कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं से वादे तो करती है, किन्तु जब वो पूरे नहीं होते तो उसके लिए ही मुसीबत खड़ी हो जाती है। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं राजस्थान में सचिन पायलट इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं क्योंकि दोनों ही राज्यों में पार्टी के चाटुकार नेताओं ने सत्ता कब्जाईं। कुछ ऐसा ही छत्तीसगढ़ में भी हो रहा है, जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव बीच टकराव है। भूपेश बघेल का रवैया दर्शाता है कि उन्होंने कांग्रेस आलाकमान को अपने पक्ष में कर लिया है। जिस तरह से परिस्थितियाँ उनके पक्ष में हुई उससे यह कहा जाए कि वो भी कांग्रेस आलाकमान के चाटुकार नेता हैं तो गलत नहीं होगा। ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल ये ही है कि टीएस सिंह देव क्या करेंगे, वो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सिंधिया बनेंगे या फिर पायलट… या इससे भी आगे जाकर एक नई पार्टी का गठन ?
कांग्रेस पार्टी की परेशानी का सबसे बड़ा कारण यही है कि पार्टी आलाकमान अपने चाटुकार नेताओं को शीर्ष पर बिठाना चाहता है, जिसका नतीजा ये होता है कि पार्टी की फजीहत बगावती नेता ही कर देते हैं। मध्यप्रदेश राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसा ही हो रहा है। भूपेश बघेल एवं टीएस सिंह देव के बीच टकराव के वक्त में ये कहा जा रहा है कि बघेल की स्थिति मजबूत है। जागरण की रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस आलाकमान अपने चाटुकार माने जाने वाले नेता को ही वरीयता देगी। यही कारण है कि भूपेश बघेल ने कांग्रेस आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन करके अपनी सीएम पद की कुर्सी बचा ली है। इसके लिए उन्होंने राहुल गांधी एवं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तक से मुलाकात भी की थी।
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भूपेश बघेल एवं टीएस सिंह देव के बीच चल रही लड़ाई को ठंडा करने के लिए कांग्रेस आलाकमान पिछले तीन चार दिन से दिल्ली में बैठक कर रहा था। ऐसे में बघेल ने अपने समर्थक विधायकों एवं मंत्रियों के साथ दिल्ली में ही शक्ति प्रदर्शन किया, एवं अपने समर्थकों की परेड तक करा दी। उनके द्वारा खेला गया दबाव का दांव संभवतः सही साबित हुआ है, और अब पार्टी आलाकमान उनके सीएम रहने पर अपनी सहमति जता चुका है। भूपेश बघेल ने ये भी कहा है कि अगले सप्ताह राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की राजनीतिक स्थिति को समझने के लिए दौरा भी करेंगे।
इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में ये तो स्पष्ट हो गया है कि टीएस सिंह देव बघेल से मात खा गए हैं। अब उनके सामने कम ही विकल्प रह गए हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में टीएस सिंह देव को एक बड़ा नाम माना जाता है। ऐसे में अब उन्हें ही तय करना है कि वो अपना फ़ैसले का ऊंट किस ओर राजनीतिक करवट लेकर बिठाते हैं। क्या वो ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह पार्टी छोड़कर एक बीजेपी के साथ जातें हैं, या फिर सचिन पायलट की तरह बगावत करके सांकेतिक राजनीतिक निर्वासन की ओर जाएंगे।
इसके साथ ही टीएस सिंह देव के पास एक विकल्प नई पार्टी बनाने को लेकर भी खुला हुआ है, क्योंकि फ़िलहाल छत्तीसगढ़ कांग्रेस एवं बीजेपी की राजनीतिक लड़ाई के बीच है। पहले भी हमने TFI के अपने लेख में यह बात बताई थी किअगर बघेल CM बने तो टीएस सिंह देव पार्टी तोड़ सकते हैं। अभी भी 20 विधायक दूसरे पार्टी के है। 25 विधायक लेकर कोई भी दूसरी ओर जाकर सरकार बना सकता है और शायद इस शक्ति के गुणा गणित के कारण छत्तीसगढ़ में यह राजनीतिक संकट और जटिल होते जा रहा है।
ऐसे में टीएस सिंह देव छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को तोड़कर एक नई पार्टी का गठन भी कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के लिए संगठन के स्तर पर भी काम किया है। ऐसे में दो खेमों वाली छत्तीसगढ़ की राजनीति तीन पार्टियों की लड़ाई वाली हो जाएगी, जिसमें टीएस सिंह देव का प्रतिनिधित्व हो सकता है। अब आने वाला समय ही बताएगा कि कांग्रेस के अंदर का यह गृह युद्ध किस परिणाम के साथ समाप्त होता है। यद्यपि अगर टीएस देव नई पार्टी का गठन करते हैं तो इससे सर्वाधिक नुकसान भी कांग्रेस को ही होगा।