमलावर होते हुए उनकी गिरफ्तारी न केवल भाजपा और सरकार के सामने बड़ा प्रश्न चिन्ह है बल्कि उससे बढ़कर घनघोर अपमान भी है। दूसरी ओर पीएम मोदी ने बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान बेहद कड़े अंदाज़ में ममता को दीदी-ओ-दीदी करके लताड़ा था। हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से कोई भी कदम नहीं उठाए गए थे। राज्यभर में अनगिनत मारकाट की घटनाओं ने देश के अंदर भय प्रसारित कर दिया था। अब भी पश्चिम बंगाल में मोदी सरकार से आशान्वित सभी कार्यकर्ता यही सोच रहे हैं कि शीघ्र ही केंद्र सरकार उनका हाथ थामेगी परंतु उन्हें निराशा ही हाथ लगी है।
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जिस लाचारी और कुशासन का दौर बीजेपी कार्यकर्ता और आम जनता पश्चिम बंगाल में अनुभव कर रही है, अब वही हाल महाराष्ट्र में भी देखने को मिल रहा है। केरल में तो पूछना ही नहीं है कि कितने कार्यकर्ता मौत के घाट उतार दिये गए। उससे इन सभी के मन में मोदी सरकार और बीजेपी नेतृत्व के प्रति शंकाएँ उत्पन्न होती जा रही हैं और यदि बीजेपी या मोदी सरकार जल्द इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाती है तो वो दिन दूर नहीं जब यह सभी कार्यकर्ता का मन हारकर टूट जाएँ। यह न सिर्फ BJP के लिए घातक होगा बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की एक मजबूत नेता की छवि को भी भयंकर झटका लगेगा। हालांकि अब भी देर नहीं हुआ है और केंद्र सरकार को इस तरह से बढ़ती हिंसक राजनीति को रोकने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे।