राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित पंक्ति ‘जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है’, ये पंक्तियां आज के समय में विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं पर फिट बैठती हैं। मुद्दों की कमी में फिजूल की बातों को उछालना विपक्ष की नीति बन गई है, जिससे दिन प्रतिदिन उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते रहते हैं। पेगासस के मुद्दे पर पिछले दो सप्ताह से संसद की कार्यवाही को बाधित करने वाले विपक्ष को जब कहीं से कोई भाव नहीं मिल रहा, तो अब विपक्षी दलों ने उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्लानिंग कर ली है। हालांकि, उनके इस कदम से उपराष्ट्रपति पर तो कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा, परंतु ये अवश्य स्पष्ट हो जाएगा कि ये विपक्षी दलों की हताशा की पराकाष्ठा है।
पेगासस का मुद्दा कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के लिए ‘राफेल Moment’ बन गया है, क्योंकि विपक्ष को एक बार जवाब देने के बाद न तो मोदी सरकार भाव दे रही है, न संसद के स्पीकर और न ही जनता। ऐसे में विपक्षी राजनीतिक दल पूरी तरह से हताश हो चुके हैं, और हताशा में ही लोग हास्यास्पद कदम उठाते हैं, अब विपक्षी दल के नेता भी यही करने लगे हैं। न्यूज़ 18 की एक रिपोर्ट बताती है कि अब कांग्रेस, टीएमसी और डीएमके समेत विपक्षी दलों की प्लानिंग है कि राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के खिलाफ प्रस्ताव लाया जाए, जिसके लिए नोटिस देने की भी प्लानिंग कर ली गई है।
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दिलचस्प बात ये है कि ये अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात सबसे पहले टीएमसी ने शुरू की, जिसके बाद कांग्रेस और डीएमके भी इस मुद्दे पर टीएमसी का साथ देने की योजना बना चुकी है। विपक्षी दल लगातार मांग कर रहे हैं कि सदन में पेगासस और क़ृषि कानूनों के मुद्दे पर चर्चा हो, किन्तु उनका आरोप है कि सरकार उनकी मांग को कोई महत्व नहीं दे रही हैं। दूसरी ओर मोदी सरकार का कहना है कि वो जनहित के प्रत्येक मुद्दे पर सदन में चर्चा के लिए तैयार है। पिछले दो सप्ताह से संसद में नियमों की धज्जियां उड़ा रहे टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन संसद की कार्यवाही में विराम लगने को लेकर मोदी सरकार पर ही आरोप मढ़ रहे हैं, जो कि बचकाना और हास्यास्पद है।
अब सवाल ये उठता है कि यदि ये अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो क्या इसका कोई प्रभाव पड़ेगा? शायद नहीं। देश के संसदीय इतिहास में पहली बार पिछले वर्ष राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन सभापति ने इसे अनुचित बताते हुए, और गलत फार्मेट का कारण देकर अस्वीकृत कर दिया था। वहीं, उप-राष्ट्रपति के विरुद्ध लाया जाने वाला ये प्रस्ताव खारिज हो सकता है, क्योंकि इसका उद्देश्य केवल विरोध की राजनीति करना है। वहीं, अगर सदन में एनडीए की स्थिति देखें तो विकिपीडिया के अनुसार वर्तमान में बीजेपी अकेले ही राज्यसभा की करीब 95 सीटें लेकर बैठी है। इसके अलावा घटक दलों को मिला दें तो ये संख्या करीब 145 तक चली जाती है, जिसके चलते ये कहा जा सकता है कि बीजेपी या एनडीए को कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है, और विपक्ष केवल दबाव की रणनीति अपना रहा है।
दोनों ही पक्षों के बीच टकराव की स्थिति के बीच यदि सभापति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, तो संभावनाएं हैं कि सोमवार से दोबारा शुरू होने वाली संसद की कार्यवाही में ये गतिरोध की नई स्थितियों को जन्म देगा। वेंकैया नायडू के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को कुछ भी विशेष लाभ तो नहीं ही होगा, अपितु विपक्षी दलों के इस कदम से पेगासस के मुद्दे पर उनकी हताशा हास्य का विषय अवश्य बन जाएगी। पेगासस मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट में भी है, ऐसे में अब इस मुद्दे पर बेतुका विरोध प्रदर्शन केवल संसद की कार्यवाही को बाधित करने की विपक्षी नीयत को प्रदर्शित करता है।
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पहले राज्यसभा में आईटी मंत्री के हाथ से छीनकर टीएमसी सांसद शांतनु सेन ने कागज फाड़े, और लोकसभा में कार्यवाही के दौरान नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सांसदों ने सदन में कागज फाड़े, जिसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी विपक्ष के दस सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करने के मूड में हैं। वहीं, राज्यसभा में पहले ही शांतनु सेन के खिलाफ वेंकैया नायडू एक सत्र के निष्कासित की कार्रवाई कर चुके हैं, जिसको लेकर विपक्ष बैकफुट पर जा चुका है।
स्पष्ट है कि पेगासस और किसान आंदोलन के मुद्दे पर विपक्ष पूर्णतः हताश हो चुका है, उसके पास अब बोलने को कुछ नहीं है। ऐसे विपक्षी सांसदों पर अराजकता फ़ैलाने के चलते सख्त कार्रवाई की संभावनाएं भी हैं, जिसके चलते हताशा की पराकाष्ठा को पार चुके विपक्ष का निशाना वेंकैया नायडू बन गए हैं, लेकिन न उनकी कुर्सी खतरे में है, और न ही मोदी सरकार की विश्वसनीयता। हां विपक्ष को एक बार फिर से हार अवश्य मिलेगी।