तालिबान के कब्जे के बाद, पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ सक्रिय अपने आतंकवादी शिविरों को अफगानिस्तान के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। मीडिया द्वारा एक्सेस किए गए विशेष विवरण के अनुसार, पाकिस्तान ने लश्कर (एलईटी) के कई शिविरों को अफगानिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया है, जबकि जैश (जेएम) के शिविर अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में स्थानांतरित हो गए हैं। स्पष्ट जानकारी के लिए बताते चलें की डूरंड रेखा दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2,670 किमी (1,660 मील) अंतरराष्ट्रीय भूमि सीमा है।
डूरंड रेखा पाकिस्तान और अफगानिस्तान से होकर गुजरती है तथा जातीय पश्तूनों को विभाजित करती है, जो सीमा के दोनों किनारों पर रहते हैं। यह अफगानिस्तान के उत्तरपूर्वी, पूर्वी और दक्षिणी प्रांतों से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान और उत्तरी और पश्चिमी पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान का सीमांकन करता है। पश्चिमी छोर ईरान तक जाता है और पूर्वी छोर पश्चिमी चीन में है। भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक दृष्टिकोण से, इसे 1980 के दशक से तस्करी और आतंकवाद के कारण दुनिया की सबसे खतरनाक सीमाओं में से एक के रूप में वर्णित किया गया है।
एक पंथ दो काज
पाकिस्तान इन्हीं अस्पष्ट सीमाई क्षेत्रों के सहारे तालिबान की मदद करता था और अब पाकिस्तान स्थित सारे आतंकी संगठनों को उस पार स्थापित करने की फिराक में है। पाकिस्तान अपने इस नापाक हरकत से “एक पंथ दो काज” वाले कहावत को चरितार्थ करना चाहता है। पाकिस्तान से अफगानिस्तान में आतंकी शिविरों को स्थानांतरित करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की संभावित कार्रवाई से बचना चाहता है। FATF ने जून 2018 में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा था और इस्लामाबाद से 2019 के अंत तक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक वित्तपोषण (टेरर फाइनेंसिंग) पर अंकुश लगाने के लिए 27-सूत्रीय कार्य योजना लागू करने का आग्रह किया था। इस फरवरी में, FATF पूर्ण बैठक ने पाकिस्तान को चौथा विस्तार दिया था। FATF ने एनई 27-सूत्रीय कार्य योजना को पूरी तरह से लागू करने और आतंकवाद के वित्तपोषण की जांच और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के बारे में शेष शर्तों को दृढ़ता से पूरा करने के लिए आग्रह किया था। पिछले महीने विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सुनिश्चित किया कि पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में बना रहे। अब पाकिस्तान की एक और गलती उस पर भारी पड़ सकती है।
दूसरा, पाकिस्तान इन आतंकी संगठनों के सहारे अपने छद्म कश्मीर युद्ध को जारी रखना चाहता है लेकिन बालाकोट और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसे घटनाओं की भी नहीं चाहता। इसके साथ-साथ वो अमेरिका के साथ लादेन वाला प्रकरण भी नहीं दोहराना चाहता। केंद्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान में प्रतिनियुक्त एक उच्च पदस्थ सूत्र ने ZEE न्यूज़ से कहा, “पाकिस्तान के आईएसआई गुर्गे लश्कर-ए-तैयबा/जेईएम के आतंकी नेटवर्क को चलाने और तालिबान-हक्कानी नेटवर्क के साथ समन्वय स्थापित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।”
जैश-ए-मोहम्मद अफगानिस्तान में तालिबान के संचालन के लिए वरिष्ठ कमांडरों और प्रशिक्षित कैडरों को तैनात कर रहा है। उन्हें अफगानिस्तान भेजने के लिए, विशेष रूप से पेशावर में जैश-ए-मुहम्मद मरकज में नियमित रूप से ताज़ा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। तालिबान के कुछ शैडो कमांडर जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हैं। जैश-ए-मुहम्मद तालिबान से प्रतीकात्मक संबंध साझा करता है और अफगान तालिबान के साथ निरंतर परिचालन तालमेल रखता है। जैश तालिबान की सहायता के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षित कैडर भी मुहैया करा रहा है। तालिबान के हाथ में जो हथियार गिरे हैं, उन्हें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की ओर मोड़ा जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की साजिश ।S। कर रही है।
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नवीनतम खुफिया इनपुट के अनुसार, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में एलओसी के पास लॉन्च पैड पर आतंकवादियों की मौजूदगी बढ़ रही है। आतंकी जम्मू से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा से घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं ताकि इस इलाके को निशाना बनाया जा सके। जनवरी 2021 से अब तक कश्मीर में सुरक्षाबलों ने 12 विदेशी आतंकियों समेत कुल 92 आतंकियों को ढेर किया है। पाकिस्तान यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहा है कि तालिबान बदल गया है।