अफ़ग़ानिस्तान आज दुनिया में सबसे अलग खड़ा है। आज जब दुनिया के देश जिम्मेदारी के नाम पर निंदा कर रहे हैं तब अफ़ग़ानिस्तान अकेले खड़े होकर मदद का इंतजार कर रहा है। मानवाधिकार के नाम पर गाल बजाने वाले अमेरिका और यूरोप अफगान संकट पर चुप हैं। खैर, कोई राष्ट्र अपने सैनिकों की जान जोखिम में डालकर दूसरे देश की रक्षा करे, इस बात का भी मौलिक दबाव किसी राष्ट्र पर नही होता है। अफ़ग़ानिस्तान से लोग भाग रहे हैं, खुद राष्ट्रपति अशरफ गनी चार कारों में पैसे भरकर भाग गए। इन सभी बुरी खबरों के बीच अच्छी खबर यह है कि वहां अभी भी एक व्यक्ति मजबूती के साथ खड़ा है। उस व्यक्ति का नाम है अमरुल्लाह सालेह, वह अफ़ग़ानिस्तान के उपराष्ट्रपति हैं।
हाल ही में किए गए अपने ट्वीट में उन्होंने कहा, “मैं कभी भी, किसी भी परिस्थिति में तालिबानी आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने कमांडर और नायक अहमद शाह मसूद की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी है। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा।”
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कौन है अमरुल्लाह सालेह?
अमरुल्लाह सालेह अफ़ग़ानिस्तान के नेता हैं। वो वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान के उप राष्ट्रपति हैं। अमरुल्लाह सालेह का जन्म 1972 में अफ़ग़ानिस्तान के पंजशीर प्रान्त में हुआ था। 1990 के समय मे जब सोवियत संघ के समर्थन से अफगानी फौज राज कर रही थी, तब अमरुल्लाह ने पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग ली और बाद में मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के मार्गदर्शन में युद्ध भी किए। 1990 में ही सालेह नॉर्दन अलायंस के सदस्य बने। नॉर्दर्न अलायंस या फिर यूनाइटेड फ्रंट कई सारे क्षेत्रीय लड़ाकों का समूह था जो तालिबान के नियंत्रण के खिलाफ लड़ते थे। इन समूहों को अमरीका से मदद प्राप्त थी।
2004 में इस्लामिक राज्य अफ़ग़ानिस्तान बनने के बाद राष्ट्रपति हामिद करजई ने अमरुल्लाह सालेह को सुरक्षा का राष्ट्रीय निदेशक बनाया। उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के एजेंट दुनिया भर में काम करने लगे। इन्हीं एजेंटों ने सबसे पहले बताया कि लादेन एबटाबाद से 20 किलोमीटर के परिधि में है। परवेज मुशर्रफ ने बातों को सिरे से नकार दिया। 2010 में एनडीएस से त्यागपत्र देने के बाद करजई के खिलाफ हुए और अंततः अमरुल्लाह सालेह आगे चलकर उपराष्ट्रपति बने।
अमरुल्लाह सालेह पर इस दौरान कई बार हमले हुए। 2019 में सालेह के कार्यालय में 3 आतंकी चले गए और एक ने खुद को बम से उड़ा लिया। उस हादसे में 20 लोग मारे गए लेकिन अमरुल्लाह सालेह सुरक्षित रहे। 2020 में फिर सालेह पर काबुल में हमला हुआ जिसमें 10 लोग मारे गए।
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क्यों डर रहा है सालेह से तालिबान और पाकिस्तान!
दोनों के डरने की वजह सालेह की इच्छाशक्ति और तेज दिमाग है। तालिबान जानता है कि बिना यूनाइटेड फ्रंट के, उसको हराना नामुमकिन था। उसे इस बात का डर रहा है कि भविष्य में ऐसी फिर कोई घटना घटित हो सकती है।
अभी काबुल में तालिबान के कब्जे के बाद सालेह को लेकर काफी ख़बरें उड़ीं। किसी ने यह बताया कि वह ताजिकिस्तान में हैं। कई लोगों ने यह माना कि वह अशरफ गनी के साथ प्लेन से भाग गए। इसी के बाद सालेह ने अपनी स्थिति स्पष्ट की और ट्वीट किया। अमरुल्लाह सालेह, अहमद मसूद के साथ देखे गए, उन दोनों के साथ पूर्व रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह खान मोहमद्दी भी थे। अहमद मसूद, मशहूर नायक अहमद शाह मसूद का बेटा है। ये मीटिंग पंजशीर में हुई जो नॉर्थरन अलायन्स का गढ़ माना जाता है।
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पाकिस्तान में लादेन के होने की बात कहकर वो पाकिस्तान के दुश्मन हो गए थे, पूरी जिंदगी उनकी पाकिस्तान के प्रति नफरत ही रही है। वो बार-बार अफ़ग़ान संकट के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते आए हैं। वो ऐसा कहते आए हैं कि सच ज्यादा दिन नही छिप सकता है।
सम्भावना है कि अमरुल्लाह सालेह छोटे-छोटे कबीलों को लेकर तालिबान के खिलाफ लड़ाई की तैयारी कर रहे हों। अगर ये सच है तो भारत समेत विश्व के नेताओं को उनके पीछे से ही सही, समर्थन देना चाहिए क्योंकि अमरुल्लाह सालेह अगर तालिबान के खिलाफ हैं तो वह सही साइड खड़े हैं। अन्य देशों को भी सीखना चाहिए कि कैसे मुश्किल के वक़्त में तटस्थता सही नही होती है। खैर, अमरुल्लाह की तालिबान के प्रति युद्ध की घोषणा तालिबान के मुंह पर एक तमाचा होगा।