आम तौर पर हमारे देश के उच्च संस्थान जानबूझकर सच्चाई से मुंह मोड़ना ही अपने लिए श्रेयस्कर मानते हैं। वे जानते-बूझते हुए भी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देशवासियों को असामाजिक तत्वों के बढ़ते अत्याचारों पर मौन रहने को विवश कर देते हैं। कितनी ही बार समाज का कोई वर्ग अपनी भावनाओं को धर्मनिरपेक्षता के चक्कर में तिलांजलि दे देता है। कितनी ही बार सनातनी अपने गुस्से को पी जाता है। कितनी ही बार अपनी परंपराओं, अपनी मान्यताओं पर होते प्रहारों के बाद भी लोगों को चुप रह जाना पड़ता है। यह सबकुछ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर होता है,लेकिन शायद अब धीरे-धीरे न्यायपालिका भी समझने लगी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले के दौरान जो बातें कहीं वो इसी तरफ इशारा है।
हाल ही में अवैध धर्मांतरण से संबंधित एक मामले में एक समुदाय विशेष के शख्स को जमानत देने से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट मना कर दिया। हाईकोर्ट ने सिर्फ जमानत देने से इनकार ही नहीं किया, बल्कि इस दौरान कई गंभीर बातें भी कहीं। कोर्ट की इन बातों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।
और पढ़ें: ‘धर्मांतरण का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है’, लव जिहाद पर योगी की निर्णायक कार्रवाई
सबसे पहले जान लेते हैं कि मामला क्या था, लाइव लॉ के रिपोर्ट के अंश अनुसार, “जावेद अंसारी नामक व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद’ के खिलाफ बने कानून के तहत हो रही कार्रवाई को रोकने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था। आरोप था कि बिना जिलाधिकारी को सूचित किए हुए अवैध रूप से हिन्दू युवती का धर्म-परिवर्तन कर उसे मुस्लिम बना दिया गया। साथ ही उसका यौन शोषण भी किया जा रहा था।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद आयुषी के परिवार के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए कहा, “हर वयस्क व्यक्ति को स्वेच्छा से धर्म-परिवर्तन व दो बालिगों को सहमति से विवाह का अधिकार है। किसी भी धर्म का व्यक्ति किसी भी धर्म के व्यक्ति से विवाह करने के लिए स्वतंत्र है। ऐसा भी होता है कि अपमान व उपेक्षा के कारण भी कई बार लोग धर्मांतरण करते हैं”।
इलाहाबाद हाईकोर्ट यहीं नहीं रुका। हाईकोर्ट की पीठ अपने निर्णय में आगे बताती है, “किसी भी देश में जब बहुसंख्यकों का धर्मांतरण होता है तो देश इससे कमजोर है। इससे विघटनकारी शक्तियों को लाभ प्राप्त हो जाता है। देश का इतिहास बताता है कि जब-जब हम बँटे और देश पर आक्रमण हुआ, तब-तब हम गुलाम हुए। किसी को ये अधिकार नहीं है कि लालच या भय के माध्यम से किसी का धर्मांतरण कराए। अगर जबरन ऐसा किया जाता है तो इससे विवेक की स्वतंत्रता प्रभावित होगी।”
इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विशेष तौर पर हवाला देते हुए न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने कहा कि ऐसी घटनाओं से सार्वजनिक व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इलाहाबाद उच्च-न्यायालय ने इससे पहले भी एक फैसले में कहा था कि केवल शादी के लिए धर्म-परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है। इस मामले में कोर्ट ने माना कि पीड़िता को उर्दू नहीं आती थी और धोखे से हस्ताक्षर करा कर उसका मानसिक व शारीरिक यौन शोषण किया गया।
जिस प्रकार से न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने अपने विश्लेषण में इस बात पर जोर दिया कि किसी भी देश की बहुसंख्यक आबादी का अवैध धर्मांतरण कितना हानिकारक है, उसके लिए हमें ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं। आज जो पाकिस्तान हमारे लिए सरदर्द बना हुआ है, वह कभी हमारे अविभाजित भारत के पंजाब, सिंध, खैबरपख्तूनख्वा और बलुचिस्तान जैसे प्रांतों से ही बना हुआ था, लेकिन जबरन धर्मांतरण ने इन प्रांतों की जो दुर्गति की, उसका प्रमाण आज सबके सामने है।
इसी प्रकार से ईरान, लेबनान, अफगानिस्तान, इराक इत्यादि भी प्रारंभ से इस्लाम बाहुल्य नहीं थे, परंतु जबरन धर्मांतरण के कारण इन्होंने अपने हाथों से अपना विनाश तय किया। ऐसे में जब न्यायपालिका को भी स्वीकारना पड़ रहा है कि अवैध धर्मांतरण राष्ट्र के लिए हानिकारक है, तो हमें आशा है कि जल्द ही इस दिशा में अहम कदम भी उठाए जाएंगे।