‘जहां सत्ता वहां पीके’, अगर ये कहा जाए तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। स्वयं को सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक रणनीतिकार मानने वाले प्रशांत किशोर के पैटर्न को देखें, तो ये कहा जा सकता है कि वो उन राजनेताओं के साथ ही काम करते हैं जिनके जीतने की संभावनाएं पहले से ही अधिक होती हैं। साल 2015 के बिहार, 2017 के पंजाब या 2021 पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव, सभी जगह पीके ने उस नेता और पार्टी का ही साथ दिया जिसके जीतने की संभावनाएं सबसे ज्यादा थीं।
इसके विपरीत कैप्टन अमरिंदर सिंह के सलाहकार बनकर बैठे प्रशांत किशोर ने अचानक ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वो बहाना तो राजनीति से दूर जाने का कर रहे हैं लेकिन उनकी मंशा पर्दे के पीछे से राजनीति करने की है। दरअसल, प्रशांत किशोर करीब-करीब सभी विपक्षी पार्टियों के साथ उठते-बैठते हैं। माना जाता है कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बात विपक्षी नेता टालेंगे नहीं।
कमजोर होते व्यक्ति का साथ सबसे पहले वो लोग छोड़ते हैं, जिनकी महत्वकांक्षाएं उस व्यक्ति से सबसे अधिक होती है। कैप्टन अमरिंदर सिंह की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। पंजाब में कांग्रेस अध्यक्ष पद नवजोत सिंह सिद्धू को दिया जाना कैप्टन के घटते कद का स्पष्ट संकेत देता है; क्योंकि कैप्टन और सिद्धू के बीच टकराव की स्थिति है।
ऐसे मे प्रशांत किशोर को पता है कि न उन्हें सिद्धू से लाभ है, न ही कैप्टन के साथ रहने से। ऐसे में अब प्रशांत किशोर ने एक प्लानिंग के तहत ही कैप्टन का साथ छोड़ते हुए उनके सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस निर्णय के पीछे उनकी एक बड़ी योजना है।
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दरअसल, पीके के कांग्रेस में जाने की संभावनाएं काफी अधिक हैं। कांग्रेस नेता और वायनाड के सांसद राहुल गांधी की प्लानिंग है कि किसी तरह से प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल किया जाए। राहुल पार्टी के बड़े नेताओं के साथ बैठक कर लगातार पीके के लिए रास्ते खोल रहे हैं। इसके विपरीत पेंच इस बात पर फंसा हुआ है कि पीके पार्टी में महासचिव स्तर का कोई पद चाहते हैं।
स्पष्ट है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस को भी ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं हैं। पीके राजनीतिक रणनीति का खुद को मास्टर मानते हैं। कुछ मोदी विरोधी नेताओं की जीत के पीछे पीके खुद की रणनीतियों को एक बड़ी वजह मानते हैं और ममता की जीत के बाद तो वो हवा में ही हैं।
कांग्रेस में पीके की मांग बढ़ना इस बात का संकेत देता है कि वो 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के लिए रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। प्रशांत किशोर ने हमेशा उसी नेता का साथ दिया जो स्वयं में मजबूत थे। बिहार में साल 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में महागठबंधन की जीत हुई, तो उसका श्रेय पीके ने लिया, 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन की जीत हुई उनकी छवि के कारण, किन्तु श्रेय पीके ने ही लिया।
इस वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में बंगाल में ममता और तमिलनाडु में स्टालिन की जीत का श्रेय भी पीके ने ही लिया, जो संकेत देता है कि पीके केवल उस खिलाड़ी पर अपना दांव लगाते हैं; जो सबसे मजबूत होता है।
श्रेय लेते-लेते और विपक्षियों के साथ काम करते हुए प्रशांत किशोर एक ऐसे रणनीतिकार बन गए हैं, जिनके सभी राजनतिक दलों के नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं। प्रशांत किशोर लगातार विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं, जिनमें एनसीपी नेता शरद पवार से लेकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी भी शामिल है।
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दिलचस्प बात ये है कि इस वक्त पूरा विपक्ष पीएम मोदी को हराने की कोशिशों में जुटा है। इसके लिए विपक्ष को एक ऐसे शख्स की तलाश है, जोकि देश में विपक्षी एकता को मजबूत कर सके और फिर विपक्ष के बीच से एक सर्वश्रेष्ठ नेता को चुनकर उसे नेतृत्व दे सके; इसलिए अब सभी प्रशांत किशोर की शरण में हैं।
ऐसे में ये माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर ही 2024 में विपक्षी गठबंधन की पटकथा के अध्याय लिखेंगे। प्रशांत किशोर जिसे वरीयता देंगे, विपक्षी दल उसे ही अपना संयुक्त नेता मान लेंगे। यही कारण है विपक्ष के अनेकों नेता पीके से करीबी रखने के प्रयास में हैं।
प्रशांत किशोर को 2024 के विपक्षी नेतृत्व का रणनीतिकार माना जा रहा है, लेकिन ये विपक्ष के बीच टकराव की सबसे बड़ी वजह भी बन सकता है, क्योंकि लगभग सभी विपक्षी नेता पीएम इन वेटिंग हैं। ऐसे में यदि पीके ने किसी विवादित नाम नेता को आगे कर दिया, तो विपक्ष में एक बड़ा टकराव भी हो सकता है।