शरिया कानून: महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों और बच्चों के लिए इसका क्या अर्थ है

शरीयत

इतिहास चाहे जो भी हो पर अंततः अफगानिस्तान बिखर गया। तालिबानी ने फिरसे कब्जा कर लिया। दुनिया ने जन-क्रांति से भागते क्रूर शासकों को तो देखा परंतु क्रूर सत्ताधीशों के भय से अपनी मातृभूमि को छोड़ भागती जनता पहली बार देखी गयी। बेल्जियम की क्रांति, फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति, चीनी क्रांति या फिर भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन सभी जगह जनता ने निरंकुश व्यवस्था को ध्वस्त कर येन केन प्रकरेण शांति व्यवस्था स्थापित की। पर अफगानिस्तान मे इतना भय का माहौल क्यों है? कारण सिर्फ एक है- शरिया व्यवस्था। शरिया व्यवस्था ही शुद्ध इस्लामिक शासन है। पूर्ण शरीयत को लागू करना ही इस्लामी शासन का उद्देश्य है बाकी सब तो बस नकाब है। इसलिए तालिबान के इतिहास से ज्यादा महत्वपूर्ण शरिया के बारे में जानना है क्योंकि इसी के माध्यम से तो शासन चलेगा।

शरीयत क्या है:

वैसे तो अरबी में, शरिया का शाब्दिक अर्थ है “पानी के लिए स्पष्ट, अच्छी तरह से चलने वाला मार्ग”। लेकिन, जब आप उपयुक्त लिखे बिन्दुओं पर ध्यान देंगे तब आप दो निष्कर्ष पर पहुचेंगे। पहला ये कि शरिया अनिवार्य है। इसके अवज्ञा पर क्रूर दंड का प्रावधान है। दूसरा ये कि ‘’शरिया क्या है’’ ये बात किसी को नहीं पता। शरिया का स्त्रोत कुरान, हदीस और सुन्नत है। इस्लाम के अनुसार कुरान अर्थात ईश्वर की वाणी जिसे पैगंबर ने बताया। हदीस और सुन्नत मतलब पैगंबर के विचार और व्यवहार। अब ज़रा सोचिए जो पैगंबर ने कभी कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की, ऐसे में उनके द्वारा प्रसारित किये गये संदेशों की क्या विश्वसनीयता होगी? ऊपर से उनके द्वारा कहे गए कुरान की आयतों का संकलन उनकी मृत्यु के बहुत बाद उनके अनुयायियों द्वारा किया गया। जब कुरान और पैगंबर की विश्वसनीयता को कोई प्रमाणित नहीं करता तो उससे निकले शरीयत की वास्तविकता क्या होगी?

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जहाँ इनसे सीधे उत्तर प्राप्त नहीं किया जा सकता है, धार्मिक विद्वान किसी विशेष विषय या प्रश्न पर मार्गदर्शन के रूप में निर्णय दे सकते हैं जिसे फतवा व्यवस्था कहते हैं। शरीयत में इसी फ़तवे को कानूनी मान्यता है। इसके अलावा इस्लामी कानून के पांच अलग-अलग स्कूल हैं। चार सुन्नी स्कूल हैं: हनबली, मलिकी, शफ़ी और हनफ़ी, और एक शिया स्कूल, जाफ़री। पांचों स्कूल अलग-अलग तरीको से इन ग्रंथों की व्याख्या करते हैं जिनसे शरिया कानून लिया गया है। इस्लामी कानून की व्याख्या स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों के अनुसार भी की जाती है, जिसका अर्थ है कि शरिया अलग-अलग जगहों पर काफी अलग दिख सकता है। यही ढकोसला, मतभेद और विरोधाभास परिस्थिति को भयावह बना देता है और जनता के अफगानिस्तान से भागने का मूल कारण भी है।

तल्हा अब्दुलराजाक, यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर्स स्ट्रैटेजी एंड सिक्योरिटी इंस्टीट्यूट में रिसर्च फेलो के अनुसार- ‘’तालिबान की इस्लामिक कानून की व्याख्या “हनफ़ी न्यायशास्त्र के देवबंदी स्ट्रैंड” से आती है। पाकिस्तान और भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के कई हिस्सों में पाई जाने वाली यह शाखा और समूह कट्टर इस्लामी शासन की हिमायती है।”

महिलाएं:

महिलाओं से संबंध में शरिया कानून के कुछ निम्न उदाहरण देखिये:

इन सभी शरिया क़ानूनों को देखकर कोई भी समझ जाएगा की शरीयत में महिलाओं के लिए सिर्फ पाबंदी ही है। इसपर गौर करेंगे तो पायेंगे कि शरीयत के अनुसार महिलाएं को बंद कर रखा जाना चाहिए और वो सिर्फ वासना और प्रजनन के हेतुक निर्मित एक वस्तु है।

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धार्मिक अल्पसंख्यक

शरीयत के अनुसार अल्पसंख्यक केवल दुश्मन ही हैं। ये काफिर हैं जिन्होंने अल्लाह के आदेश की नाफरमानी की है। शरीयत में इनके लिए तीन ही प्रावधान है। मरो, भागो या फिर परिवर्तित हो जाओ। जीने के लिए जज़िया चुकाओ। अपने धर्म को छिपाओ और अधिकार भूल ही जाओ। इसके ऊपर से इस बात का सदैव स्मरण रहे कि तुम काफिर हो। बमियान के बुद्ध प्रतिमा का विध्वंस, अफगानी धरती से हिन्दू और सिखों का समापन, धर्म परिवर्तन, धार्मिक हिंसा और जनसंहार सब शरीयत कानून के कारण ही हुआ है।

बच्चे:

शरिया बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाने से ज्यादा एक कट्टर और धर्मांध मुसलमान बनाने पर ज़ोर देता है। तालिबान का तो शाब्दिक अर्थ ही ‘छात्र’ होता है। शरीयत का अक्षरसह पालन करने पर बच्चों का भविष्य कैसा होगा ये आप तालिबान को देखकर अंदाज़ा लगा सकतें है। तालिबानी भी छात्र है जो शरीयत का पूर्णतः पालन करते हैं। बच्चों के लिए ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य और तकनीक की पढ़ाई गलत है। सिर्फ अल्लाह की किताब में ही सब समाहित है। इस किताब को पढ़कर पूरे विश्व में इस्लाम की स्थापना करना ही परम उद्देश्य होना चाहिये। इसके लिए चाहे उन्हें जिहादी बनना पड़े या मुजाहिद।

जिस कानून में प्रगतिशीलता, समरूपता और लचीलापन न हो वो टूटने के लिए ही बनते हैं। लेकिन असहाय लोग करें तो क्या करें ? यदि अवज्ञा की तो मृत्युदंड हो और वो भी बर्बर तरीके से। दुनिया को देखना चाहिए कि एक सच्चा इस्लामिक शासन कैसा होता है। और समझना चाहिए कि इसी शासन को कायम करने के लिए वो दिन रात जुटे हैं। खुद सोचिए आज की तारीख में हिन्दू राजाओं के गौरवशाली इतिहास से समृद्ध अफगानिस्तान में एक भी हिन्दू नहीं बचा। यह इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण तारीख के रूप में अंकित होना चाहिए था लेकिन दुर्भाग्य ती बात ये है कि यही शरीयत है

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