विश्व अभी भी तालिबान को हरा सकता है, बस हर देश को उसे अवैध घोषित करने की आवश्यकता है

तालिबान को रोकने उपाय

अफगानिस्तान में 20 वर्षों से निरंतर चल रहा युद्ध अब समाप्त हो चुका है। यह लगभग तय हो गया है कि अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार इस्लामिक जिहादियों के हाथों पराजित हो चुकी है। दुनिया ने तालिबान के हाथों अफगानिस्तान की बर्बादी को स्वीकार कर लिया है। अब दुनिया के सामने यह प्रश्न है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी वैश्विक और क्षेत्रीय भू-राजनीति को कैसे प्रभावित करेगी। साथ ही यह गंभीर प्रश्न है कि तालिबान को रोकने उपाय क्या है?

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता इसी बात पर हुआ था कि तालिबान भविष्य में अफगानिस्तान की जमीन को अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा। इसकी संभावना न के बराबर है कि तालिबान अपने वादे को निभाएगा। इसके कई कारण है। तालिबान कोई व्यवस्थित संगठन नहीं है, यह जिहाद की विचारधारा से ग्रसित, विकृत मानसिकता के लोगों का समूह है। ऐसे में तालिबान जिहाद को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा न दे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

इतिहास साक्षी है जब भी किसी मुस्लिम देश में शक्ति संतुलन बिगड़ता है और जिहादी मानसिकता के लोगों का सत्ता पर कब्जा हो जाता है तो वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। 1989 में अफगानिस्तान में रूस की पराजय के बाद भारत में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा मिला था तथा अलकायदा का विस्तार हुआ था। इसी प्रकार इराक से अमेरिका की वापसी ने आईसीस (ISIS) को पनपने का मौका दिया था।

ऐसे में तालिबान को रोकने का उपाय है की यदि तालिबान के विस्तार को रोकना है तो दुनिया को उसे वैधता देने से बचना होगा। चीन और पाकिस्तान पहले ही यह तय कर चुके हैं कि वह तालिबान को अफगानिस्तान की वैध सरकार के रूप में स्वीकार करेंगे।

रूस और मुस्लिम देशों ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि उनका रुख क्या होने वाला है। ब्रिटेन ने तालिबान को स्वीकार्यता देने के विचार से अपनी असहमति व्यक्त कर दी है।

वहीं, अमेरिका का तालिबान के साथ यह समझौता हो चुका है यदि तालिबान अमेरिकी राजनयिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकलने  देगा तो, अपने देश में मानवाधिकार की रक्षा करेगा और आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देगा तो अमेरिका भी उसे वैध स्वीकृति देने पर विचार करेगा। ये तो वही बात हो गई कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और आप उसे हाथ में लेकर कहें कि वो डंक नहीं मारेगा।

हालांकि, भारत का हित इसी में है कि तालिबान को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता ना मिले। भारतीय विदेश मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि अफगानिस्तान का भविष्य उसके अतीत जैसा नहीं हो सकता है। ऐसे में तालिबान दूसरे देशों के साथ व्यापार नहीं कर सकेगा। साथ ही भारत को प्रयास करना चाहिए कि जब तक तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज है अफगानिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए रखा जाए जिससे अफगानिस्तान आर्थिक रूप से कमजोर हो और तालिबान को मिल रहा जनसमर्थन समाप्त हो जाए। साथ ही तालिबान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को वैश्विक स्तर पर उठाकर तथा तालिबान-पाकिस्तान गठबंधन को चर्चा के केंद्र में लाकर भारत पाकिस्तान पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगवा सकता है।

यदि भारत को अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव बनाए रखना है तो उसे किसी भी सूरत में तालिबान को कमजोर करना होगा। तालिबान की मजबूती न सिर्फ भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगी। आतंकवाद को बढ़ावा देने के साथ ही तालिबान की अफगानिस्तान में मौजूदगी इस पूरे क्षेत्र में ड्रग्स के व्यापार को बढ़ावा देगी। आज भी दुनिया का 85% कोकीन अफगानिस्तान में पैदा होता है। तालिबान को टेरर फंडिंग ड्रग्स के व्यापार पर निर्भर करती है। ऐसे में जब तालिबान अफ़गानिस्तान की एक मात्र शक्ति बनकर सामने आ गया है तो ड्रग के व्यापार का बढ़ना तय है।

तालिबानी प्रवक्ता ने कहा है कि अफगानिस्तान की तरह एक दिन पूरी दुनिया में इस्लामिक सप्ताह की स्थापना तालिबान का उद्देश्य है। तालिबान की योजना धीरे-धीरे स्वयं को मजबूत बनाने की है। दुनिया को यह समझना होगा कि तालिबान जिस इस्लामिक विचारधारा से प्रभावित है उसकी बर्बरता केवल अफगानिस्तान की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगी। ऐसे में उसे वैश्विक स्तर पर मान्यता न देकर अफगानिस्तान तक सीमित करना ही बेहतर होगा जिससे बाहरी दुनिया से उसे कोई व्यपारिक और आर्थिक सहयोग न मिले। ऐसा करने से तालिबान के पास सीमित संसाधन ही रह जायेंगे और दुनिया के समक्ष वो घुटने टेकने के लिए विवश हो जायेगा।

 

Exit mobile version