“चीन के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर है भारत” यह बात कही है ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री और व्यापार के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त हुए टोनी एब्बॉट ने। पिछले दिनों भारत ऑस्ट्रेलिया ट्रेड डील को अंतिम रूप से तैयार करने के लिए भारत आए टोनी एब्बॉट ने ऑस्ट्रेलिया के एक समाचार पत्र में लिखे अपने लेख में प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की, क्वाड की भूमिका पर टिप्पणी की और साथ ही चीन से लोकतांत्रिक देशों को उत्पन्न हुए खतरों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत जल्द से जल्द वैश्विक व्यवस्था में अपना उचित स्थान ले ले।
टोनी एब्बॉट ने अपने लेख में जो महत्वपूर्ण बात उठाई वह यह थी कि चीन ने व्यापार को भू-राजनीतिक समीकरण साधने के लिए एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है। देखा जाए तो आर्थिक शक्ति को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की शुरुआत अमेरिका ने की थी। बाद में चीन ने जब अपनी अर्थव्यवस्था बाहरी देशों के लिए खोली तो पश्चिमी देशों ने सस्ते श्रम और बड़े बाजार के कारण चीन में बड़ी मात्रा में निवेश किया।
टोनी एब्बॉट ने अपने लेख में कहा है कि पश्चिमी देशों ने एक कम्युनिस्ट तानाशाही को वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया। पश्चिम को उम्मीद थी कि चीन में जैसे-जैसे आर्थिक संपन्नता आएगी, उदारवाद, लोकतंत्र, स्वतंत्र आदि विचार भी अपनी जगह बना लेंगे।
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हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ, चीन आर्थिक रूप से सशक्त हो गया लेकिन उसके राजनीतिक तंत्र में रत्तीभर का बदलाव नहीं आया। अब चीन पश्चिमी सभ्यता के लिए USSR से कई गुना शक्तिशाली शत्रु बनकर सामने आया है। अगर कल को चीन अपना रवैया बदल भी ले तो भी इससे एक समस्या का समाधान नहीं ही हो सकेगा। वह यह कि आज पूरी दुनिया निर्माण के लिए चीन पर निर्भर है। चीन विश्व का मैन्युफैक्चरिंग हब है और चीन की अर्थव्यवस्था में थोड़ा बहुत उतार चढ़ाव पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला देता है। कोरोना ने इस बात को सिद्ध कर दिया है। ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था की चीन पर निर्भरता कम करनी ही पड़ेगी। चीन का विकल्प तैयार करना ही पड़ेगा। इन दोनों बातों का एक ही उत्तर है, भारत।
भारत जोकि एक लोकतंत्र है- जनसंख्या, सस्ते श्रम, संसाधन सभी मामलों में चीन के बराबर है। भारत ने वैश्विक व्यवस्था में ऊंचे उठने का मौका दो बार गंवाया है, पहली बार जब नेहरू के समय सुरक्षा परिषद की सीट मिल रही थी, दूसरा जब चीन अपनी अर्थव्यवस्था खोल रहा था। भारत इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हर महत्वपूर्ण क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने में लगा था। ऐसे में अब भारत को तीसरा मौका मिल रहा है। कोरोना ने पश्चिम को यह समझा दिया है कि समय बदलाव का है और उस बदलाव की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी भारत है।
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टोनी एब्बॉट ने अपने लेख में लिखा है कि ऑस्ट्रेलिया और भारत की ट्रेड डील, चीन को लोकतांत्रिक शक्तियों की ओर से दिया गया जवाब होगी। ऑस्ट्रेलिया के सख्त रवैये के पीछे पूरी US लॉबी है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, US और UK अपनी विदेश नीति में लगभग एक समान रहते हैं। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया के खुलकर सामने आने के बाद अब बाकी चारों देश जल्द ही उसका अनुसरण करेंगे यह तय माना जा सकता है। कम से कम US और UK के संदर्भ में तो यह सत्य ही माना जा सकता है।
टोनी एब्बॉट अपने लेख में लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में क्वाड फिर से जीवित हो गया है। ऑस्ट्रेलिया और भारत समान दृष्टिकोण और मूल्यों वाले दो देश हैं, लेकिन मोदी के आने से पहले दोनों के रिश्ते बहुत मजबूत नहीं थे। किंतु अब इसमें बदलाव आ रहा है। टोनी और ऑस्ट्रेलियाई नेतृत्व जानता है कि मुसीबत के समय भारत उनके साथ खड़ा था। जब चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आयात होने वाले बारले पर टैरिफ बढ़ा दिया तो भारत ने अपने बाजार ऑस्ट्रेलियाई बारले के लिए खोल दिए थे।
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इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदानों पर चीन का कब्जा न हो इसलिए ऑस्ट्रेलिया के अनौपचारिक आग्रह पर भारत ने तत्काल कार्रवाई की और अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया में निवेश किया। इस डील को कराने के लिए ऑस्ट्रेलिया और भारत के विदेश मंत्रालय ने सक्रिय भूमिका निभाई थी, जो बताता है कि ऑस्ट्रेलिया और भारत के आर्थिक रिश्ते केवल आर्थिक लाभ-हानि तक सीमित नहीं हैं।
भारत ऑस्ट्रेलिया मालाबार नौसेना अभ्यास में साथ आ गए हैं। दोनों देशों ने लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौता किया है। ऐसे में अब ऑस्ट्रेलिया आर्थिक समीकरण साधने में भी भारत का भरपूर सहयोग कर रहा है। उम्मीद है कि बाकी लोकतंत्र भी जल्द इसी मार्ग का अनुसरण करेंगे।