हाल ही में टोक्यो ओलंपिक में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 7 पदक प्राप्त किये। निस्संदेह सूबेदार नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक ने भारत का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया, परंतु एक और पदक भी कम ऐतिहासिक नहीं था, और वो था फील्ड हॉकी में 41 वर्ष बाद भारत को मिला कांस्य पदक। जर्मनी को 5-4 से परास्त कर भारत ने कांस्य पदक प्राप्त किया, जिसमें ओड़ीशा का बहुत बड़ा योगदान था, और अब इसी के तर्ज पर उत्तर प्रदेश ने घोषणा की है कि वह कुश्ती को उसका खोया गौरव पुनः दिलाने में सहयोग करेगा, जिसके लिए वह विशेष तौर पर 170 करोड़ रुपये का निवेश करेगा।
भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में बताया, “ओड़ीशा एक छोटा राज्य है, फिर भी उसने हॉकी को इतना समर्थन दिया है। ऐसे में हमने सोचा कि जब ओड़ीशा ऐसा कर सकता है, तो यूपी जैसा बड़ा राज्य क्यों नहीं हमारी सहायता करेगा? हम ओलंपिक के लिए यही सहायता का प्रस्ताव लेकर यूपी के मुख्यमंत्री [योगी आदित्यनाथ] के पास गए, और उन्होंने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया।”
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ओड़ीशा ने जैसे हॉकी का कायाकल्प किया, अब वैसे ही उत्तर प्रदेश कुश्ती का कायाकल्प करके उसका खोया गौरव उसे वापस दिलाएगा। इसके लिए प्रारम्भिक तौर पर उत्तर प्रदेश कुश्ती को 2032 के ब्रिस्बेन ओलंपिक तक गोद लेगा और उसे 170 करोड़ रुपये की प्रारम्भिक वित्तीय सहायता देगा। बृजभूषण शरण सिंह के अनुसार, “अपने प्रस्ताव में हमने यूपी सरकार से निवेदन किया है कि 2024 के पेरिस ओलंपिक तक हमें प्रतिवर्ष 10 करोड़ रुपये [3 वर्ष तक 30 करोड़ रुपये], फिर लॉस एंजेलिस ओलंपिक 2028 तक 15 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष [यानि 2028 तक 60 करोड़ रुपये] एवं 2032 के ब्रिसबेन ओलंपिक तक 20 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की सहायता देने को कहा है। इस तरह से हम केवल देश के शीर्ष पहलवानों को ही नहीं, अपितु कैडेट [अति जूनियर] लेवल के पहलवानों एवं राष्ट्रीय लेवल के पहलवानों को भी समर्थन दे पाएंगे।”
योगी आदित्यनाथ के पास कुश्ती के जरिए उत्तर प्रदेश की युगों पुरानी खेल संस्कृति को पुनः जागृत का एक सुनहरा अवसर है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से खेल हमारे राज्य का एक अभिन्न रंग रहा है। रामायण हो या महाभारत, हमारे इष्टदेव जैसे कृष्ण और उनके बड़े भ्राता बलराम भी कुश्ती के बहुत बड़े प्रेमी थे।
बहुत कम लोगों को यह पता है, परंतु केडी जाधव के अलावा सुशील कुमार के प्रादुर्भाव से पूर्व यूपी के पहलवान बिशंभर सिंह भी थे, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान बढ़ाया था, और उन्होंने 1967 के कुश्ती विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक भी प्राप्त किया था। लेकिन वर्षों के भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता ने उत्तर प्रदेश को उसकी खेल संस्कृति से विमुख कर दिया। कभी विश्व को मेजर ध्यानचंद, केडी सिंह ‘बाबू’ जैसे हॉकी प्लेयर और बिशंभर सिंह जैसे पहलवान देने वाला उत्तर प्रदेश खेल जगत में पिछड़ने लगा।
लेकिन अब भारतीय कुश्ती महासंघ ने उत्तर प्रदेश को पुनः भारत की खेल संस्कृति को जागृत करने का एक सुनहरा अवसर दिया है। निस्संदेह हरियाणा ने कुश्ती में भारत का मान बढ़ाया है, लेकिन जैसे पंजाब से हॉकी का दायित्व लेते हुए ओड़ीशा ने भारत को उसका खोया गौरव वापिस लौटाया, वैसे अब उत्तर प्रदेश को भी आगे आकर कुश्ती में भारत को उसका खोया गौरव पुनः दिलाना चाहिए। क्या पता, पेरिस ओलंपिक / लॉस एंजेलिस ओलंपिक में भारत से कुश्ती का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदकधारी उत्तर प्रदेश से ही निकले?