द कूरियर: क्यूबा संकट पर एक रोमांचक फिल्म, जिसमें अच्छा-ख़ासा अमेरिकी प्रोपेगेंडा है

बेनेडिक्ट कंबरबैच का एक और धमाका

द कूरियर फिल्म रिव्यू

फिल्में इतिहास का एक दर्पण होती हैं। कला इस क्षेत्र का उपयोग कभी सच्चाई दिखाने के लिए किया जाता है तो कभी अपने एजेंडे को प्रस्तुत करने के लिए। कुछ दिनों पहले हॉलीवुड की एक फिल्म आई थी द कूरियर। द कूरियर फिल्म भी इतिहास के उस पन्ने को प्रस्तुत करती है जिससे आज के लोग अनभिज्ञ है। 1960 के दशक में अमेरिका और USSR के बीच चल रहे शीत युद्ध के दौरान कई ऐसे अहम मोड़ आए थे जहां से ऐसा प्रतीत हुआ कि अब परमाणु युद्ध छिड़ जाएगा। इन्हीं घटनाओं में से एक थी क्यूबा मिसाइल संकट। इसी द कूरियर का रिव्यू करने जा रहे है और जाने कैसे विश्व इतिहास का एक ऐसा क्षण था जहां से तीसरा विश्व युद्ध प्रारम्भ हो सकता था।

द कूरियर फिल्म रिव्यू : फिल्म का प्लॉट

द कूरियर नामक फिल्म भी इस क्षण की एक सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म है। द कूरियर फिल्म एक ब्रिटिश व्यवसायी ग्रीविल वाईन (बेनेडिक्ट कंबरबैच) की कहानी बताता है, जिसे CIA और ब्रिटिश इंटेलिजेंस द्वारा USSR  के एक उच्च-रैंकिंग अधिकारी, ओलेग पेनकोवस्की (मेरब निनिद्ज़े) के लिए एक कूरियर के रूप में कार्य करने के लिए राज़ी किया जाता है। वाइन को इसलिए चुना जाता है क्योंकि वह व्यवसायिक काम के चलते अक्सर पूर्वी यूरोपीय देशों की यात्रा करता है। वहीं पेनकोवस्की अपने देश के नेताओं को परमाणु युद्ध के लिए लालायित देखता है तो वह पश्चिम के लिए जासूसी करना शुरू कर देता है।

जब वाइन उसके संपर्क में आता है तो उसे भी यह ऐहसास होता है वाइन जासूसी के लिए सही व्यक्ति है क्योंकि वह एक नागरिक है जिसका खुफिया सेवाओं से कोई संबंध नहीं है। एक व्यापारी होने के नाते, USSR को यह विश्वास दिलाना आसान हो जाता है कि वह सिर्फ एक और लालची पूंजीपति है। MI6 के डिकी फ्रैंक्स (एंगस राइट) बताते हैं कि किसी को भी वाइन पर संदेह नहीं होगा क्योंकि वह ख़ुफ़िया जवानों की तरह नहीं है और उसे पीने की समस्या है।

वाइन का काम यह है क्यूबन मिसाइल संकट के दौरान USSR के प्लान को पेनकोवस्की से ले कर CIA और MI6 को मौजूद कराये। यही पर इन दोनों का टेस्ट होता जब वाईन पेनकोवस्की को सोवियत से defect करने में मदद  की कोशिश करता है परंतु वह स्वयं ही कैद हो जाता है। फिल्म का भावनात्मक मूल ओलेग और ग्रीविल के बीच संबंध पर निर्भर करता है।

डोमिनिक कुक द्वारा निर्देशित,  द कूरियर 1960 के दशक में कपड़े और कारों से लेकर रेडियो पर JFK के भाषणों तक को फिर से बनाता है और पूरी फिल्म इस तरह लगती है जैसे उस वक़्त में पीछे जाकर बनाया गया हो। कास्ट असाधारण है और कंबरबैच के वाईन के रूप में कलाप्रवीण अभिनेता ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। अपनी छोटी मूंछों, साफ-सुथरे बालों, ट्रेंच कोट और झुकी हुई चाल के साथ, वह मध्यम वर्ग के व्यवसायी को बेहतरीन तरीके से चरितार्थ करते हैं।

द कूरियर रिव्यू और रेटिंग्स

समीक्षा/रिव्यू करने वाली रॉटन टोमाटोज़ पर, फिल्म को 6.9/10 की औसत रेटिंग के साथ 161 समीक्षाओं के आधार पर 87% की स्वीकृति रेटिंग प्राप्त है। वेबसाइट के आलोचकों की आम सहमति में लिखा है: “द कूरियर एक रोमांचक तथ्य-आधारित कहानी है और बेनेडिक्ट कंबरबैच के केंद्रीय भूमिका से फिल्म एक प्रभावी Old School के जासूसी साहसिक कहानी को दिखाता है।” मेटाक्रिटिक ने 33 आलोचकों के आधार पर 100 में से, द कूरियर फिल्म को “आम तौर पर अनुकूल” रिव्यू दिया। वाशिंगटन पोस्ट के एन हॉर्नडे ने फिल्म को 4 में से 3 स्टार देते हुए कहा: “द कूरियर पुराने जमाने की स्पाई थ्रिलर के लिए एक स्मार्ट, स्टाइलिश स्टैंड बनाता है जिसे स्ट्रीमिंग सेवाओं के ज़माने में वेब सीरिज में बदल दिया जा रहा है।” वैराइटी के लिए लेखन, पीटर डिब्रूज ने कहा: “[द कूरियर] की ताकत यह है कि यह सच्ची घटनाओं पर आधारित है, और अंतर्निहित इतिहास साझा करने योग्य है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी को आज भले ही अमेरिकी हीरो माना जाता है लेकिन एक वक़्त पर उनके फैसलों और निजी सम्बन्धों के कारण आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था। देखा जाए तो द कुरियर एक बेहतरीन प्रोपगंडा फिल्म के रूप में भी देखा जा सकता है, जिससे JFK के चरित्र सफाई का कार्य हो सके।

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क्या है क्यूबन मिसाइल संकट?

क्यूबन मिसाइल संकट दुनिया के सबसे खतरनाक क्षणों में से एक है| यह स्थिति शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न हुई जब USSR यानि सोवियत संघ ने अमेरिकी तट से 90 मील दूर क्यूबा में बैलिस्टिक मिसाइल तैनात कर दिया था। हालांकि “सबसे खतरनाक क्षण” की लिस्ट में कई घटनाएँ हैं। परंतु 27 अक्टूबर 1962 की घटना सबसे ऊपर मानी जाएगी है, जब क्यूबा के चारों ओर blockade लागू करने वाले अमेरिकी, विध्वंसक सोवियत पनडुब्बियों पर गहराई से हमले करने की योजना बना रहे थे। सोवियत अकाउंट के अनुसार, पनडुब्बी कमांडरों को “परमाणु टॉरपीडो फायरिंग के लिए काफी परेशान किया गया था, जिनकी 15 किलोटन की विस्फोटक क्षमता अगस्त 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम जितनी ही थी ।

अक्तूबर 1962 में अमेरिका क्यूबा में तैयार हो रहे सोवियत बेस से चिंतित था। स्थिति इस स्तर पर खराब हो चुकी थी कि युद्ध की तैयारी के लिए एक परमाणु टॉरपीडो को हमला करने का एक कथित निर्णय दे दिया गया था परंतु अंतिम समय में कप्तान वासिली आर्किपोव ने इस आदेश को मनाने से इंकार कर दिया था और दुनिया को परमाणु आपदा से बचाया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर टारपीडो को दागा गया होता तो अमेरिका की प्रतिक्रिया क्या होती, या सोवियत संघ ने उसके बाद क्या एक्शन लिया होता क्योंकि उनका देश पहले ही समस्याओं में जल रहा था।

16 अक्टूबर को राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने मिसाइल खतरे का जवाब कैसे दिया जाए, इस पर चर्चा करने के लिए XCOMM के नाम से जाने जाने वाले सलाहकारों की एक टीम के साथ मुलाकात की। रक्षा सचिव रॉबर्ट मैकनामारा ने JFK के सामने तीन विकल्प प्रस्तुत किया: पहला क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो और सोवियत प्रीमियर निकिता ख्रुश्चेव के साथ कूटनीति द्विपक्षीय बातचीत की जाए, दूसरा क्यूबा की एक नौसैनिक घेराव तथा मिसाइल साइटों को नष्ट करने के लिए एक हवाई हमला, जो हजारों सोवियत कर्मियों को मार सकता है और एक सोवियत को ट्रिगर कर सकता है। कैनेडी ने हमले को खारिज कर दिया और मिसाइल वापसी पर बातचीत करने और समय जुटाने के लिए एक घेराबंदी यानि Blocked का समर्थन किया। हालांकि आज भी JFK और उनके सलाहकार इसे सीज कहने में सावधानी बरतते हैं क्योंकि नाकाबंदी को युद्ध का कार्य ही माना जाता है।

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