पाकिस्तान एक बाघ की सवारी कर रहा है, अब यही उसे मौत के मुंह में ले जायेगा

पाकिस्तान बाघ पर चढ़ तो गए हो, उतरोगे कैसे?

पाकिस्तान तालिबान

हाल ही में मानवता फिर से कलंकित हो गई, जब अफ़गानिस्तान पर तालिबान  ने पुनः कब्जा प्राप्त करते हुए वर्तमान अशरफ गनी की सरकार को सत्ता से अपदस्थ कर दिया। अशरफ गनी ने फिलहाल ताजिकिस्तान (Tajikistan) में शरण ली है। इस बीच अफगानिस्तान में जहां तालिबान के पुनः सत्ता ग्रहण से दुनिया भर के वामपंथी मौन है, तो वहीं पाकिस्तान की बांछें खिल रही है।

हो भी क्यों न, आखिरकार इस पूरे प्रकरण के पीछे सबसे बड़ा हाथ उसी का रहा है। यदि आज अफगानिस्तान में तालिबान ने पुनः सत्ता ग्रहण की है, तो इसके पीछे पाकिस्तान का ही सबसे बड़ा योगदान है। पाकिस्तान अब तालिबान को अंतरराष्ट्रीय वैधता दिलाने के लिए भरसक प्रयास भी कर रहा है। इसमें चीन भी उसकी मदद कर रहा है, लेकिन शायद पाकिस्तान भूल रहा है कि वह जिस जहरीले सांप को दुध पिला रहा, वह उसे ही डसेगा।

इसके पीछे कई कारण हैं। सर्वप्रथम कारण है स्वयं इतिहास। पाकिस्तान ने कभी इतिहास से कोई सीख नहीं ली है, और आगे भी उसे ऐसा कोई काम करने में कोई रुचि नहीं है। जब 1996 में तालिबान ने अफ़गानिस्तान की सत्ता ग्रहण की थी, तभी पाकिस्तान ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया था, ये जानते हुए भी कि वह आगे चलकर उसी की पीठ में छुरा भोंक सकता है, और हुआ भी वही। 2005 से 2015 के बीच पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी इलाके इस्लामी आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। पाकिस्तान ने खुलेआम तालिबान को समर्थन देकर राजनीतिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक तौर पर मुसीबत मोल ली है।

तालिबान का दिल से समर्थन करेगा चीन, चाहे यह कदम आत्मघाती ही क्यों न साबित हो

पाकिस्तान द्वारा तालिबानी ‘सरकार’ को ‘वैध’ सिद्ध करने के पीछे का कारण स्पष्ट है – पाकिस्तान दक्षिण एशिया में अपना खोया ‘वर्चस्व’ वापस पाना चाहता है और इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार है, और इमरान खान के नेतृत्व में एक बार फिर पाकिस्तान ने तालिबान को अपना सहारा बनाया है। पाकिस्तान को लगता है कि जैसे 1996 में तालिबानी सत्ता को बिना किसी स्पष्ट विरोध के, कूटनीतिक दांवपेंच के जरिए ‘प्रमाणित’ किया गया था, वैसे ही इस बार भी ‘प्रमाणित’ किया गया जाएगा।

हालांकि, अब समय बदल चुका है, यह 1996 नहीं है और अब लोग जागरूक भी हैं। अफगानिस्तान  के जो आज हालात है उसके लिए अमेरिका भी दोषी है। ऐसे में अमेरिका में भले ही जो बाइडन जैसे अकर्मण्य प्रशासक हो, जिन्होंने बिल क्लिंटन की भांति जानते बूझते हुए अफगानिस्तान को आतंकियों के हवाले कर दिया, पर तालिबान को वैधता देकर बाइडन अमेरिका की साख पर और बड़ा धब्बा लगाने की गलती नहीं करेंगे। यूरोप भी तालिबान को मान्यता नहीं देने की बात कर चुका है ऐसे में चीन को छोड़कर शायद ही कोई देश तालिबानी शासन को फिलहाल के लिए मान्यता देगा। यहाँ तक कि प्रारंभ में तालिबान का समर्थन करने वाले सऊदी अरब और UAE प्रशासन का भी रुख पूरी तरह से बदल चुका है। वे किसी भी स्थिति में तालिबानी सत्ता को मान्यता देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहते, जैसे चीन इस समय करने पर उतारू है।

पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान को बर्बाद कर रहा, अब अफगानियों ने उससे बदला लेने की ठान ली है

 

भले ही पाकिस्तान मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई का राग अलापता है परन्तु उससे भी कहीं खास संबंध एक पश्तून का दूसरे पश्तून से होगा। ऐसे में पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच डूरंड रेखा को लेकर नए तरीके से विवाद देखने को मिलेगा। अफ़ग़ानिस्तान का कम्युनिस्ट हो या पूंजीपति, तालिबानी हो या कबायली लड़ाका, शहरी हो या देहाती, सभी डूरंड रेखा को सही नहीं मानते। भले ही अफगानिस्तान की पूर्व सरकार बस बोलती थी परन्तु तालिबान के नेतृत्व में एक्शन देखने को मिलेगा। पश्तून आंदोलन पाकिस्तान में और तेजी से बढेगा जो पाकिस्तान की नींव हिला सकता है।

इसके अलावा पाकिस्तान को अपने ही घर में इस बात के लिए भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हिंदुस्तान समाचार की रिपोर्ट के  अनुसार, “पाकिस्तान में उत्तर पश्चिम प्रांत के पश्तूनो ने स्पष्ट तौर पर अफगानिस्तान की बिगड़ती हालत के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है। उनका यह भी मानना है कि आतंकवादी संगठनों के पीछे इस्लामाबाद का सपोर्ट है। पश्तूनो का मानना है कि पाकिस्तानी सरकार लंबे समय से आतंकवादियों को उकसा रही है और अब तालिबान में आतंकवादियों को हथियार तथा अन्य सपोर्ट मुहैया करा रही है। सूत्रों के अनुसार पीटीएम [Pashtun Tahfuz Movement] के सदस्य तालिबान और पाकिस्तान पर यह भी आरोप लगा रहे हैं कि उनके क्षेत्र में भी आतंकवादी गतिवधियों के पीछे तालिबान और इस्लामाबाद का ही हाथ रहा है।”

कमाल की बात तो यह है कि तहरीक ए तालिबान न पाकिस्तान को अपना मानता है, और न ही उसके ‘आका’ चीन को। हाल ही में एक आत्मघाती हमले में 9 चीनी अभियंताओं की हत्या हुई, जिसमें प्रारंभ में पाकिस्तान ने भारत और अफ़गानिस्तान पर दोष डालने का प्रयास किया, परंतु पोल तब खुली, जब इसमें तालिबान की सक्रियता सामने आई।

इसके बावजूद पाकिस्तान और चीन दोनों ही अफ़गान तालिबान को पूरा समर्थन दे रहे हैं, ताकि वे अपना निजी हित साध सकें। लेकिन इस बार इन्होंने सीधा बाघ की सवारी करने की भूल की है। इस बार अगर पाकिस्तान तालिबान रूपी बाघ से गिरा, तो उसका वो सर्वनाश होगा, जो उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

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