काबुल में अब तालिबान शासन है, सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए इसके क्या मायने हैं ?

तालिबान भारत का कुछ नहीं कर पाएगा।

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अब जबकि अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की स्थापना हो चुकी है। अफगानिस्तान में हर तरफ तालिबान के लड़ाके अपने-अपने हथियार लेकर घूम रहे हैं। महिलाओं पर हजार तरह के अत्याचार किए जा रहे हैं। अफगानिस्तान ने तालिबान के सामने पूरी तरह से सरेंडर कर दिया है। तालिबान के विरोध में कोई खड़ा नहीं दिखता। अमेरिका, अफगानिस्तान में खुद को बचाने के प्रयासों में जुटा है, ऐसे में भारत के सामने पहला प्रश्न यह है तालिबान के सत्ता में काबिज होने से भारत को क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं?

पिछली बार जब तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में आया था तो भारत के कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा मिला था। हालांकि तब से अब तक 40 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं और वैश्विक समीकरण तथा भारत की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही है। ऐसे में तालिबान से भारत को कितना वास्तविक खतरा है और क्या भारत इस खतरे से निपटने के लिए तैयार है ?

भारत के पड़ोस में दो शत्रु चीन और पाकिस्तान भारतीय सेना के लिए चुनौती हैं। चीन और पाकिस्तान से संयुक्त रूप से सैन्य संघर्ष में भी भारत को विशेष समस्याओं का सामना नहीं करना होगा यह एक जगजाहिर बात है। ऐसे में यदि पाकिस्तान की ओर से तालिबानी आतंकवादी भारत में घुसपैठ की योजना भी बनाते हैं तो भी उनका प्रवेश बहुत कठिन है।

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1990 में जिस समय पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दिया था उस समय केंद्र में मजबूत दृढ़ इच्छाशक्ति वाली कोई सरकार मौजूद नहीं थी। भारत के लिए यह सबसे बुरा दौर था क्योंकि केंद्र में किसी एक शक्ति को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पा रहा था और थर्ड फ्रंट जैसी सरकार देश पर शासन चला रही थी। भारत ने शीत युद्ध के दौरान सोवियत रूस का साथ दिया था और यूएसएसआर के पतन के साथ ही भारत एक ऐसे दोराहे पर खड़ा था जहां उसका सबसे बड़ा सहयोगी सोवियत रूस स्वयं को संभालने की स्थिति में नहीं था जबकि पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध बहुत अच्छे थे।

उस समय अफगानिस्तान में सोवियत संघ को हराने और तालिबान को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को बड़ी मात्रा में आर्थिक सहायता दी। इस समय तक अमेरिका पाकिस्तान के सहयोग से सोवियत रूस के विघटन के बाद सेंट्रल एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था। अमेरिका से मिल रही आर्थिक मदद का इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए किया। एक ओर तो भारत 1990 के दौर में वैश्विक रूप से अलग-थलग पड़ चुका था, दूसरा भारत की आर्थिक शक्ति सुदृढ़ नहीं थी।

अब हालात बदल चुके हैं। इस समय भारत के पास आधुनिक हथियारों से संपन्न सेना के साथ ही एक मजबूत अर्थव्यवस्था है। यदि तालिबान भारत के खिलाफ किसी प्रकार की आतंकी कार्यवाही करने का प्रयास करेगा तो भारत अफगानिस्तान की भूमि पर उतरकर तालिबान को उसकी हद तक ले जाने का सामर्थ्य रखता है।

पाकिस्तान के रास्ते भारत में घुसपैठ करने की इच्छा रखने वाले आतंकवादियों को भारत के राफेल विमान सीमा के इस पार से निशाना बना सकते हैं। बालाकोट एयर-स्ट्राइक इसका उदाहरण है कि भारत सीमा पार जाकर भी आतंकी कैम्प और लांचपैड को तबाह कर सकता है। साथ ही बिना अमेरिकी सहयोग के पाकिस्तान के लिए भी भारत को तालिबान के जरिये किसी भी तरह का सिरदर्द देना लगभग नामुमकिन है। FTAF की लटकती तलवार के बीच पाकिस्तान ऐसा करेगा तो उसका परिणाम भी गंभीर होगा।

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अमेरिका ने अफगानिस्तान की भूमि को छोड़ा ही इसलिए है क्योंकि अमेरिका अपने संसाधनों का इस्तेमाल चीन के विरुद्ध दक्षिण चीन सागर तथा हिंद महासागर में करना चाहता है। ऐसे में वैश्विक समीकरण आज भारत के पक्ष में हैं। वैसे भी भारत को तालिबान जैसे खतरे से निपटने के लिए किसी अन्य देश की सहायता की आवश्यकता नहीं है लेकिन यह अच्छा ही है कि अमेरिका को आज भारत की पाकिस्तान से कहीं अधिक आवश्यकता है। यदि तालिबान की ओर से भारत को किसी प्रकार का खतरा महसूस होगा तो भारत अमेरिका की सहायता से पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगवा सकता है।
वहीं चीन की बात करें तो चीन भी तालिबान के साथ अपनी नजदीकी नहीं बढ़ाना चाहेगा। तालिबान एक असंगठित आतंकी समूह है, जो जिहाद की मानसिकता से ग्रस्त है। तालिबान का आत्मविश्वास इस समय सातवें आसमान पर है क्योंकि उन्होंने अमेरिका और सोवियत संघ दोनों को हराया है। यह अलग बात है कि तालिबान की जीत में बहुत से कारकों ने अपना योगदान दिया है, लेकिन तालिबान का मानना है कि यह सब संभव इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने इस्लामिक विचार को फैलाने के लिए जिहाद किया है।

अल्लाह की शक्ति उनके साथ है। ऐसे में यह जिहाद कल को चीन में फंसे उइगर मुसलमानों के लिए शुरू नहीं होगा इसकी कोई गारंटी नहीं ली जा सकती। वैसे भी भौगोलिक दृष्टि से भारत के बजाय चीन पर हमला अधिक आसान है। अतः चीन के लिए भी तालिबान सिरदर्द बन सकता है। अतः चीन कभी नहीं चाहेगा कि तालिबान की जिहादी सोच अफगानिस्तान के सीमाओं के बाहर निकले।

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ऐसे में कहा जा सकता है कि भारत को तालिबान की जीत से केवल इतना नुकसान हुआ है कि अफगानिस्तान में भारत समर्थित सरकार का अंत हो गया है। जब तक अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार थी तब तक पाकिस्तान को अफगानिस्तान के फ्रंट से भी सैन्य चुनौती मिलती रहती थी। संभवतः तालिबान के आने से पाकिस्तान कि अफगान सीमा पर शांति स्थापित हो जाए। हालांकि इस बात को पूरी दृढ़ता के साथ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच भी एक सीमा विवाद है।

अब जबकि तालिबान सत्ता में काबिज है, उसके लड़ाके इस मामले को तूल नहीं देंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। जिस दिन भी पाकिस्तान ने तालिबान के विरुद्ध जाने का विचार किया, जिहादियों का हमला पाकिस्तान पर भी शुरू हो सकता है। पूर्व में ऐसा हुआ भी है, जब पाकिस्तान ने अमेरिका के दबाव में तालिबान पर हमले किए थे तो पाकिस्तान में आतंकवाद चरम पर पहुंच गया था।

तालिबान कब किसे नुकसान पहुंचाएगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उससे केवल वही देश सुरक्षित हैं जो अपनी सुरक्षा स्वयं करने में सक्षम हैं। रही बात भारतीय सेना की तो उसकी शक्ति के बारे में दुनिया जानती है और तालिबान भी।

 

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