खाद्य तेल पर भारत की आयात निर्भरता लगातार बढ़ रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल 11,000 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-पाम तेल (NMEO-OP) की घोषणा की, ताकि भारत को ताड़ के तेल सहित खाना पकाने के तेल मेंं भी आत्मनिर्भर बनाया जा सके। PM मोदी ने पीएम-किसान (PM-K। SAN) की एक किस्त जारी करने के अवसर पर एक वर्चुअल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसानों को मिशन के तहत गुणवत्ता वाले बीज से लेकर प्रौद्योगिकी तक की सभी सुविधाएं मिलें।” उन्होने यह भी कहा कि भारत चावल, गेहूं और चीनी के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि देश आयातित खाद्य तेलों पर अत्यधिक निर्भर है।‘
आयात कम करने के उद्देश्य से पिछले कुछ वर्षों से भारत मेंं तिलहन और पाम तेल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र पहले से ही तिलहनऔर पाम तेल पर एक राष्ट्रीय मिशन चला रहा है। सूत्रों ने कहा कि नए मिशन की योजना 2025-26 तक पाम तेल की खेती को 10 लाख हेक्टेयर और 2029-30 तक 17-1.8 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ाने की है। सूत्रों ने कहा कि, केंद्र किसानों को पाम तेल की खेती की ओर स्थानांतरित करने के लिए दी गई वित्तीय सहायता को बढ़ाने और उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने पर भी विचार कर रहा है। भारत अपनी घरेलू मांग के 60 प्रतिशत से अधिक को पूरा करने के लिए आयातित खाद्य तेल पर निर्भर है, क्योंकि घरेलू तिलहन उत्पादन कम है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा वनस्पति तेल आयातक है और खाद्य तेल आयात पर सालाना औसतन $8.5-$10 बिलियन खर्च करता है।
भारत ताड़ के तेल का भी दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है, जो मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से सालाना 9 मिलियन टन से अधिक की खरीद करता है।देश मेंं सालाना खपत होने वाले लगभग 24 मिलियन टन खाद्य तेल के आधे से भी कम का उत्पादन होता है। यह इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम तेल, ब्राजील और अर्जेंटीना से सोया तेल और मुख्य रूप से रूस और यूक्रेन से सूरजमुखी तेल खरीदकर बाकी का आयात करता है। देश ने खाद्य तेल आयात पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए, मोदी ने कहा, यह पैसा किसानों के पास जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि ताड़ की खेती के लिए उत्तर-पूर्वी राज्यों और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को बढ़ावा दिया जा सकता है।पाम तेल बड़े पैमाने पर मलेशिया और इंडोनेशिया से आयात किया जाता है, जिनके लिए भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता है। पाम तेल मलेशिया का सबसे बड़ा कृषि निर्यात है। खाना पकाने के तेल से लेकर जैव-ईंधन, इंस्टेंट नूडल्स और यहां तक कि पिज्जा आटा और लिपस्टिक तक, दुनिया भर मेंं इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
सितंबर के अंत मेंं मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मुहम्मद ने संयुक्त राष्ट्र मेंं भाषण देते हुए कहा कि “जम्मू और कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद, उस पर आक्रमण और कब्जा कर लिया गया है। इस कार्रवाई के कारण हो सकते हैं, लेकिन यह फिर भी गलत है। समस्या को शांतिपूर्ण तरीकों से हल किया जाना चाहिए। भारत को इस समस्या को हल करने के लिए पाकिस्तान के साथ काम करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की उपेक्षा करने से संयुक्त राष्ट्र और शासन के लिए अन्य प्रकार की दिक्कतें होगी” जिसके बाद राष्ट्रहित और सरकार के अपील का मान रखते हुए SEA। ने अपने 875 सदस्यों को दोनों देशों के बीच “तनावपूर्ण संबंधों” का हवाला देते हुए मलेशियाई पाम तेल खरीदने से परहेज करने के लिए एक सलाह जारी की।
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इसके बाद ‘प्रीमियम प्राइस’ चुकाने के बावजूद पाम तेल के व्यापारी इंडोनेशिया के तरफ मुड़ गए। मलेशिया का कश्मीर आलाप और पाकिस्तान प्रेम को देखते हुए भारत के लिए ये ज़रूरी हो गया था की वो पाम तेल के लिए मलेशिया पर निर्भरता कम कर के उसे एक कूटनीतिक जवाब दे जो की भारत ने दिया भी। मलेशिया ने कूटनीतिक स्तर पर इसे हल करने की विनती की और साथ-साथ अपना सबसे बड़ा बाज़ार भी खो दिया। इंडोनेशिया ने उसकी जगह ली। परंतु, अब भारत हर प्रकार से खाद्य तेल मेंं पूर्णतः आत्मनिर्भर होना चाहता है। फरवरी 2021 में सीतारमण द्वारा पेश किए बजेट में ही इसके लिए आर्थिक फ़ंड के साथ-साथ एक वृहद कार्ययोजना तैयार की गयी जिसकी नवीनतम कड़ी में कल पीएम ने 11000 करोड़ के पैकेज का ऐलान किया।