सिद्धू के दो सलाहकार, एक पाक समर्थक तो दूसरा अलगाववादी है

सिद्धू सलाहकार

वाह रे नियति, कहाँ नवजोत सिंह सिद्धू सीएम अमरिंदर को निपटाने के लिए पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने थे और अब उनका पासा उन्हीं पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। पंजाब कांग्रेस इकाई हाथ आने के बाद से सिद्धू के पैर धरा पर पड़ ही नहीं रहे थे कि उन्हीं के कष्टों में सहायक बनने के लिए नियुक्त किए गए सलाहकार ही आपत्तिजनक पोस्ट डालते हुए सिद्धू की पीड़ा का वास्तविक कारण बन गए हैं। सिद्धू अब अपने दो सलाहकारों के बड़बोलेपन के कारण विपक्षी पार्टियों के शिकार और अपनी पार्टी के लिए किरकिरी बनकर रह गए हैं।

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर हालिया टिप्पणियों और दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विवादास्पद स्केच के बाद हुए विवाद के बाद सोमवार को अपने दोनों नवनियुक्त सलाहकार मलविंदर सिंह माली और प्रो॰ प्यारे लाल गर्ग को अपने पटियाला स्थित आवास पर तलब किया है। इन दोनों के कुछ कर्मकांडों ने कांग्रेस समेत सिद्धू की बड़ी तबीयत से फजीहत की है।

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ज्ञात हो कि, सिद्धू के एक सलाहकार मालविंदर सिंह माली ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा था, “दोनों भारत और पाकिस्तान कश्मीर पर अवैध कब्जेदार हैं। कश्मीर सिर्फ कश्मीरियों का है, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के सिद्धांतों के खिलाफ, भारत और पाकिस्तान ने गैरकानूनी तरीके से कश्मीर को हड़प लिया।”इसके साथ ही मलविंदर सिंह ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की अपने कवर पेज पर 1990 के आसपास प्रकाशित होने वाली एक मैगजीन ‘जनतक पैगाम’ के मुख्य पृष्ठ का फोटो लगाया था। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हाथ में बंदूक लिए दिखाया था, जिसके एक सिरे पर खोपड़ी लटक रही थी। इंदिरा के पीछे भी खोपड़ियों का ढेर लगा हुआ है। इस पेज पर पंजाबी में लिखा था, ‘हर जबर दी इही कहाणी, करना जबर ते मुंह दी खानी।’ यानि ‘हर जुल्म करने वाले की यही कहानी है, अंत में उसे मुंह की खानी पड़ती है।’

https://twitter.com/indiantweeter/status/1430017664898928675

दूसरी ओर प्रो॰ प्यारे लाल गर्ग ने कथित तौर पर अमरिंदर सिंह से पाकिस्तान की आलोचना को लेकर सवाल किया था और कहा था कि पाकिस्तान की आलोचना करना पंजाब के हित में नहीं है।

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ऐसे बयान इन दोनों से अपेक्षित ही थे, क्योंकि दोनों ने पूर्व में देश विरोधी गुटों के साथ खड़े होकर बड़ा योगदान दिया है। जहां माली ने कश्मीर को देश का हिस्सा बताने से ही मना कर दिया तो गर्ग इससे एक कदम आगे होते हुए रोहिंग्याओं के समर्थन में विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं, और रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा देने और देश से उनका निर्वासन न करने की मांग भी कर चुके हैं। इन दोनों के ऐसे व्यवहार से यह तो तय है कि इन्हें भारत से कोई भी सरोकार नहीं है बल्कि विशुद्ध रूप से खालिस्तान का समर्थक हैं तो दूसरा रोहिंग्याओं को दुलार कर देश में कुरीति फैलाना चाहता है।

इन सभी बातों से कांग्रेस आलाकमान और राज्य सरकार ने पहले ही पल्ला झाड़ते हुए कह दिया है कि सलाहकार के तौर पर माली और गर्ग कि नियुक्ति में कांग्रेस पार्टी का कोई भी योगदान नहीं था। इसके बाद सीएम अमरिंदर ने सिद्धू को सलाह भी दे दी है कि ऐसे तत्वों को रोका जाए और पार्टी की छवि को धूमिल करने से बचा जाए।

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वहीं, राज्य में विरोधी दलों में चाहे भाजपा हो, SAD हो आम आदमी पार्टी हो इन सभी ने इन घटनाओं और बयानों की निंदा तो की ही है, कांग्रेस भी इससे रुष्ट है और सार्वजनिक तौर पर इसकी भर्त्सना भी कर चुकी है। कांग्रेस की आंतरिक बैठकों के दौरान शीर्ष नेताओं ने माली और गर्ग पर कार्रवाई करने का निर्णय भी लिया है। इन दोनों पक्षों से कांग्रेस ने ऐसे पल्ला झाड़ा है जैसे न तो उसका माली और गर्ग से लेना देना है और न ही सिद्धू से।

इन सभी बयानों से माली और गर्ग जैसे देश के भीतर छुपे हुए भेदिये उजागर हुए हैं। वहीं सिद्धू अमरिंदर पर आक्रमण कर सीएम कुर्सी पर अतिक्रमण करने के चक्कर में यह भी भूल चुके हैं कि देश विरोधी तत्व इन्हीं के सारथी बन इनके सलाहकार बने बैठे हैं। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब कानूनी रूप से माली और गर्ग दोनों पर यथोचित कार्रवाई तो होनी ही चाहिए, पर कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों को भी आगाह करना आवश्यक है कि ऐसी घटनाओं में उसकी संलिप्तता पार्टी और उसके नेतृत्वकर्ता के लिए घटक सिद्ध हो सकती है।

शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने माली के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है। उन्होंने एक रिपोर्ट में कहा था,“क्या वह उन ताकतों के साथ खड़े हैं जो राष्ट्र के खिलाफ काम कर रही हैं? कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पुलिस को वास्तव में उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए।”

एक अन्य अकाली नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि यह कोई और नहीं, बल्कि सिद्धू थे जिन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख को गले लगाया था और अपने प्रधानमंत्री के प्रति अपनी दोस्ती बढ़ा दी थी, जब दोनों देशों के बीच विशेष रूप से मैत्रीपूर्ण शर्तें नहीं थीं। चीमा ने आगे कहा, “जब वह ऐसा है, तो सलाहकारों के बारे में शिकायत क्यों करें?” 

वास्तव में चीमा की बात गलत भी नहीं है, सिद्धू की तरह उनके सलाहकार भी पाक परस्त हैं और अलगाववादियों का समर्थन करने में शर्म नहीं महसूस करते। इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई तो होनी चाहिए।

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