खेल क्षेत्र में भारत को मिल रही सफलता के पीछे है ‘भारतीय सशस्त्र बल’

भारतीय सेना ओलंपिक

PC- Defence Lover

टोक्यो ओलंपिक-2020 भारत के ओलंपिक इतिहास में एक विशेष और ऐतिहासिक क्षण साबित हुआ। हमने न केवल दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में अब तक के सबसे अधिक पदक जीते, बल्कि नीरज चोपड़ा ने 121 साल के इतिहास में पहली बार ट्रैक एंड फील्ड में भारत को सोना दिलाया। हालांकि, यह कोई संयोग नहीं है कि व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले दो भारतीयों में से एक सूबेदार नीरज चोपड़ा भारतीय सेना से आते हैं।

सूबेदार नीरज चोपड़ा वीएसएम राजपूताना राइफल्स में जूनियर कमीशंड ऑफिसर (जेसीओ) हैं। उन्हें ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाने में भारतीय सेना ने अहम भूमिका निभाई है। उन्हें 2016 में उनके प्रतिभा को देखते हुए नीरज को नायब सूबेदार के पद से सम्मानित किया गया था। नीरज की इस जीत पर भारतीय सेना हर्षित है। इस कामयाबी में सेना का योगदान बहुत बड़ा है। थलसेना के अध्यक्ष (एमएम नरवणे) ने पूरी सेना की तरफ से नीरज को ट्वीट करके जीत की बधाई दी। सुबेदार नीरज चोपड़ा के सफलता के श्रेय के बारे में पूछे जाने पर, भारतीय सेना के मिशन ओलंपिक विंग के एक अधिकारी ने कहा कि यह संयुक्त प्रयास था जिसमें फेडरेशन, भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय सेना ने चुपचाप काम किया।

हालांकि, सूबेदार चोपड़ा कई महान एथलीटों में से एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिन्हें भारतीय रक्षा बलों ने वर्षों में बनाया है। राज्यवर्धन सिंह राठौर और विजय कुमार भी भारतीय सेना में रह चुके हैं। कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ 2004 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक, एथेंस में डबल ट्रैप स्पर्धा में रजत पदक विजेता हैं। मिल्खा सिंह को भी भारतीय सेना ने ही तराशा था। एक क्रॉस-कंट्री दौड़ में 400 से अधिक सैनिकों के साथ दौड़ने के बाद छठे स्थान पर आने वाले मिल्खा सिंह को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया और इसी ने उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी। चैंपियन पैदा करने की रक्षा बलों की क्षमता को पहले ही स्वीकार किया जा चुका है और इनमें सबसे बड़ा नाम मेजर ध्यानचंद का है, जो भारतीय सेना का खेल को अद्वितीय भेंट है।

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2013 में, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत के खेल क्षेत्र में रक्षा बलों को एक बड़ी भूमिका दी जानी चाहिए। उस समय, गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था, “ओलंपिक के दौरान, लोग अक्सर कहते हैं कि इसके विशाल आकार के बावजूद, हमें पदक नहीं मिलते हैं। क्या हमने खेलों को अपनी शिक्षा प्रणाली से जोड़ा है? क्या हमने अपने युवाओं को पर्याप्त मौका दिया…? मेरा विश्वास करें यदि आप हमारे रक्षा बलों को यह जिम्मेदारी देते हैं और इच्छुक खेलों में नए रंगरूटों की क्षमता को आगे लाते हैं और फिर उन्हें ठीक से प्रशिक्षित करते हैं, तो हम बिना अधिक प्रयास के भी 5-7 पदक अर्जित करेंगे। इसके लिए दृष्टि की आवश्यकता है!”

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वास्तव में, जब पदक विजेता बनाने की बात आती है तो रक्षा बलों के पास बहुत अधिक क्षमता होती है। उदाहरण के लिए 2018 के एशियाई खेलों को देख लीजिये। तीन साल पहले बड़े आयोजन में भारतीय रक्षा बलों का दबदबा था। भारत के रक्षा बलों ने कम से कम 14 पदक जीते, जिनमें चार स्वर्ण, पांच रजत और पांच कांस्य पदक शामिल हैं।

वास्तव में, भारतीय सेना 2018 के एशियाई खेलों में 18 आयोजनों में 66 खिलाड़ियों को भेजने में कामयाब रही थी। भारतीय सेना दो प्रवेश कार्यक्रमों के साथ खेल को बढ़ावा देने और बाहरी प्रतिभाओं की खोजबीन करने के लिए एक व्यवस्थित व्यवस्था बनाए रखती है- ‘बॉयज स्पोर्ट्स कंपनी’ (बीएससी) जो 10 से 16 वर्ष की आयु के लड़कों को खेल प्रशिक्षण प्रदान करती है और भर्ती के लिए सीधी प्रवेश योजना के रूप में हवलदार और नायब सूबेदार पर नियुक्ति देती है। 16 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के खिलाड़ियों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान योग्य उपलब्धि के साथ ही, भारतीय सेना अपने स्वयं के कर्मियों की पहचान करती है जो खेलों में क्षमता दिखाते हैं और उन्हें आगे बढ़ाया जाता है।

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इसी संस्कृति के कारण भारतीय सेना ने मिल्खा सिंह, पान सिंह तोमर, 2012 लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले सूबेदार मेजर विजय कुमार, 2004 ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ एवीएसएम जैसे एथलीट तैयार किए हैं और 1960 के दशक में कर्नल बलबीर सिंह कुलार वीएसएम जैसा प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी।

रक्षा बलों से भविष्य के ओलंपिक में भारत को फिर से गौरवान्वित करने की उम्मीद है, और भारत की पदक तालिका को बढ़ाने की भी उम्मीद है। वर्तमान में, भारतीय सेना खिलाड़ियों के समग्र मानकों में सुधार लाने के उद्देश्य से “मिशन ओलंपिक विंग” चला रही है। कार्यक्रम में पांच नोड हैं, अर्थात् आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट (पुणे), आर्मी स्पोर्ट्स्मैनशिप यूनिट (महू), आर्मी रोइंग नोड (पुणे), आर्मी याचिंग नोड (मुंबई) और आर्मी इक्वेस्ट्रियन नोड (मेरठ)।

दरअसल, वर्तमान में भारतीय सेना के ‘मिशन ओलंपिक विंग’ के तहत 450 वरिष्ठ एथलीटों का एक विशाल पूल प्रशिक्षण ले रहा है। इसलिए, भारतीय सेना संभावित रूप से दर्जनों ओलंपिक पदक उम्मीदवारों का उत्पादन कर रही है।

आगे बढ़ते हुए, खेलों को भारतीय रक्षा बलों के साथ और अधिक निकटता से जोड़ा जाना चाहिए। वास्तव में,त्रि-सेवा (Tri-Services Exercise) खेल कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है, ताकि रक्षा बलों के सभी विंगों के साथ-साथ अन्य सुरक्षा बलों में संभावित प्रतिभा की पहचान की जा सके। भारत एक प्रमुख ओलंपिक शक्ति बन सकता है, बशर्ते वह देश के एथलीटों को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी रक्षा बलों सौंपे।

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