उत्तर-प्रदेश की कसी हुई जातीय राजनीति में ‘अनुप्रिया पटेल’ होने का अपना महत्व है

पीएम मोदी ने अनुप्रिया को मंत्री ऐसे ही थोड़ी बना दिया।

अनुप्रिया पटेल

जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तारीख निकट आती जा रही है, वैसे-वैसे लोगों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है। इस समय सभी पार्टियां अपने-अपने राजनीतिक समीकरण साधने में जुटी हुई हैं, लेकिन जो दल इस समय शायद सबसे अधिक निश्चिंत होगा, वो निसंदेह अपना दल है। हो भी क्यों न, यूपी में अपना दल का अपना एक अलग महत्व है। अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल का महत्व उत्तर प्रदेश के चुनाव से पहले इतना क्यों बढ़ जाता है? आखिर ऐसी क्या बात है कि अनुप्रिया पटेल और उनका अपना दल सदैव यूपी में तुरुप का इक्का साबित होता है?

दरअसल, उत्तर प्रदेश में पटेल और निषाद समुदाय का अच्छा खासा प्रभाव है। इसलिए अपना दल का भी अपना एक अलग प्रभाव है। इन्हें उत्तर प्रदेश में किंगमेकर्स की पदवी प्राप्त है और इनके कारण भाजपा को प्रमुख तौर पर 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई थी।

2019 के संसदीय चुनावों में अपना दल ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों में जीत हासिल की। राज्य विधानसभा में पार्टी के पहले से ही नौ विधायक हैं। आशीष पटेल 2018 में भाजपा के समर्थन से विधान परिषद के लिए चुने गए थे।

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इतना ही नहीं, अपना दल 2014 से ही मोदी सरकार के साथ खड़ा है, जिसका समय-समय पर उन्हें पुरस्कार भी मिला है। हाल ही में जब पीएम मोदी ने अपने मंत्रिमंडल को विस्तार दिया, तो उसमें महिलाओं और युवाओं को प्राथमिकता तो दी ही, इसके साथ ही साथ उन्होंने अनुप्रिया पटेल के अपना दल को भी बराबर का महत्व दिया।

अनुप्रिया पटेल पहले भी मोदी सरकार की कैबिनेट का भाग थीं, इस बार भी वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में उन्हें राज्य मंत्री का पदभार दिया गया है।

मोदी सरकार ने अनुप्रिया पटेल को यह पद उनकी कर्तव्यनिष्ठा के स्वरूप दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी के बागी गुट को भी नियंत्रण में रखा, जो उन्ही की माँ कृष्णा पटेल थीं। यह विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करने की तैयारी भी कर रही थी, परंतु बात कुछ बनी नहीं।

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2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव केवल चुनाव नहीं, आर या पार की लड़ाई है। ऐसे में बीजेपी चुनाव जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहती, जिससे उत्तर-प्रदेश के उनके हाथों से फिसलने का ख़तरा हो।

दरअसल, अनुप्रिया पटेल की अपने समुदाय के वोटों पर अच्छी खासी पकड़ है। सिर्फ कुर्मी वोट बैंक की बात करें तो पूरे राज्य में इनकी तादाद 4-5 फीसदी है। करीब 17 जिले ऐसे हैं, जिनमें इनकी तादाद 15 फीसदी से अधिक है। इन 17 जिलों में ये आसानी से हार-जीत तय करते हैं। पिछले 5-6 सालों में इनकी सबसे बड़ी नेता अनुप्रिया पटेल बन कर उभरी हैं.

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