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चीन तालिबान के साथ ख़ूब गलबहियां कर रहा है, लेकिन वो नहीं जानता कि तालिबान, हमास नहीं है

तालिबान एक ऐसा ‘बंदर’ है, जिसे बस ‘घोड़ा’ दबाना आता है।

Yashwant Singh
द्वारा Yashwant Singh
17 अगस्त 2021
in मत, साउथ एशिया
0
तालिबान हमास
263
व्यूज़
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एक तरफ गाजा पट्टी स्थित इस्लामिक आतंकवादी समूह हमास ने तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्जा करने और अमेरिका के अफगानिस्तान को छोड़ने की बधाई दी है। रिपोर्ट के अनुसार  हमास ने “अफगान भूमि पर अमेरिकी कब्जे की हार” का स्वागत किया और इस जीत पर तालिबान के “साहसी नेतृत्व की प्रशंसा की जो पिछले 20 वर्षों से लंबे संघर्ष में शामिल था।”

वहीं, दूसरी तरफ चीन ने तालिबान के साथ औपचारिक रूप से संबंध स्थापित करने की घोषणा कर दी है। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा, चीन अफगानिस्तान के साथ “मैत्रीपूर्ण और सहयोगी” संबंधों को गहरा करने के लिए तैयार है।

हमास और तालिबान में अंतर है।

ये दोनों ख़बरें एक दूसरे से कैसे जुड़ी हैं? इसको समझने के लिए हमें पहले तालिबान और हमास को समझना होगा और चीन तालिबान के संबंध को समझना होगा।

हमास और तालिबान दोनों कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठन हैं। हमास, एक फ़िलिस्तीनी समूह है जो इज़राइल के अस्तित्व का विरोध करता है और वह 2007 से गाजा पट्टी पर शासन करता है। हमास को इजरायल, अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा एक आतंकवादी समूह माना जाता है।

तालिबान भी वैसा ही आतंकी संगठन है जिसने अमेरिका समर्थित अफगान सरकार के गिरने और राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भाग जाने के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया है। यह आतंकी संगठन कई अन्य आतंकी संगठनों के लिए मातृ संगठन के रूप में भी काम करता है जिसमें मुजाहिद्दीन शामिल है।

इन दोनों संगठनों में वैचारिक समानताओं के बाद भी एक बड़ा अंतर है। हमास राजनीतिक रूप से सक्रिय भूमिका निभाने के बाद आतंकी संगठन बना है और तालिबान आतंकी संगठन बनकर अब राजनीति करने जा रहा है। हमास को यह आता है कि अपनी बात को कैसे रखना चाहिए, वह प्रतिष्ठा में प्राण गवाने वाला संगठन है। उदाहरण के लिए, हाल के ही इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष को देख लीजिए। हमास की ओर से सबसे पहले रॉकेट दागा गया। हालांकि हमास और आयरन डोम का वीडियो सबने देखा। लेकिन बाद में नैरेटिव ये सेट हुआ कि इजरायल कितनी बर्बरता से हमला कर रहा है। बाद में जब युद्ध के धुएं छट गए तब पूरी दुनिया में #SAVEPALESTINE ट्रेंड करने लगा।

और पढ़ें: काबुल में अब तालिबान शासन है, सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए इसके क्या मायने हैं ?

हमास एक समझदार आतंकी संगठन है। वह जानता है कि वह इजरायल से युद्ध नही जीत सकता है। इसलिए वह प्रोपेगैंडा चलाता है। इजरायल वाले मामले से ही समझिए। हमला करके हमास ने यह संदेश दे दिया कि उनके पास भी रॉकेट है। फिर वह विक्टिम कार्ड खेलकर यह बताने में सफल रहा कि इजरायल कितना क्रूर देश है। दुनिया भर के उदारवादी लोग तुरंत संवेदना प्रकट करने लगे, फिर उसी की आड़ में फिलिस्तीनी नागरिकों के नाम पर करोड़ो अरबों का चंदा लिया गया।

शरियत है तालिबान की प्रेरणा

तालिबान उस तरीके से काम नही करता है। आज स्थिति यह है कि कट्टरपंथी अमेरिका को दोषी ठहरा रहे है और उदारवादी पाकिस्तान को, कोई भी तालिबान को सही नही ठहरा रहा है। उसका एक बहुत बड़ा कारण शरियत है। दरअसल, तालिबान ने हमेशा अपनी वैचारिक प्रेरणा का आधार शरीयत को माना है। वह काफिरों को लेकर एकदम प्रतिबद्ध रहा है। औरतों को मार देना, क्रेन से लटका देना, सिर काट देना, ये वहां पर आम बात है। तालिबान के इस दहशतगर्दी से कोई भी विचारधारा का मनुष्य (अगर वो कट्टरपंथी न हो तो) उसका समर्थन नही करता है।

चीन का इससे क्या लेना देना है?

काबुल में तालिबानी कब्जे से अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा दो दशक के अभियान का अभूतपूर्व अंत हो गया है। चीन अब तक तालिबान को अफगानिस्तान के नए नेताओं को आधिकारिक तौर पर मान्यता नही देता था लेकिन विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले महीने तियानजिन में हुई बैठक के दौरान तालिबान को “निर्णायक सैन्य और राजनीतिक ताकत” कहा था। अगर आप यह सोच रहे हैं कि यह रिश्ता क्या कहलाता है तो पहले चीन के लाभ को समझना होगा।

और पढ़ें: अमरिंदर ने CAA का विरोध किया, अब चाहते हैं कि पीएम मोदी अफगानिस्तान से सिखों को निकालें

चीन अफगानिस्तान के साथ 76 किलोमीटर (47 मील) की एक सीमा साझा करता है। चीन को लंबे समय से यह भय रहा है कि शिनजियांग के संवेदनशील क्षेत्र में, अफगानिस्तान उइगर अलगाववादियों के लिए एक मंच बन सकता है। शिनजियांग अफगानिस्तान, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के साथ-साथ मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है लेकिन अमेरिका की मौजूदगी से चीन आश्वस्त रहता था कि अफगानिस्तान की जमीन पर कैम्प नही बन सकता है। अमेरिका के जाने बाद से चीन की चिंता का सबसे बड़ा कारण सुरक्षा है। हाल ही में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार  अल कायदा से सम्बंधित पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM)  के सैकड़ों आतंकवादी अफ़ग़ानिस्तान में जुट रहे हैं।

इसलिए चीन तालिबान के सामने नतमस्तक है

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर भी तालिबान के अधिग्रहण से जोखिम में पड़ गया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए भी काबुल से संबंध बनाना चीन की मजबूरी है। इन सभी विषयों को संज्ञान में लेते हुए चीन तालिबान के साथ संबंध स्थापित कर रहा है लेकिन वह शायद यह नही जानता है कि तालिबान हमास नही है। तालिबान एक भड़के हुए जानवरो का समूह है जिनके हाथों में एके 47 है।

भले ही सुरक्षा मामले से जुड़े विषय पर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर द्वारा यह वादा किया गया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल दूसरे देशों के ख़िलाफ़ नहीं होना दिया जाएगा लेकिन लेकिन चीन को यह नही भूलना चाहिए कि अमेरिका के सहयोग से पनपे तालिबान ने जब अमरीका को नही छोड़ा तो चीन क्या चीज है। संभव है कि कुछ वर्षों के बाद चीन के सहयोग से तालिबान भारत के खिलाफ योजनाएं बनाये लेकिन चीन की यह भूल होगी की वह इसको शाश्वत सत्य मान बैठे।

और पढ़ें: मिलिये आतंकवादी से अफ़गानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष बने मुल्ला बरादर से

राजनीतिक और राजनयिक संबंध उनसे बनाये जाते हैं जिसे राजनीति का ज्ञान हो। जिसके पास विभिन्न राज्यों की संरचनाओं को समझने के लिए समझ हो। जिसे यह समझ हो कि विपरीत दिशा में काम करने वाले राष्ट्रों के साथ संबंध कैसे बनाए जाते हैं। तालिबान की नींव ही एक बड़े ऐतिहासिक राज्य के लिए रखी गई है। उसके हिसाब से खोरासन प्रांत में आज का भारत और चीन दोनों आता है। वह धार्मिक महत्व के लोगों के खिलाफ कोई कदम नही उठाएगा।

हो सकता है कि मन ही मन चीन के प्रति नफरत भी हो क्योंकि चीन वोकेशनल सेंटर में 10 लाख से ज्यादा मुस्लिमों को उनके धर्म से दूर कर रहा है। ज्यादा समस्या तब भी आ जाती है कि जब आपको यह मालूम चल जाये कि चीन के बहुल धर्म ‘बौद्ध’ को तालिबान कैसे देखता है। वह 2500 साल पुरानी बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ चुका है। खुद चीनी लोग इस पर चिंता जता चुके हैं।

भले ही तियानजिन में पिछले महीने की बैठक के बाद वांग ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अफगानिस्तान में “उदारवादी इस्लामी नीति” हो सकती है लेकिन वह यह भूल गए की तालिबान के लिए उदारवाद वैसा ही है जैसा चीन के लिए लोकतंत्र है।

 

Tags: अफ़ग़ानिस्तानइजरायलतालिबानपाकिस्तानहमास
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