गलतियां करना ज्यादा खतरनाक नहीं हैं, किन्तु परेशानी तब होती है, जब एक ही गलती दोहराई जाए। गलतियां दोहराते रहना ही मूर्खता का प्रमाण है, और श्रीलंका कुछ इसी मूर्खता का काम एक बार फिर करने की तैयारी कर चुका है। दक्षिण एशिया में नीति के अंतर्गत लागातार कब्जा करने के प्रयास कर रहे विस्तारवादी चीन के लिए वो देश काफी सकारात्मक होते हैं, जिनकी नीतियां दो पल में बदल जाती हैं। श्रीलंका भी थाली का एक ऐसा ही बैगन है, जो कि चीन से मात खाने के बाद भारत का हितैषी होने की नौटंकी करता है, और कुछ ही दिनों में पुनः चीन के हाथों बर्बाद होने के कदम बढ़ाने लगता है।अब श्रीलंका पुनः चीन से कर्ज लेने की गलती दोहरा रहा है।
अपनी गलतियों को दोहराते हुए अब श्रीलंका ने चीन के साथ 2,280 करोड़ रुपए का लोन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए है। महत्वपूर्ण बात ये है कि लोन के एग्रीमेंट पर ये हस्ताक्षर चाइना डेवलपमेंट बैंक और श्रीलंका सरकार के बीच श्रीलंका की पहल के बहाद हुए हैं। इस मामले में चीनी दूतावास ने बयान जारी करते हुए कहा है कि श्रीलंका के साथ हुए इस के बयान के नए एग्रीमेंट से श्रीलंका को कोविड रिस्पांस, आर्थिक सुधार, फाइनेंशियल स्टेबिलिटी और बेहतर आजीविका में मदद मिलेगी।
श्रीलंका को क्रमशः अप्रैल 2021 और मार्च 2020 में 500 मिलियन अमरीकी डालर के दो चरणों में 1 बिलियन अमेरिकी डालर की ऋण सहायता प्राप्त हुई है। हालांकि, श्रीलंका इस तथ्य से अवगत है कि चीनी वित्तीय सहायता उसके राष्ट्रीय हितों के लिए हानिकारक हो सकती है। इससे पहले टीएफआई द्वारा रिपोर्ट किया गया था कि कैसे चीनी वित्तीय सहायता एक बड़े ऋण संकट में ला सकती है। राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल के दौरान, श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह के वित्तपोषण के लिए अनुरोध किया था। चीन एकमात्र ऐसा देश था जिसने 6.3 प्रतिशत की अत्यधिक ब्याज दर पर द्वीप देश को 307 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया था।
बंदरगाह के प्रोजेक्ट की बर्बादी और ऋण के ब्याज तले श्रीलंका सरकार एक बड़े ऋण संकट में आ गई। इसका नतीजा ये हुआ कि बढ़ते कर्ज के बोझ से छुटकारा पाने के लिए, श्रीलंकाई सरकार ने 99 साल के पट्टे के माध्यम से बंदरगाह का 70 प्रतिशत स्वामित्व चाइना मर्चेंट्स ग्रुप को सौंप दिया था, जो कि चीन की सरकारी कंपनीराज्य के स्वामित्व वाली चीनी कंपनी है।
महत्वपूर्ण बात ये भी है कि केवल श्रीलंका ही नहीं है, जो चीन के कर्ज में फंसा हुआ है। नेपाल, मालदीव और अफ्रीका समेत कई अन्य देश चीन के कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। 2017 में नेपाल चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल हुआ था, जिसका अनुमान 1 ट्रिलियन डॉलर था। जबकि चीन ने दावा किया कि यह पहल क्षेत्रीय खिलाड़ियों के लिए अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने का एक बड़ा अवसर है। इसके विपरीत असल सत्य ये है कि उसने वाणिज्यिक दरों पर ऋण दिया।
मालदीव का द्वीप राष्ट्र भी चीन के 3.4 बिलियन डॉलर के भारी कर्ज के बोझ तले दब गया था, जिसने बाद में अपने कर्ज को ठीक कर लिया। श्रीलंका में चीन की कर्ज वाली कूटनीति थी जिसके कारण भारत और उसके समुद्री पड़ोसी के बीच संबंधों में खटास आई थी। चीन से कर्ज बढ़ने के बाद एक वक्त श्रीलंका भारत को प्राथमिकता देने की बात करने लगा था, लेकिन अब फिर श्रीलंका फिर चीन से अपने रिश्ते मजबूत करने के नाम पर अपने आप को चीन के कर्ज जाल में फंस रहा है।